31 दिसंबर 2012

बस थोड़ा-सा अलग...!

नववर्ष आने को है और हम हर बार की तरह नए जोश,जूनून,संकल्प के साथ तैयार हैं प्रवेश करने के लिए. सभी चाहते है कि नया साल कुछ ऐसा हों जो पिछले साल की उम्मीद जो बाकि है,पूरी हों जाए.मै भी चाहता हूँ,पर कुछ नए की शुरुआत हों इसके लिए यह एक दिन ही क्यूँ,हम पूरे साल के एक-एक दिन को नए साल के जैसे मनाएँगे."हर दिन हमारा,पिछले दिन से बढ़िया हों" ऐसा सोचेंगे और सोचने से एक कदम आगे जाकर ऐसा कुछ करेंगे कि हम एक पल के लिए दूसरों के नज़र में न सही पर अपनी नज़र में,हम खुद का आदर्श बन सकें.तो हम संकल्प ले कि २०१२ की असलियत को न भूलकर हम २०१३ में उन सभी कामों को थोड़ा और बेहतर बनाएँगे जो इंसानियत की खातिर और खुद के भले के लिए हों...

:(
कुछ आसान करती हुई राहें
कुछ भूले-भटके खुद भी
वक्त के साथ चलकर,
जो मंजिल के करीब लाए
उन राहों को ढूंढकर
कि आओ अब,
गुमराह राहों से ही
एक रास्ता और निकालें...

जो बीत गया उसे भुलाकर
कदम मिलाकर उन गलतियों से भी
कुछ सही करने की चाह लेकर
गलतियों से ही कुछ सीख लेंगे
कि आओ अब,
अफ़सोस की बीज से ही
उम्मीद का एक पौधा उगाएँ...

खुद ही को खुद में सिमटा के,
जी रहें थे शर्त के सहारे
कुछ ऐसा न होगा अब से
कि आओ अब,
लफ्जों की दुनियादारी में
आँखों की सच्चाई को माने...

नववर्ष की अनंत शुभकामनाएँ,वो सारी खुशी आपको हासिल हों जो आपके लिए उपयुक्त हों...

                                                                                                        - "मन"

18 दिसंबर 2012

कि अब,राह तकता हूँ...

हर पल को कुछ यूँ जिया हूँ कि 
अगले पल की ना हों खबर..
जो लाए हर खुशी,
उन लम्हों को सजोंकर..
उन बेरुखी से राहों से,
आगे निकलकर...
बुरे वक्त ने सबको कुचला है,
पर सामने लाया है,
कुछ सच्चे चेहरों को उभारकर...
चलता जा रहा हूँ 
कुछ चेहरों को पढ़कर, 
कुछ को पीछे छोड़कर..
इस ज़िंदगी की हर चाल को मै जनता हूँ
कि अब, 
मै रोज एक खुशी की राह तकता हूँ...
कभी थोड़ा सा पाया है,
बहुत कुछ खोकर..
कभी बहुत मुस्कुराया हूँ
थोड़ा सा रोकर..
पर सुकूं है कि 
मै हर बार खुद से जीता हूँ,
दुनिया वालों से हारकर...
चलता जा रहा हूँ
जिस राह पर मंजिल दिखी है दूर,
उस राह को थामकर..
हर राह को पहचानता हूँ
कि अब,
मै रोज एक खुशी की राह तकता हूँ...

क्या टिके ज़िंदगी
हम इंसानी फ़ितरत के आगे,
हम तो खुशियाँ भी ढूँढ लेते हैं
उन कचरों के ढेर से...

                         - "मन"

5 दिसंबर 2012

एक 'कल' के लिए...

कुछ बाकि है अभी भी,
कुछ कसक पूरे होने की...
जिसका इंतजार है,
हर बेजुबां तमन्ना को...
जहाँ खत्म हों बुझी-बुझी सी सुबह,
और तलाश है उस दिन की...

हर सुबह की उम्मीद में,
यूँ स्याह रातों का बीतना...
अधूरे सपनों की चुभन से, 
यूँ नींद,आँखों में भरना...
कि ये साजिश है वक्त की,
या खेल उन धुँधले लकीरों की...

कुछ वक्त की जोर से हुए पूरे,
कुछ ख्वाब रह गए अधूरे...
जहाँ खोकर आए हैं खुद को,
मुझे छोड़,खबर है सबको...
फ़िकर अब भी है,
उन अधूरे ख्वाबों की...
जिसके होने से मुझे इंतजार है,
एक सुनहरे कल की...

अब गम को पिघलना पड़ेगा ही,
राहें होंगी सीधी भी...
कि इंतजार है 
किसी मंजिल को,
एक-ना-एक दिन अपनी भी...

                           - "मन"

28 नवंबर 2012

कभी-कभी या हर वक्त...

कभी ज़िंदगी के साथ जीया हूँ,
तो कभी छोड़ आता हूँ पीछे कहीं...
कभी हर गम को पीता हूँ,
तो कभी छोड़ देता हूँ आँसूओं के साथ उन्हें...
कभी लिखता हूँ खुद कि तक़दीर को,
तो कभी उसके भरोसे भी नही चल पाता हूँ...
कभी हर दिल में घर बनाने की कोशिश करता हूँ,
तो कभी बेदखल हों जाता हूँ खुद से ही...
पर सोच के मुस्कुराता हूँ कि
जो वक्त ने राह दिखाई है,ज़िंदगी को
उसकी खबर नही है मुझको,पर
उस राह पर चलना बखूबी जानता हूँ मै...

                                                   - "मन"

17 नवंबर 2012

कुछ तो बाकी है...

कहीं कुछ बाकी है
निशां है,अभी भी
आँखों को यकीं नही
पर
आँसू आ जाते हैं गवाही देने |
यूँ तो सांसों से शुरू हुई ज़िंदगी,
अब यादों से है चलती
साँसे तो अभी भी है,
पर ज़िंदगी पीछे झाँक रही है |
जो गुजरी है इस ज़िंदगी पर,
ना कभी बतायेंगे
बस कुछ बूँदे,घर बसाए
बैठे हैं पलकों पर |
कुछ मिलता है और
बहुत कुछ पीछे छूट जाता है
लोग बेहिसाब याद आते है...
शायद,
कभी खुद से मिलना नही चाहिए |

                                    - "मन"

12 नवंबर 2012

क्यूँ ???

क्यूँ
फैला है सन्नाटा
पर छंटती नही भीड़ है...

क्यूँ
रिश्ते है जुड़े हुए,
पर एहसास का निशां नही...

क्यूँ
साथ है तुम्हारा,
पर पास तुम अब भी नही...

क्यूँ
उजाला है चारों तरफ,
पर दिखता सिर्फ अँधेरा है...

क्यूँ
राहें बनी है गुमराह,
खबर नही मंजिल की भी...

क्यूँ
जान नही पाया,
अपने ही खुद को...

क्यूँ
मिला है सबकुछ,
पर बाकी है एक कसक...

क्यूँ
हो गया मै सबका,
पर कोई हमारा ना हो सका...

                                   -"मन"

2 नवंबर 2012

अपने होने का पता...

क्यूँ ओट हूँ मै खुद का,
फिर कभी खींचता हूँ खुदी को...
क्यूँ हर खुशी के पीछे भागता हूँ,
फिर कभी साथ देता हूँ गम का...
तो फिर कभी खामोशी का आसरा लेकर
कह जाता हूँ बहुत कुछ...
ये हैं मेरे उसूल या इन्हें
मानू जिंदगी के फलसफ़े...?

जब दूर जाने लगती है जिंदगी,
तब उसूल पीछे रह जाते हैं
जज्बात सिसकियाँ लेती है,
और आँखे डूब जाती है समंदर में
तब जिंदगी बड़े करीब से समझ आती है
तो कभी इनके साथ तो कभी मुस्कुराते हुए,
आगे सरकती जाती है
और फिर इनका होना
जरुरी ही नही बहुत जरुरी हो जाता है |

अब शिकवे नही है उन राहों से
जहाँ खोए है कुछ सपने,
जहाँ से मंजिल दिखी है और दूर...
क्यूंकि अब लगता है कि
खोने के बजाय पाया बहुत कुछ है,
एक खूबसूरत सपना संजोने के लिए
किसी मंजिल को पाने के लिए |

पहले पूछता था खुद से
कि मेरे अपने होने का पता दू कैसे?
अब शीशे के सामने सर झुका के खड़ा ना होकर
होता हूँ आँख से आँख मिलाकर,
और जवाब मिल जाता,खुद से ही |

                                       - "मन"

31 अक्तूबर 2012

एक तुम ही तो हों...

जब होता है तुम्हें देखना,
तब बंद कर लेता हूँ आँखें
और
फिर तुम चली आती हों
आँसू बन के...

जब होता है तुम्हें पाना,
तब महसूस कर लेता हूँ
हवाओं को,
और
फिर तुम छू के निकल जाती हों...
यूँ सरसराती...

जब होता है तुम्हें छूना,
तब सहारा लेता हूँ
स्याही और कागज का
और
फिर तुम आ जाती हों करीब...

जब होता है तुमसे मिलना,
तब घुम आता हूँ उन गलियों में
जहाँ मिल जाती हों तुम
और
फिर मै मुस्कुरा लेता हूँ,
यूँ गम की आड़ में...

जब होता है तुम्हें सुनना,
तब ले जाता हूँ,
इस दिल को कहीं अकेला
और
फिर वहाँ होती हों तुम और मेरी तन्हाई...

अब सोचता हूँ कि शायद तुम मेरे किस्मत में नहीं थी...पर दिल पर किसका जोर है,वहाँ तो बस तुम ही तुम हों...और इसीलिए वो "दिल" कहलाता है...नही तो वो दिल नही कहलाता और उस दिल को "दिल" बनाने में पूरी जिंदगी गुजर जाती |
कभी-कभी हमारे जिंदगी के उसूल इतने कमजोर क्यूँ पड़ जाते है कि हमें किसी और की आवश्यकता पड़ती है,इस जिंदगी को आगे बढ़ाने के लिए...पता नही क्यूँ...???

                                                                                                            - "मन"

25 अक्तूबर 2012

एक दुनिया जो छोड़ आए...

एक दुनिया जो छोड़ आए,
एक दुनिया बसाने के लिए...
किसी अपनों को छोड़ आए
उन्हीं अपनों को कभी,
सहारा देने के लिए...

चलता जा रहा हूँ सफर पर
जहाँ साथ है,
खुशी,उमंगें,उम्मीद और हौसला...
पर एक कोने में बैठी है,
आँसू,गम और तन्हाई...
जो याद दिलाती है,
एक दुनिया जो छोड़ आए...

आज अपनों से दूर सही,
पर जुड़ा हुआ हूँ मन से...
आज बात हो जाती है कुछ पल,
फिर जी जाता हूँ हर पल...
कुछ खोकर पाने में जीत है,
और जिंदगी की यहीं रीत है...
और जरुरी भी है,
एक दुनिया बसाने के लिए...

कुछ पानी की बूँदे,
आ जाए पलकों तक,मन को झकझोर के...
तो फिर वहीँ से
एक डोर निकलती है उम्मीद की
जिसके सहारे चल निकलता हूँ,
इस शर्त पर कि
एक दुनिया जो छोड़ आए,
एक दुनिया बसाने के लिए...

                            - "मन"


22 अक्तूबर 2012

कल भी मिला था...

आपने किशोर दा का यह वाला गाना सुना ही होगा....
                       
                           "आते-जाते खूबसूरत आवारा सड़कों पे...
                            कभी-कभी इतेफ़ाक से,कितने अंजान लोग मिल जाते हैं...
                            उनमें से कुछ लोग...
                            भूल जाते हैं,कुछ याद रह जाते हैं..."

इन चार लाइनों से हमारा वास्ता डेली लाइफ में पड़ता रहता है,वो बात अलग है कि यह आवारा सड़क कभी ब्लॉग बनकर आता है तो कभी फेसबुक तो कभी कोई सफर या फिर कभी कोई ठिकाना...पर लोगों का हमसे मिलना या हमारा उनसे मिलना तय है...हम जैसा है वैसे भी लोग मिलते हैं जिनसे हमारी खूब जमती है...कुछ अलग टाइप के भी मिलते हैं,जिनके व्यक्तित्व में कुछ खास बात होती है और हम सोचने लग जाते हैं कि इस बंदे से कुछ सीखना चाहिए...कुछ ऐसे भी मिलते हैं जिनके व्यक्तित्व के काबिलियत को देखकर मुस्कुराने के अलावा कुछ नही सूझता...और ये मदद करते है हमें सभी टाइप के व्यक्तित्व के बारे में जानकारी रखने में...

हम लोगों से मिलते हैं...जिनके साथ हमें अच्छा अनुभव मिलता है तो हमारा नजरिया भी उनके प्रति अच्छा हों जाता है...जिनसे बूरा अनुभव मिलता है तो हम सतर्क हों जाते हैं...और इन दोनों के ही आधार पर हम आगे की ओर कदम बढ़ाते हैं...
इन मिलने वालों में से कुछ के साथ ऐसा एक बंधन या रिश्ता बन जाता है जिन रिश्तों के हाथ-पैर भी नही होते...पर जो सुख,शांति और चेहरे पर जो मुस्कुराहट झलकती है शायद कोई अपना भी नही दे सकता |

अभी कुछ दिनों पहले मैंने "OHH MY GOD" फिल्म देखी...इस फिल्म में नया कुछ भी नही बताया गया है...जो हम देखते,सुनते आ रहे हैं कहानीकार ने उसे करके बताया है...
ऊपर वाले को मानना चाहिए या नही मानना चाहिए...इस दोनों ही खास मुदों का सटीक कारण दिया हुआ है...हम माने तो क्यूँ माने और नही माने तो क्यूँ नही माने...मै यह नही कह रहा कि इसे देखने के बाद जो आश्तिक है वे नाश्तिक हों जायेंगे या जो नाश्तिक है वे आश्तिक...|
यह फिल्म बताती है कि हर एक आदमी के अंदर भगवान है...निर्भर करता है हमारे नज़रिए पर...हम किस तरीके से देखना पसंद करते हैं लोगों को जो जिंदगी के सफर में हमसे मिलते हैं...यकीं मानिए आप अपने नज़रिए को अपनी जिंदगी के हिसाब से बदल लीजिए,आप रोज भगवान से मिलेंगे...मै तो रोज मिलता हूँ...कल भी मिला था | 

यह एक इंसानी फ़ितरत है कि जब कोई आदमी हमें बूरा लगता है तो हमें केवल उसकी बूराई नज़र आती है और जब हमें कोई अच्छा लगने लगता तो हम केवल उसकी अच्छाई की तरफ देखते हैं...पर हमारे कुछ भी सोचने से सामने वाला नही बदल सकता है...वह उसकी जिंदगी है...चाहें जैसे बनाए | पर हमारी जिंदगी तो हमारे हाथ में ही है...पकड़ के रखना है या छोड़ना है...ये हमे खुद को सोचना है |
  
जिंदगी में बहुत सारे भगवान मिलेंगे,हमारे ही रूप में...कभी किसी मोड़ पर,कभी सफर करते-करते...फिर वहाँ पर बहुत सारे समझौते होंगे दिल और दिमाग के बीच...पर यह याद रखना होगा कि "जिंदगी समझौतों से भरी पड़ी है,यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस-किस का सामना करने के लिए तैयार है"

                                     "चेहरे मिलें हैं हजारों...
                                      यूँ सफर करते-करते,जिंदगी की राहों में...
                                      कि
                                      किसी ने ऊपर वाले का दर्जा पा लिया...
                                      तो कोई,
                                      सामने से गुजर गया और नज़र भी ना आया...."

                                                                                            - "मन"

20 अक्तूबर 2012

आखिर जिंदगी को क्या तलाश है...

कभी-कभी सोचता हूँ कि जिंदगी हमें चलाती है या हम उसे...क्या जिंदगी में बस वहीँ सब होना चाहिए जो केवल और केवल हम चाहते है...क्या जिंदगी में सबकुछ खुशी ही होती है या दुःख का मतलब भी समझ में आना चाहिए...
हमें कभी-कभार अंदाजा भी नही लग पाता कि जिंदगी को हमसे क्या चाहिए...और हम उसे क्या दे रहे हैं...हमारे कुछ फैसले,हमें उन नतीजों तक लेकर जाते हैं जिसकी कल्पना हमने कि भी नही थी...फिर दोष किस पर डालें...
जिंदगी पर या अपने-आप पर... जिंदगी के सफर में हम कुछ राहें चुनते हैं...मंजिल की खोज में आगे बढते हैं,पर मंजिल का कोई अता-पता नही...तो राहें गलत थी या हमारा फैसला...
किसी शायर ने यूँ फ़रमाया है कि -

                        "जिंदगी तेरा दस्तूर समझ नही आया...क्या है मेरा कसूर समझ नही आया... 
                         तेरी हर एक चाल पे,नज़र रखता हूँ मै...फिर भी तेरा फतूर समझ नहीं आया..."

बेखबर...बेपरवाह...
उस राह पर भटकता हुआ
जहाँ निशां है,
कुछ ठिठकते क़दमों के...
शायद,मेरे और मुझमें कोई बात नही बनी...
और फिर राहें ऐसी मिली,
जिसका अंत मंजिल तो नही है...|
वहीँ बिता हुआ कल,जब आज में,
झलक जाए आँखों के सामने,
तो जिंदगी फीके रंगों पर सवार हों जाती है...
मन को मलिन होना पड़ता है और
सपने,आँखों से समझौता कर लेते हैं...|
मै कहीं तो जा रहा हूँ...
कहीं उड़ता हुआ...
कभी मुड़ता हुआ...
कभी किसी राह को ठोकर मरता हुआ,
पर शायद उन कुछ राहों पर मंजिल का पता लिखा था,
और मै था अंजान...|
पांव तले कितनी राहें रुख कर गई...
ना पूछा,ना रोका,ना टोका,ना सोचा,
पता नही आखिर जिंदगी को क्या तलाश है...|

पर यह जरुरी तो नही कि हर राह,मंजिल तक ही जाती हों...कुछ का अंत भटकाव भी होना चाहिए जो कि हमारी मदद करें उस राह को चुनने में जो बेशक कुछ मोड़ लेती हुई मंजिल तक ही जाती हों...जिंदगी की राह में ठोकरें काफी मिलती है लेकिन अपने पैरों पर उठ खड़े होने का फैसला केवल हमारे हाथों में ही है...

                "आसान जरुर होंगी राहें...अगर मुश्किलों का सामना हिम्मत से हों जाए...और,
                 हौसला धीरे से मुस्कुरा दे...फिर जिंदगी बढ़ चलेगी अपनी राह पर और हम उसके सहारे"

                                                                                                                - "मन"

16 अक्तूबर 2012

कुछ रिश्ते होते हैं...

कुछ रिश्ते होते हैं...
जो नाम के मोहताज नही...
उन्हें बेनामी रहना पसंद है,
इस शर्त पर कि
एहसास कभी कम ना हों उन रिश्तों के लिए...

कुछ रिश्ते होते हैं...
जिन्हें दूरी पसंद है
और करीब आने का राश्ता,
वे शायद भूला चुके होते हैं...

कुछ रिश्ते होते हैं...
नाकाब पहने...यूँ साथ चलते हैं जैसे...
उन्हें परवाह है हमारी...
पर अफ़सोस उनके लिए कि,
एक ना एक दिन नाकाब भी साथ छोड़ देगी...
उनके,इस रवैये के लिए...

कुछ रिश्ते होते हैं...
दिखावटी,
जहाँ दम घुट रहा होता है...
खुशियों का...एहसास का...
और उन रिश्तों का होना...
शायद कभी-कभी,
जरुरी हों जाता है इस जिंदगी के लिए...

कुछ रिश्ते होते हैं...
इतने जरुरी जितने कि...
नदी के लिए पानी...
कलम के लिए कागज...
और फिर उन रिश्तों के,
होने से ही हम होते हैं...

कुछ रिश्ते होते हैं...
जिनका बंधन यूँ तो मजबूत नही,
पर टूट के बिखरना,इतना आसान भी नही है...

कुछ रिश्ते होते हैं...
जो दफ़न हों जाते हैं,
वक्त के गहरे समंदर में...
लेकिन उनकी परछाई हमारा साथ दे रही होती है...
आज में,
और हम होते हैं बेखबर...

कुछ रिश्ते होते हैं...और होने भी चाहिए...|

                                           - "मन"

सही में रिश्तों का इस जिंदगी में होना उतना ही जरुरी है जितना की हमारे वजूद का इस जिंदगी में होना...कभी-कभी रिश्तों की डोर ढीली पड़ जाती है और फिर उन रिश्तों के लिए जीने की आश धुँधली नज़र आती है...मन को चैन नही पड़ता...और खुली हवा में भी घुटन महसूस होती है...
एक फिल्म में एक पात्र यह कहता भी है कि "बंधन रिश्तों का नही एहसास का होता है...अगर एहसास ना हों तो रिश्ते मजबूरी बन जाते हैं...वहाँ प्यार की कोई जगह नही होती...और वैसे भी रिश्ते,जिंदगी के लिए होते हैं,जिंदगी रिश्तों के लिए नही"

14 अक्तूबर 2012

यूँ ही नही कहलाती है...


                                                   जब-जब थामने की कोशिश करता हूँ,
                                                   कुछ दूर जा खड़ी होती है
                                                   गर बंद करना चाहूँ भी इसे,
                                                   कुछ ढ़ीली सी पड़ जाती है |
                                                   जब मतलब समझना चाहूँ,
                                                   बेमतलब सी हों जाती है
                                                   जब होता हूँ बेखबर तो,
                                                   हवा सा छू के निकल जाती है |
                                                   जब अकेला बैठा होता हूँ,
                                                   तब साथ देने आती है
                                                   बिन कहे-सुने,
                                                   कुछ बूंदों को लिए हुए,
                                                   सब कुछ कह जाती है |
                                                   जब कलम उठाता हूँ,
                                                   दौड़ी चली आती है
                                                   कुछ बेजान से शब्दों में,
                                                   जान डालकर
                                                   सबकुछ बयां कर जाती है |
                                                   कुछ रिश्तों के जरिए,
                                                   होता है इसका आगे बढ़ना
                                                   कभी अपनों से है बढ़कर,
                                                   तो कभी दुश्मनी सिखा जाती है |
                                                   जब गलती को याद रखकर,
                                                   सबक को भूल जाता हूँ
                                                   तो
                                                   कुछ दूर खड़ी होकर मुस्कुराती है |
                                                   जीतना ही जरुरी नही,
                                                   हर मोड़ पर,बार-बार
                                                   हारना भी बखूबी सिखलाती है |
                                                   कहीं तिनकों का आसरा लेकर
                                                   कभी कागज पर स्याही बनकर
                                                   कभी चेहरों की मुस्कुराहट बनकर
                                                   कभी दिल का दर्द बनकर
                                                   सब जगह दिख जाती है |

                                                   सारे रंगों को भी सोखकर,
                                                   कभी फीकी ही रह जाती है
                                                   "जिंदगी"-यूँ ही नही कहलाती है...!!!
                                                                                     
                                                                                         - "मन"

11 अक्तूबर 2012

एक उल्टी प्रेम-कहानी


वो लड़का हर बार की तरह इस बार भी उस लड़की से मिल रहा था...जैसे ये दोनों पहले अनगिनत बार मिल चुके थे...और गवाह...ये फिजाएँ...बहती हवा...वक्त...इनकी मुस्कुराहट...पेड़-पौधे...चहचहाती चिडियाएँ थी...
पर इस बार वक्त ने सबकुछ बदल दिया था...केवल इन दोनों को ही छोड़कर...
फिजाएँ खामोश थी...हवाएँ कुछ रुखी-रुखी से बेमन बहे जा रही थी...हिलते-डुलते पत्ते यूँ बेजान पड़े थे जैसे,इन्हें कोई मतलब ही नहीं है किसी से...वक्त रुक सा गया था...चिड़ियों का चहचहाना कही गुम था इनके ख़ामोशी के आगे...उन दोनों की चेहरे की हँसी,इन हवाओं के साथ कहीं दूर बह गई थी...और अगर हवाओं का रुख पलट भी जाए तो इनकी हँसी इनकी मुस्कुराहट बनने को किसी भी हाल में तैयार ना थी...दूर-दूर तक सूना पसरा था...और उनकी दिल की बातें बिन जुबां के सहारे लिए उनकी आँखें बता रही थी...
लड़की थोड़ी सहमी नज़र आती है...लड़का थोड़ा बेबस...दोनों आमने-सामने आते हैं...लड़का,लड़की की हाथ पकड़ता है...लड़की और सहम जाती है...लकड़ा हाथ छोड़ देता है...फिर लड़की थोड़ी दूर होकर खड़ी हों जाती है...लड़का और पास जाने की हिम्मत को दबा लेता है...फिर लड़के की आवाज,खामोशी का तोडती है वह लड़की की आँखों में देखते हुए पूछता है..."हमनें साथ में एक-एक पल बिताने की कसमें खाई थी और अब तुम जा रही हों छोड़ के मुझे...मेरे जिंदगी के उन कुछ रिश्तों में तुम थी जो मुझे अपना कहती थी,फिर अलविदा कैसे कह दिया...???" लड़की की नज़रे झुक जाती है...लड़का वैसे ही रहता है,जवाब सुनने के इंतजार में...
पर उस लड़के को शायद पता नही कि कुछ सवालों के जवाब,जुबां कभी नही दे सकती और ख़ामोशी सबकुछ कह जाती है...
फिर वो लड़की उस लड़के को छोड़ के जाने लगती है...मुड़ के भी नही देखती है...और लड़के कि हसरत भरी निगाहें...कुछ पानी की बूंदों का सहारा लेकर उसके गालों पर आने लगती है...वह एकटक देखता जाता है...उस लड़की को जाते हुए...अपने सामने से...अपने जिंदगी से...अपने वजूद से...अपने सजाए ख्वाब से...
फिर वो लड़का नीचे गिर जाता है................
और फिर अचानक उसकी नींद खुलती है...यह सबकुछ एक सपना था...घड़ी सुबह के पांच बजने का इशारा कर रही होती है...वो सपना उसे कुछ देर तक सोचने को मजबूर करती है...फिर वह अपने काम में लग जाता है...पर रह-रह के वह उसी सपने के बारे में सोचता है...यह उसके साथ कभी हुआ ही नही...फिर क्यूँ ये सपना, हकीकत में उसका पीछा नही छोड़ रही है...फिर वो सोचता है कि शायद आगे जाकर ऐसा कुछ हों...क्यूंकि ऐसा कहते है कि भोर का देखा हुआ सपना सच हों जाता है...लेकिन उसके लिए पहले उस लड़के को एक लड़की की जरुरत है...जो उसे इतना प्यार करें कि उसे छोड़ने का दर्द कुछ इस तरह से बयां हों सकें....

10 अक्तूबर 2012

कुछ खास नही...बस यूँ हीं...!

कुछ चीजें ऐसी होती है जिन्हें कभी भी बदला नही जा सकता...उन्हें अपनाने के लिए या तो खुद हमें बदलना पड़ता है या फिर हमारी सोच बदल जाती है,उन चीजों के प्रति और ऐसा महसूस होने लगता है कि ये चीजें हमारे लिए मायने नही रखती...पर हमारी सोच बदल जाने से यह नही हों सकता है कि उन चीजों का असली मतलब भी बदल जाए...वे हमारे लिए ना सही किसी और के लिए तो वही मतलब लिए हुए है |
कुछ अनछुई बातें...लम्हें...जिसे जीया सबने है पर अपनाया कुछ ने ही...जिसे देखा सबने है पर महसूस कुछ ने ही किया है...जिसे कहा-सूना सबने है पर...अम्ल में कुछ ने ही लिया है...

लेखा-जोखा-
जब पेट और जेब दोनों एक साथ खाली हों तो ये एहसास होने में देर नही लगती कि जिंदगी ने हमें क्या-क्या दिया है और बदले में हमने उसे कितना लौटाया है???
वजूद-
सबके पास अपना-अपना है...पर कितनों के पास खुद का है???
किसे कहें अपना-
जो हमारी बातें सुनता हों...जो हमें समझाता हों...जो हमें चाहता हों...या फिर वो...जो हमारे दर्द को समझता हों... जो अपने हाथों से हमारे घाव पर मरहम लगाता हों...???
चेहरा-
हर चेहरे ने मुखौटा लगा रखा है हर चेहरे के सामने...हम खुद तो दूर,आइना भी गफ़लत में पड़ जाए कि असली वाला चेहरा कौन सा है ???
कहाँ तक जाना है-
आज चाँद तक पहुँच है हमारी...पर कितनों को ये खबर है कि अपना पड़ोसी कौन है???
जैसे को तैसा-
जो खुशियाँ पाने कि चाह रखते है...पहले वो ये बताए कि उन्होंने दूसरों को देने की कितनी बार कोशिश भर भी की है???

और इन कुछ के होने से ही ये दुनिया टिकी है |ये ऐसी बातें हैं...जो सब किसी पर लागू नही होती...या ऐसा भी हों सकता है कि कोई ऐसा चाहता ही ना हों...पर कितने अभी भी हैं इस दुनिया में जो इन बातों को अपनी जिंदगी में खुद आगे बढ़कर स्वीकारते हैं...जो सही को सही मानते हुए गलत को भी बखूबी पहचानते हैं...फिर वो दुनिया की नज़र में चाहें कैसे भी हों,अपनी नज़र में वे महान होते है...जो की असल जिंदगी जीने के लिए सबसे बड़ी चीज है...
मै तो यही जानता हूँ कि जहाँ कुछ सही है,वहाँ गलत भी होने की पूरी गुंजाइश है...और फिर जिंदगी का हर पहलू ऐसे ही संतुलित होता है...एक ही तराजू के दोनों पलड़ों पर चढ़कर...एक बगल सही तो दूसरी बगल गलत ...

                                                                                                           - "मन"

9 अक्तूबर 2012

सपने और पानी की बूँदें



सपने-जो आँखों में पनाह लिए...नाउम्मीदी से उम्मीदी तक...एक धागे का काम करती है...जिससे जिंदगी को जीने का एक जरिया मिलता है...और इसी के बदौलत अब-तक की जिंदगी मिली है....

पानी की बूँदें-बिन सावन आए...बगैर बादल के...घुमड़-घुमड़ के इन गालों पर चले आते हैं...ये जताने कि ये हमारे अपने हैं...कोई साथ दे या ना दे...हर खुशी...हर गम में...ये साथ खड़े होते हैं....

पर इन दोनों में समानता यह है कि...इनको पनाह मिलती है...आँखों में...जहाँ कोई किसी से कम नही...सपनों पर हमारा वश नही...और...ये पानी की बूँदें कभी खत्म होने का नाम ही नही लेती...इन दोनों का आना तय है...चाहें हर गम के बाद आए...या...हर खुशी के पहले....इन दोनों का होना उतना ही जरुरी है...जितना कि...एक-एक साँस है...इस छोटी-सी,खूबसूरत जिंदगी के लिए....

पर कभी-कभी यूँ भी होता है कि ये सपने...इन पानी की बूंदों को...आँखों से बेदखल करके...फ़िराक में रहती है अपना खुद का आशियाना बनाने में....पता नही क्यूँ????...पर उन सपनों को समझ में नही आता कि...सागर भी कम पड़ जाए इन कुछ बूंदों के आगे...और बूंदों को शायद ये पता नही कि...इन सपनों की कोई सीमा ही नही है....
                                                                                     
                                                                                                  - "मन"

7 अक्तूबर 2012

वो बच्चा...

कुछ दिन पहले जब मै मंदिर से होके आ रहा था तब रास्ते में मुझे एक करीब 7-8 साल का बच्चा मिला |देखकर और कहने को तो वो एक बच्चा ही था पर इतनी सी उम्र में उसकी समझ और बात करने का सलीका...
बस मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया |अपने खुद के,सच्चे शब्दों के जरिए उसने अपनी कुछ दिनों की जिंदगी को मेरे सामने रखा...और मै जानकर बस स्तब्ध हों गया था...उसकी मासूमियत से...उसकी सच्चाई से...उसकी चहरे की मुस्कान से...उसके अपनों के प्रति प्यार से...स्तब्ध हों गया गया था,देखकर कि...उसकी जिंदगी ने जिस राह को पकड़ी है वह उसे कहाँ लेकर जाएगी? "बच्चे देश के भविष्य होते हैं" पर ऐसा भविष्य किसे चाहिए??? और ना जाने कितनों की यही कहानी होगी....जो अपने टूटे-बिखरे,आधे-अधूरे शब्दों का सहारा लेकर अपनी पूरी दास्ताँ बयां करते होंगे...कुछ की सुनी जाती होगी और बहुतों की नही...

"भईया,आप थोड़ी दूर तक मेरे साथ चल सकते हों क्या...मेरा घर यहीं पास में ही है...रात हों गई है...और मै अभी बच्चा हूँ ना...सो डर लग रहा है"
"हाँ क्यूँ नही" (पर सहसा मेरा दिमाग,अखबार के उस खबर पर गया जिसमें यह था कि आजकल छोटे बच्चे, किसी को भी अपने घर तक छोड़ने की आग्रह करते हैं फिर उनके घर तक जाने पर...अपहरण करने वाले गिरोह अपने काम को बखूबी अंजाम दे देते हैं)
पर वह खबर,उस छोटे से बच्चे के चेहरे पर की मासूमियत से कुछ फीकी लगी...सो मै उसके साथ चलने लगा... |हाफ़ पैन्ट और हाफ़ टी-शर्ट पहने...हाथ में एक लकड़ी घुमाता हुआ...वह आगे-आगे और मै उसके पीछे...वह बार-बार मुड़कर पीछे देखता कि मै उसके साथ हूँ कि नही...जितनी बार वो आगे नही देखता उससे कई बार वह पीछे देखता...साथ ही साथ वह आस-पास के घर के अंदर भी देखता हुआ मस्ती में चले जा रहा था...चहरे पर मुस्कान लिए और मुझे अपनी तरफ रिझाते हुए |
और मै हर दो मिनट चलने के बाद उससे पूछ बैठता कि-
"कहाँ है तुम्हारा घर...?"
"बस वो वाला घर है ना...वो वाला...हाँ...उसी के आगे वाला...मेरा घर है..."
फिर मैंने उससे पूछा-
"तुम्हारा नाम क्या है?"
"सन्नू...पापा ने रखा है...और स्कूल के लिए मोहन"
"तुम कौन सी क्लास में पढ़ते हों ?"
"मै नही पढ़ता-वढता...पढ़ने का तो मन करता है...मेरे ताऊ जी का लड़का बिसू रोज पढ़ने जाता है...पर मेरी अम्मा मुझे पढ़ने के लिए भेजती ही नही है..."
"और तुम्हारे पापा?"
"वो तो है नही ना...वे मर गए...ऊपर चले गए...वे कमाने जाते थे...जब मै और छोटा था...वे मुझे पढ़ा-लिखा के बड़ा बनाना चाहते थे...उन्होंने कुछ दिन मुझे,घर के पीछे वाले सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा भी था...वे मेरे लिए किताब भी लाए थे बाज़ार से...पेंसिल भी"
"तुम्हारी अम्मा तुम्हें क्यूँ नही पढ़ाना चाहती है ?"
"वो सुबह-सुबह काम करने जाती है फिर शाम को आती है...फिर छुटकी...मेरी छोटी बहन,वो घर पर अकेली रहती है ना...रोती रहती है...अभी छोटी है ना इसलिए...इसलिए अम्मा मुझे घर पर ही उसे चुप कराने के लिए रखती है...मै उसको दिनभर खेल खिलाता रहता हूँ...वो भी खूब हँसती है...आज तो वो खाट पर से गिर भी गई थी...फिर रोने लगी...वो अपने आप गिरी थी...और अम्मा ने मुझे मारा...फिर वो हँसने लगी..फिर उसे देखकर मै भी रोते-रोते हँसने लगा..."
"तुम अम्मा को क्यूँ नही कहते हों कि मै भी पढ़ना चाहता हूँ"
"अम्मा कहती है पढ़-लिख के क्या करेगा...और वैसे भी अम्मा के पास इतने पैसे नही है कि वो कॉपी-किताब खरीद सकें...अम्मा कहती है कि...छुटकी थोड़ी बड़ी हों जाए तो...मुझे भी वो काम पर लेके जायेगी...और फिर मै भी दो पैसे कमाने लग जाऊँगा...मंहगाई भी बहुत है ना"
मैंने हँसते हुए पूछा कि "तुम भी मंहगाई का मतलब जानते हों ?"
"हाँ...अम्मा कहती है कि ये मंहगाई अब जान लेके ही छोड़ेगी...वो कहती है कि और पैसे कमाने पड़ेंगे,तभी जाके वो मुझे और छुटकी को पाल-पोस के बड़ा कर सकती है...ये महंगाई बड़ी खराब चीज है...है ना ?"
उसने मुझे निशब्द कर दिए थे...मै चाहकर भी कुछ भी नही बोल सका |
"क्या तुम्हें पढ़ना अच्छा नही लगता?"
"लगता है...पर पढ़ने-लिखने के पहले ही अब पैसे कमाने लगूँगा...तो पढ़ाई किस काम की...पढ़ने के बाद भी पैसा ही कमाऊँगा...तो अभी से कमाने लगूँगा तो अम्मा को भी कम काम करना पड़ेगा...
लो आ गया मेरा घर..आप अब चल जाओ...मै यहाँ से चला जाऊँगा"
और वह फिर अपने घर के तरफ उछलता-कूदता चला जाता है....और मुझे छोड़ जाता है निरुतर...निशब्द...के गहरे खाई में...उसने जो कुछ भी मुझसे कहा...सबकुछ वह हँसी-मुस्कुराहट के साथ घर के बाहर ही छोड़ जाता है...और फिर मैं उन्हें अपने ऊपर लादकर अपनी घर के तरफ चलने लगता हूँ...आगे की तरफ बढ़ता जाता हूँ...पता ही नही चला,पलकों के कोर गीले होने लगते हैं...चारो तरफ सन्नाटा...मेरा मन कहीं और भटक रहा होता है...दिमाग कही और...उसके कहे एक-एक शब्द मेरे सामने तैरते हुए नज़र आते हैं...और बस कहने के लिए कुछ बचता ही नही है |
             
                         सिलवटों में पड़ी दबकर...
                         कहीं जख्म तो कहीं खुशी थामकर...
                         हर चेहरे का सहारा बनकर,
                         कुछ नए रंग तो कुछ पुराने ही सही...
                         हर हाल में जीना सिखा देती है जिंदगी...!

                                                                   - "मन"

4 अक्तूबर 2012

"ये जो हैं...सपने "

सपने...ये जो हैं सपने...
झूठे ही सही पर सच के करीब होते हैं
हर खुशी को समेटे नैनों तले,
गहरे जज्बात लिए होते हैं |
कुछ फर्क नही पड़ता,
आँखें खुली या बंद हों
इनका आना तय है
वजह चाहें हों ना हों |
ये आँखों में हैं बसते,
और हम इनसे जुदा नही...
कोई भी सपना यूँ ही,
बेमतलब तो नही आ सकता?
इनमें छुपी होती है,
हमारी सच्चाई...
बीते हुए कल की दास्तान...
और आने वाले कल की झलक...
कुछ सपने छोड़ जाते हैं
गहरे भँवर में फंसा के...
जहाँ सोचने पर मजबूर होना पड़ता है,
कहीं सच ना हों जाए ये सपने...
और कुछ आते हैं
उम्मीद का दामन पकड़े,
और हम चाहते हैं कि काश !
सच हो जाए ये सपने...
बेतरतीब आते हैं ये सपने...
बड़े अजीब होते हैं ये सपने...
और कभी-कभी इन्हें पूरा
करने की शर्त,
हमें ले जाती है बहुत दूर
जहाँ मिलता है सिर्फ दर्द का सहारा |
सभी आँखें इन्हें देखती है,हक भी है,
पर कितनों को स्वीकार है उन फासलों को
मिटाने में जो सपने और उसके सच्चाई के बीच हैं???
शायद इसीलिए कुछ सपने
बस रह जाते हैं बनकर एक और सपने...
                                     
                                     - "मन"

28 सितंबर 2012

मै कौन हूँ ...???



मै कौन हूँ???
यह एक ऐसा अटल सवाल है,जिसका जवाब पल-पल बदलता है और हमें सोचने पर मजबूर करता है |जिंदगी के हर सफर पर...हर मोड़ पर यह ओट बनकर जवाब माँगता है जो अब-तक के जवाबों से शायद संतुष्ट नही |
हम देखते हैं कि कभी-कभी किसी बात के अंत में यही जिंदगी हमसे कुछ दूर पर खड़ी होकर,हमारी नादानी पर मुस्कुरा रहीं होती है,जिससे इस सच का पता चलता है कि हमने आज-तक इस सवाल के जवाब देने में कहीं ना कहीं झूठ का सहारा लिया है | जिंदगी सही मायने में आगे बढ़े तो इसके लिए सच्चाई को आगे आना ही पड़ेगा और इसका फैसला हमारे हाथों में है |
हम खुद के नज़रिए में अपने-आप को काबिल मानकर मन को तसल्ली दिला सकते हैं पर जिंदगी केवल अपने खुद से नही चलती,इससे जुड़े हैं कई और जिनकी नज़र में हमारे वजूद का एहसास काफी हद तक मायने रखता है...यहीं जीवन का सच है...थोड़ा अजीब है पर सच है |

मेरे जिंदगी से भी जुड़े है कई ऐसे शख्स जिनकों,मुझसे उम्मीद है...शायद मै नही जानता कि वे मेरे बारे में क्या नज़रिया रखते हैं पर इतना जानता हूँ कि मेरी जिंदगी में सच्चे मन से इनका होना...सबकुछ बयां कर देता है(शायद)...

मै कौन हूँ ???
मै हूँ...
उस पिता का बेटा..." जो यह सोचकर आश लगाए बैठा है कि जो सपने मै नहीं देख सका वो अपने बेटे को हर नामुमकिन कोशिश करके जरुर दिखाऊँगा...जो कसक अधूरी रह गई वो बेटे के सहारे पूरा करूँगा "
मै हूँ...                              
उस माँ का बेटा..." जो दरवाजे पर बाट जोहे खड़ी रहती है...अपने सच्चे बेटे के इंतजार में जो दुनिया के नज़र में कैसा भी हों...जो जी भर के देखना चाहती है...जो फिर से गले लगाना चाहती है...चूमना चाहती है...फिर से दुलारना चाहती है "
मै हूँ...
उस बहन का भाई..."जो मजबूरन वो ना कर सकीं,मुझसे चाहती है...जिसके आँखों तले एक कामयाब भाई का
सपना पल रहा है...जिसको इंतजार है एक मजबूत कलाई पर राखी बाँधने को "
मै हूँ...
उस भाई का भाई..."जिसको विश्वास है मुझपर...हर एक फैसले पर...जो उन्हीं राहों को पीछा करता हुआ चला
आ रहा है,जहाँ मेरे कदमों के निशान मौजूद है "
मै हूँ...
उस दोस्त का दोस्त..."जिसने हर हालात में..हर पल..हर दम..मुझे जिंदगी को जीना सिखाया...जो आज मेरे पास नही पर दिल के बहुत करीब है "
मै हूँ...
किसी पराए के लिए अपना..." जो अनजान..बेखबर है...जिसको किसी अपने की तलाश है,इस छोटी सी दुनिया में "
मै हूँ...
एक आम आदमी जैसा दिखने वाला प्राणी...जो जिंदगी के हर पहलू को स्वीकारता आया है...जो जिंदगी के हर रंग को जीना चाहता है...जो इस बात में विश्वास रखता है कि दूसरों की खुशी में ही अपनी खुशी है...जिसने सिखा है हर एक को अहमियत देना...जिसको कुछ पाने की ललक है और खोना भी बखूबी जानता है "

मै तो इतना सा जानता हूँ कि जब कोई किसी से उम्मीद रखता है,तो सामने वाले को भी चाहिए कि वह उसके उम्मीदों पर खरा उतरे...क्यूंकि अगर उम्मीद पूरी ना हों तो बहुत दुःख होता है |

                                                                                                - "मन"

27 सितंबर 2012

जिंदगी...



                                             किसी के लिए ख्वाहिश है...
                                             तो किसी के लिए एक सच्चाई है जिंदगी...
                                             कोई समझे तो सहेली है...
                                             जो ना समझे तो अबूझ पहेली है जिंदगी...
                                             हर पल बिगड़ के जो...
                                             हर पल सँवरे वो है जिंदगी...
                                             किसी के लिए पराई है...
                                             तो किसी के लिए प्यारी है जिंदगी...
                                             कुछ के लिए कुछ भी नही...
                                             तो किसी के पास केवल हैं ही जिंदगी...
                                             कुछ...
                                             खोकर,पाने का नाम है जिंदगी...
                                             हारकर,जीतने का नाम है जिंदगी...
                                             गिरकर,उठने  का नाम है जिंदगी...
                                             रोकर,हँसने  का नाम है जिंदगी...
                                             जो जी रहे वो भी नही...
                                             केवल साँस चलने का नाम भी नही...
                                             हर साँस में हो आश वो कहलाती है जिंदगी...

                                             ख्वाहिशों के ताने-बाने से बुनी है और...
                                             जो आंसू पी-पी के मुस्कुराती है वो है जिंदगी...

                                                                                           - "मन"

22 सितंबर 2012

तेरे बिना वो दोस्त..!



तेरे साथ...लम्बे रास्तों की फ़िकर ना थी...पर अब छोटे रास्ते...बड़े लम्बे से लगते हैं...और उन रास्तों पर...सूना पसरा है...तेरे बिना वो दोस्त..!
तेरे होने से...हर वो खुशी मिलीं...जो आज में...मेरे हर एक मुस्कुराहट की वजह है...मस्ती के हर रंग में वो चमक मिलीं...जो यक़ीनन फीकी और बेमतलब रह जाती...तेरे बिना वो दोस्त..!
वो एक-दूसरे का काम करना...कभी घर से निकलकर स्कूल ना पहुँचना...हमेशा स्कूल लेट जाना...साथ में बेंत खाना...और क्लास के बीच में ही टिफ़िन खत्म करना...कभी पापा से डाँट सुनवाना....मेरा रूठना...फिर तेरा मनाने का वो अजीबोगरीब तरीका अपनाना...वो मस्ती-मजाक...सब याद है...पर अब वो यादें हैं...तेरे बिना वो दोस्त..!
आज हर कदम पर...हर सफर पर सोचता हूँ कि...तू होता तो ये करते...तू होता तो वो करते...लेकिन बस सोचता ही हूँ...और...एक कसक के साथ मुस्कुराहट झलक रहीं होती है चेहरे पर...तेरे बिना वो दोस्त..!
पहले हर खुराफ़ाती में अपना नाम आता था...हर वो काम करना जरुरी था...जिसमें केवल हमारी खुशी हों...आज आलम ये है कि...खुराफ़ाती का मतलब ही कहीं गुम है...तेरे बिना वो दोस्त..!
पहले दिन भर...धूप में क्रिकेट खेलते थे...साइकिल से रेस लगाते थे...घर से बहुत दूर निकल जाते थे...पर अब धूप से कोई वास्ता ना रहा...कहीं पर साइकिल देखता हूँ तो...जी ललचता है...घर से अब भी दूर हूँ पर...कुछ खोया-खोया सा लगता है...तेरे बिना वो दोस्त..!
तू बहुत याद आता है...जब अकेले में हँस रहा होता हूँ...जब अकेले में रो रहा होता हूँ...जब अकेले कहीं जा रहा होता हूँ...जब अकेले कुछ खा रहा होता हूँ...जब अकेले पढ़ रहा होता हूँ...जब कुछ भी नही कर रहा होता हूँ...अब तू ना सही पर तेरा एहसास तो है...तेरे बिना वो दोस्त..!
यह चेहरा जो कभी हँसता था...आज इसको भी उदास होने की जरुरत पड़ती है...तेरे बिना वो दोस्त..!
तेरे साथ खुशी का हर पल था...गम का साया कहीं दूर-दूर तक नहीं...आज खुशी के पल गिन लेते हैं...और...गम ने दिया है साथ हर घड़ी...तेरे बिना वो दोस्त..!
अब सोचता हूँ कि...काश !...वो खुशी भरे दिन...हम साथ ना बिताते तो...आज यूँ...मन को तड़पना ना पड़ता...बिन आंसू के रोना ना पड़ता...तेरे बिना वो दोस्त..!
आज बेशक तेरे साथ नही...पर महसूस करता हूँ रोज तुझे...और नज़र उसी राह पर आश लगाए,इस ताक में है कि एक दिन तू आकर...मेरा हाथ थाम लेगा...क्यूंकि...मै कुछ भी नहीं...तेरे बिना वो दोस्त..!

                                                                                     - "मन"

19 सितंबर 2012

यादें और तकिया

आज ऐसे ही कुछ ढूंढते-ढूंढते मेरे एक पुराने फाइल में कुछ मिला,जिसमें कुछ फोटो,कुछ पहले के लेटर,कुछ खट्ठी-मीठी यादें,जिन्हें रखकर शायद मैं भूल गया था या आज में कुछ ऐसा नही हुआ जिनसे कि मैं उन यादों को फिर से याद कर सकूँ,(या शायद मेरा आज उन्हें फिर से स्वीकार नही करना चाहता हों) |
उनमें से कुछ यादें मुड़ गई थी,कुछ धुंधली पड़ गई थी तो कुछ बस फाइल का वजन बढ़ा रहीं थी और कितनी तो ऐसी थी जो अपनी तरफ देखने भी नही दे रही थी |

आज उन यादों को फिर से जीने का मौका मिला,कुछ अच्छी मिलीं जिनकी वजह से मुस्कुराया तो कुछ बुरी जो फिर से एक सबक का रूप लेकर आज में खड़ी हो गई शायद मेरे कल के बचाव के लिए |(पर दोनों हीं काम की है)

बहुत दिन से पड़े-पड़े उन यादों ने अपने-आप को अकेला महसूस कर,नमी को सोख उन्हें अपना बना लिया था सो मैंने उन्हें हटाकर अपने तकिये के नीचे रख दिया |फिर वहीँ पर कुछ सोचते-सोचते खो गया |कुछ देर बाद देखता हूँ कि तकिया गीला पड़ा है |अब ये आंसू थे जिन्हें आँखों में पनाह ना मिलीं या शायद उन यादों की नमी,कुछ कह नही सकते...:(

वक्त के साथ सबको तेजी से या धीरे-धीरे एक ना एक दिन बदल ही जाना है पर कुछ चीझें हैं ऐसी जिनपर वक्त का कोई जोर नही चलता और उनमें से एक है "यादें" |

                                                                     - "मन"

16 सितंबर 2012

बेहिसाब याद आती है,माँ..!

पता नहीं कौन सी ऊँगली थामे,
मुझे चलना सिखाया होगा,माँ..!
अब हर ऊँगली को देखता हूँ तो
बेहिसाब...
याद आती है,माँ..!
तुम्हारे मुस्कुराहट के सहारे आज
हर कोशिश है खुश रहने की
तुम्हारे गोद,तुम्हारे आँचल में आने की
पर जितना कि तुमसे दूर हूँ
उतना ही पास चला आता हूँ,माँ..!
आज हर साँस के साथ,
बेहिसाब...
याद आती है,माँ..!
तुम्हारे सपनों की फ़िकर ना होती तो
आज तुमसे यूँ दूर ना होता,
लोरी के बिना यूँ रात ना कटती,
डांट के बिना यूँ दिन ना गुजरता,
फिजाएं यूँ खामोश ना होती,
इस तरह से बेसहारा ना होता,
चेहरे पर यूँ तुम्हारा महसूस ना झलकता,
और यूँ ही तुम्हारी याद ना आती,माँ..!
आज जीने से भी ज्यादा,कई उलझनें हैं,
हर उलझन के दर पर
बेहिसाब...
याद आती है,माँ..!

वह माँ,जिसके बिना...
मेरी जिंदगी का हर एक दिन अधूरा है,
उस माँ को सलाम...!

                     - "मन"

11 सितंबर 2012

जीने की कसम खाई है अब...

उलझते सपने,सुलझे अब
पलकों तले,कुछ ख्वाब ढले अब |
भीड़ से अलग दिखें और
उस पार जाने का,कोई धुन चढ़े अब |
कुछ खोने से लेकर पाने की चाहत तक
मंजिल की ओर बढते जाए अब |

कुछ पाना है,कुछ कर दिखाना है,
कोई आस लगाए,घर बैठा है अब |

अब तो,
जीने के सहारे से गुजारिश है कि,
सब छोड़ गए,तू न छोड़ जाना अब |

रास्ते खत्म नही होते,जिंदगी के सफर में,
मंजिल तो वहीँ है,जहाँ ख्वाहिशें थमे अब |

जिंदगी की राहें सीधी हैं,गिले-शिकवे तो उन्हें हैं,
जिनकी चाल ही टेढ़ीं है अब |

ऐ रुख ज़रा पलट और,
कह दे उन मुश्किल हालातों से कि
मैंने हर हाल में जीने की कसम खाई है अब |

                                       - "मन"

9 सितंबर 2012

ये मै कहाँ आ गया...

पहले कच्चे घर मे,
पक्के दिल वाले मिलते थे
अब पक्के घर मे कच्चे दिल वाले मिलते हैं,यहाँ
ये मै कहाँ आ गया...
हँसते-मुस्कुराते चेहरे बेशक लगते हैं प्यारे,
पर मुस्कुराहट के पीछे अब
कोई मतलब जुड़ा है,यहाँ 
ये मै कहाँ आ गया...
जिंदगी के राह पर चलते-चलते
मिल जाते हैं कई अनजाने लोग
कोई अपना तो कोई सपना सा लगता है 
पर अब देखता हूँ,कि
कोई भरोसा के लिए तो
कोई भरोसा करके रोता है,यहाँ
ये मै कहाँ आ गया...
हर ज़ज्बात को जुबान नही मिलती है
हर आरजू को दुआ नही मिलती है
अब दुःख-दर्द को गुस्से का नाम दिया जाता है
अब तो,
पलकों पर बिठाया जाता है,नजरों से गिराने के लिए,यहाँ
ये मै कहाँ आ गया...
मेरे खुदा अब अच्छा नही लगता है ये जहाँ 
ये मै कहाँ आ गया...?
     
                      - "मन"

5 सितंबर 2012

मुझे आज भी याद है...


वो काम ना करने का बहाना बनाना...और बड़ी सादगी से पकड़ा जाना...
वो आपका कान मरोड़ना...और फिर हिदायत देके छोड़ना...
मुझे आज भी याद है...

वो ककहारा रटवाना...वो जोड़-बाकी के सवालों से जूझाना...
वो 13 का पाहड़ा,मुझे याद ना होना...फिर आपका बेंत बरसाना...
फिर मेरे रोने तक मुर्गा बनवाना...मेरा चुप ना होना...
फिर चुप कराने के लिए दो थपड लगाना... और फिर
अगले दिन तक की मोह्लत देना...
मुझे आज भी याद है...

वो चाट-पकौड़ी खाते पकड़े जाना...गाँव की गलियों मे
गोली खेलते धरा जाना...कभी-कभी आपको देखकर रफूचक्कर हो जाना...
फिर अगले दिन स्कूल के प्रार्थना मे सभी बच्चों के सामने पानी-पानी करना...
और कान पकड़वा के उठक-बैठक कराना...
मुझे आज भी याद है...

वो आपका पढ़ाना...मेरे ऊपर से जाना...वो क्लास मे पूछना...
फिर मेरा सकपकाना...सर दर्द का बहाना बनाना...
और फिर घर पर शिकायत करना...
मुझे आज भी याद है...

वो दस मे से 3 नंबर आना...आपका डाँटना...मेरा खामोश खड़ा होना...
फिर अगली बार दस मे से 8 नंबर लाना...
आपका हल्का सा मुस्कुराना..."दस मे से दस क्यूँ नही आए" आपका कहना...
मुझे आज भी याद है...

वो डाँट के पीछे प्यार...वो गुड़िया वाली कविता...वो सीख भरी कहानी...
वो आपका हौसला बढ़ाना..."कुछ बन के दिखाऊंगा" मेरा सोचना...
और आपका पीठ थपथपाना...
मुझे आज भी याद है...


वो मेरे मस्ती के दिन...बहुत सारी खुराफातें...
और आपकी माफ करने की आदतें...
मुझे आज भी याद है...

कभी कुछ गलत होने पर मेरे कंधे पर हाथ रखना...
जैसे एक प्यारे दोस्त का साथ होना...
मुझे आज भी याद है...


मुझे आज भी याद है,मुझे सबकुछ याद है,सर | आज जो कुछ भी हूँ,आपसे ही हूँ | छोटे थे जब ये चीजें बुरी लगती थी पर आज इनकी कमी महसूस होती है |अब सोचता हूँ की इन सब रंगों के बगैर मेरा बचपन अधूरा रह जाता...पर आपके होने से ऐसा नही हुआ |आपका कितना शुक्रगुजार हूँ ? इसके लिए मेरे पास शब्द नही है |

4 सितंबर 2012

"फेसबुकिया साइकिल"

"फेसबुक"...इससे आज तक कोई नही बचा,ना ही कोई बचेगा |कभी-कभी तो लगता है कि जो फेसबुक पर नही है वो कहीं का नही है,शायद इस दुनिया का भी नही है (खासकर आज की पीढ़ी),और मै भी इसी केटेगरी मे आता हूँ सो मै कैसे बच जाऊँगा | आखिर जब बात मेरे दुनिया मे होने की हो तब तो फेसबुक पर होना तो बनता ही हैं | और शायद इसीलिए मैंने इस ब्लॉग के साइड मे 'फेसबुक का चटका' भी लगाया है |
सभी फेसबुक के बारे मे अपने 'सुंदर-सुंदर' विचार ब्लॉग पर रखते हैं, तो हम भी यहीं देख के लाए हैं- "फेसबुकिया साइकिल"
आपने अब-तक लाइफ साइकिल,इको साइकिल,वाटर साइकिल,ऑक्सीजन साइकिल,कार्बन साइकिल और ना जाने कौन-कौन सा साइकिल देखा और पढ़ा होगा...पर मै आपके सामने रख रहा हूँ-
"फेसबुकिया साइकिल"
अब देखना है कि ये साइकिल चला के कितना मज़ा आता है आप सबको |

              1st स्टेज ऑफ साइकिल (छोटा हैं पर काम का है......)

                                         हमने करी पप्पा से Talking..
                                 पप्पा ने लगवाया नेट की Setting..
                                    फिर जब नेट हुआ Connecting..
                                                 तब हम हुए Starting..

              2nd स्टेज ऑफ साइकिल (असली शुरुआत,अब आगे देखिएगा.....)

                                        जब  नेट हुआ  Connecting..
                                                  तब हम हुए Starting..
                                  जिनसे तमन्ना थी,उनसे
                                                      होने लगी Chating..
                              प्यार की आईस रुक-रुक के Melting..
                                                 माई हार्ट इज Beating..
                                                               एंड Beating..
                                   हमने की प्यार के बारे मे Talking..
                                              उन्होंने किया Accepting..
                                                  हो गई हमारी Setting..
                                                   तब होने लगी Dating..

             3rd स्टेज ऑफ साइकिल (एकदम उफान मार रहा था.....)

                                                  अब..
                                                 दोस्तों मे बढ़ी Rating..
                                             लव वाले स्टेटस Posting..
                                            न्यू हेअर स्टाइल Cutting..
                                       करके बेल्ट के ऊपर Shirting..
                               मारने लगे हम बाइक पर Stunting..

            4th स्टेज ऑफ साइकिल (जोर का झटका जोर से....)

                                      जब बिगड़ा हमारा Budgeting..(budget)
                                                  तब माइंड मे Getting..
                                           दैट समथिंग इज Faulting..
                                                तब मैंने किया Testing..
                                            तो पाया उनको कि...
                            उनका हो गया दूसरों के साथ Meeting..
                                  बैठा लिया उन्होंने अपना Setting..
                                        हमरे साथ हो गया Cheating..
                                                        सब कुछ Losting..
                                                        सब कुछ Routing..
                                                        सब कुछ Looting..

          5th स्टेज ऑफ साइकिल (उनको भुला के फिर से Recovory...... )

                                   उनकी याद मे बुरी लगी Habiting..
                                                  देर तक अकेला Sitting..
                                                 बुरे ख्याल Thoughting..
                                                   फिर माइंड मे Getting..
                                      कि क्यूँ कर सुसाइड Commiting..(commit)
                                              फिर..
                                              यादों को किया Formating..
                                                   प्रोफाइल किया Editing..
                                                     फिर....
                                                    नेट करके Connecting..
                                                             हुए हम Starting..
                                    तब पूरा प्रोसेस फिर से Restarting..
                                                   तब जाकर...
                           "फेसबुकिया साइकिल" हुआ Completing..

                         और बढ़िया लगे तो कीजिएगा Commenting..

2 सितंबर 2012

तुम याद आती हो...




                                                   वक्त तेज़ी से निकला और
                                                   और तुम वक्त से तेज़ निकले...

                                                   जख्म तो तुम्हारे जैसे दगा दे गया,
                                                   पर निशानी का साथ अब भी है...
                                                   अब शामिल है,मुस्कुराना फितरत में...
                                                   और 'शायद' इसकी खबर किसी को नही,
                                                   कि पीछे एक दर्द अब भी है...
                                                 
                                                   मेरे-तुम्हारे हिस्से का,
                                                   जहाँ गुजरता था वक्त,
                                                   अब भी जा आता हूँ...
                                                   कुछ बदला नही, तुम्हारे सिवा
                                                   पर ढलता सूरज,
                                                   जाता है कहता हुआ...
                                                   कि...तुम्हारे जाने के दिन मे,
                                                   एक और दिन जुड़ गया |
                                                 
                                                   तुमसे अब कोई वास्ता नही,
                                                   पर आज तलक...
                                                   तुम्हारे हिस्से का वक्त यूँ ही...
                                                   'तन्हा' गुजरता है |

                                                   कभी-कभी सोचता हूँ,
                                                   कि काश...!
                                                   कोई ऐसा दिन भी आता,
                                                   तुम पास मेरे आती और कहती,
                                                   कि "कौन लगते हो तुम,मेरे??"
                                                   जो रोज सपनों मे चले आते हों |

                                                                                -"मन"

31 अगस्त 2012

सुन रे वो माई...

यह कविता मैंने, "सत्यमेव जयते" का पहला एपिसोड "कन्या भ्रुण हत्या" से प्रेरित होकर होकर लिखी थी,
'शायद' आपको पसंद आए |


सुन रे वो माई...                                              
तोरी अँगना में,इस छोटी सी गुड़िया को,
थोड़ी सी जगह दे...
तोरी आँचल की छाँव में,क्यूँ ना मै आऊँ,
इसकी तो वजह दे...
मुझको भी हक हैं,जीने को दुनिया,
ऐसी तू ना सज़ा दे...
सुन रे वो माई...
तोरी बिटिया को अब तो जीने दे |
तोरे ही घर-आँगन,
जहाँ आने को है मेरा बचपन,
जिसमें पड़ेगें ये नन्हें कदम |
जहाँ पलेगा मेरा सपना,
जहाँ कोई तो होगा 'अपना' |
फिर...
यादों का घरौंदा बनाऊँगी लाखों,
इक दिन जाऊँगी,छोड़ तुम सबको |
याद आयेंगे वो बचपन के फुदकते कदम,
फिर तू माई,भूल जायेगी सारे गम |
बस हैं इतनी सी गुहार कि...
सुन रे वो माई...
पिया घर जाने तक,थोड़ी सी जगह दे...
तोरी अँगना में,इस छोटी सी गुड़िया को,
बस थोड़ी सी जगह दे...

                          -"मन"

30 अगस्त 2012

'कल' 'आज' और 'कल'

एक जंग छिड़ी है...जंग-'कल' और 'कल' में
एक 'कल' जो बीत गया और एक 'कल' जो आने को हैं,जिसके पास 'आज' है |
पर उस 'कल' को मंजूर नही कि 'आज' साथ दे इस 'कल' का |
उस 'कल' को कुछ खोने का एहसास है,तो
इस 'कल' को कुछ पाने की चाहत
उस 'कल' ने हार को महसूस किया है,तो
इस 'कल' को जितने की आस है |
एक मरता नही..दूसरे को जीने की तमन्ना है |
कभी-कभी...
वह 'कल' इस 'आज' के दरवाजे से निहारता है,
आने वाले 'कल' को जिसकी बुनियाद 'आज' पर है,
वह 'कल' तैयार बैठा है,इस 'कल' पर हँसने के लिए |
कभी-कभी 'आज', दोहरी खेल खेलता है
कभी उस 'कल' के दर पर दस्तक देता है तो
कभी इस 'कल' की बाट जोहता है,
इस 'कल' को पसंद नही कि 'आज' उस 'कल' के पास जाए,
पर वह 'कल' ,इस 'आज' को अपनी तरफ खींचता है,
डराता है,सबक याद दिलाता है पर
यह 'कल' भी 'आज' का साथ नही छोड़ता है |
लेकिन अंत में वहीँ होता है जो 'आज' चाहता है,
उसको समझ में आ ही जाता है,
वह उठ खड़ा होता है,सबकुछ पीछे छोड़कर,
आगे की ओर देखता है,
कुछ पाने की उम्मीद लिए इस 'कल' की तरफ भागता है,
और...
फिर जीत होती है इस 'आज' की....
पर 'आज' भूलता नही,एहसान उस बीते हुए 'कल' की |

                                                          -"मन"

27 अगस्त 2012

एक महान गायक की याद में....

मुकेश चंद्र माथुर 
एक दिन बिक जायेगा,माटी के मोल....
जग में रह जायेगें प्यारे तेरे बोल....

जी आज है,हिन्दी फिल्म जगत के उस महान गायक की पुण्यतिथि जो अपनी अलग तरह की आवाज के लिए याद किए जाते हैं और याद किये
जाते रहेंगे | हम बात कर रहे हैं,फिल्म जगत में शो मैन राज कपूर की आवाज बनने वाले गायक मुकेश की,जिन्हें गायकी में फिल्म फेअर का सबसे पहला अवार्ड मिला था |
उनका पूरा नाम 'मुकेश चंद्र माथुर' था,लोकप्रिय तौर पर मुकेश | वो भी यहीं चाहते थे कि उन्हें 'मुकेश' कहकर बुलाया जाए |

22जुलाई 1923 को लुधियाना के एक कायस्थ परिवार में इनका जन्म हुआ |
पिता जोरावर चंद्र माथुर जो कि पेशे से एक इंजीनीयर थे और माता  चाँद रानी |10 बच्चों में मुकेश उनकी 6ठी संतान थे |उन्होंने दसवीं तक पढाई की और बाद में दिल्ली में सात महीने तक एक सरकारी नौकरी भी किया |

एक म्यूजिक टीचर जो उनकी बहन 'सुन्दर प्यारी' को गाना सिखाने आते थे,पर साथ-साथ मुकेश भी पास वाले कमरे में सीखते थे | मुकेश की आवाज की खूबी,दूर के रिश्तेदार- 'मोतीलाल' ने तब पहचाना जब उन्होंने मुकेश को अपनी बहन की शादी में गाते सुना | मोतीलाल उन्हें मुंबई ले आए,रहने का इंतजाम भी किया,,रियाज के लिए टीचर भी रखा,फिर जो दौर शुरू हुआ,वो आज ही के दिन 1976 में रुका |

मुंबई जाने के बाद 1941 में सबसे पहले उन्होंने "निर्दोष" नामक फिल्म में अभिनेता के तौर पर काम किया | बतौर गायक उन्होंने 1945 में आई फिल्म "पहली नज़र" से शुरू किया | गाना था-"दिल जलता है तो जलने दे"
इस गाने पर मोतीलाल ने अदाकारी की | मुकेश, K.L सहगल साहब को अपना आदर्श मानते थे,और इस गाने में उनकी झलक,मुकेश के आवाज के ऊपर साफ दिखाई दे रही थी | यह गाना जब K.L सहगल साहब ने सुना तो दंग रह गए,उनका कहना था कि "ये गाना मैंने कब गाया" |
इनके समकालीन गायक थे-मो. रफ़ी,मन्ना डे,तलत महमूद,किशोर कुमार | ये सब के सब एक से बढ़कर एक थे ,पर मुकेश जाने गए अपनी आवाज के भोलेपन से,मासूमियत से |

शुरू में मुकेश, अभिनेता दिलीप कुमार की आवाज बने,और मो.रफ़ी राज कुमार की | लेकिन बाद में म्यूजिक डायरेक्टर नौसाद साहब के साथ गाना गाने के बाद वे राज कपूर के नज़र में आए और फिर आगे से राज कपूर के लिए वे गाने लगे और मो. रफ़ी दिलीप कुमार के लिए |

उन्हें चार बार फिल्म फेअर का अवार्ड भी मिल चूका है | सबसे पहला मिला-गाना "सब कुछ सिखा हमने " फिल्म अनाड़ी(1959),फिर "सबसे बड़ा नादान वहीँ है" फिल्म पहचान(1970)से ,"जय बोलो बेईमान की"फिल्म बेईमान(1972)से ,"कभी-कभी मेरे दिल में "फिल्म कभी-कभी(1976) से के लिए |
उनके गाए हुए नौ गाने फिल्म फेअर अवार्ड के लिए नामांकित भी हुआ | 1974 में आई फिल्म 'रजनीगंधा' में उनके गाए गीत "कई बार यूँ भी देखा है" के लिए उन्हें बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला |
उन्हें तीन बार Bengal film journalists association awards भी मिल चूका है |
उन्होंने लगभग 1200 गाने को अपनी आवाज देकर संगीत-प्रेमियों को गुनगुनाने का मौका दिया | उन्होंने राज कपूर के 34 फिल्मों में 118 गाने,मनोज कुमार के 21 फिल्मों में 48 गाने,दिलीप कुमार के 6 फिल्मों में 19 गाने,देवानंद के 2 फिल्मों में 3 गाने,अमिताभ बच्चन के 4 फिल्मों में 10 गाने और राजेश खन्ना के 7 फिल्मों में 8 गाने गाए | वे 48 गजल,23 भजन,14 लोरी,109 गैर फ़िल्मी,92 फ़िल्मी और 115 गाने ऐसे भी गाए जो रिलीज नही हुए | उनके द्वारा गाई गई तुलसी रामायण ,आज भी लोगों के जेहन में ताज़ा हैं |

सबसे ज्यादा गाना उन्होंने राज कपूर के लिए गाए और उनकी आवाज राज कपूर की आवाज से बिल्कुल मिल जाती थी |
राज कपूर की फिल्म बरसात के बाद इनकी एक टीम बन गई थी जिसमें गीतकार "शैलेन्द्र" तथा "हसरत जयपुरी",गायक "मुकेश" और संगीतकार "शंकर-जयकिशन" शामिल थे | ये सभी एक दूसरे के अच्छे दोस्त भी थे और लगभग 18 वर्ष,एक लंबे अरसे तक एक साथ मिलकर काम करते रहें |
मुकेश,राज कपूर,शैलेन्द्र,हसरत जयपुरी,शंकर-जयकिशन
मुकेश ने अपने जीवन साथी के रूप में सरल त्रिवेदी रायचंद को चुना (1946 में) | उनके पांच बच्चे हैं-रीता,नितिन,नालिनी(स्वर्गवास),मोहनीश और नम्रता |
उनके स्वर्गवास के कुछ साल पहले यह अफवाह उड़ी थी कि वे तलाक ले चुके हैं,पर 22 जुलाई 1976  को (U.S.A  जाने के चार दिन पहले) उन्होंने अपनी शादी की 30वीं सालगिरह मनाया |
मुकेश और सरल त्रिवेदी रायचंद
उनके गाए कुछ तराने....जिसके लिए वे हमेशा संगीत प्रेमियों के दिल में घर बनाकर रहेंगे |

  • मेरा जूता हैं जापानी -(श्री 420) 
  • सावन का महीना,पवन करें शोर -(मिलन)
  • कहीं दूर जब दिन ढल जाए -(आनंद)
  • मै ना भूलूँगा -(रोटी,कपड़ा और मकान)
  • चाँद सी महबूबा,हो मेरी -(हिमालय की गोद में)
  • दोस्त,दोस्त ना रहा -(संगम)
  • दम भर जो उधर मुँह फेरे -(आवारा)
  • मैंने तेरे लिए है सात रंग के -(आनंद)
  • मै तो दीवाना -(मिलन)
  • ये मेरा दीवानापन है -(यहूदी)
  • आवारा हूँ -(आवारा)
  • जाने कहाँ गए वो दिन -(मेरा नाम जोकर)
  • हम तुमसे मोहब्बत करके सनम -(आवारा)
  • एक प्यार का नगमा -(शोर)
वे U.S.A के डिट्रोय्ट शहर में लाइव कन्सर्ट के लिए गए थे जब ह्रदय गति रुकने से उनकी मृत्यु हो गई ,53 साल के उम्र में वे इस दुनिया को अलविदा कह गए | बाकी का कन्सर्ट लता मंगेस्कर जी ने पूरा किया |
उनकी मृत्यु की खबर सुनते ही राज कपूर ने कहा था कि "मैंने अपनी आवाज खो दिया"
मो.रफ़ी साहब उस समय नौसाद के साथ कोई गाना रिकॉर्ड कर रहे थे,उन्होंने कहा था कि "एक बहुत अच्छा गायक,एक बहुत अच्छा इंसान,एक प्यारा साथी चला गया"
संगीतकार अनिल विश्वाश ने कहा था कि "मैंने अपने बेटों में से एक बेटे को खो दिया" 
उनका आखिरी रिकॉर्ड किया हुआ गाना था,फिल्म 'सत्यम,शिवम,सुन्दरम' का "चंचल,शीतल.कोमल"
"कभी-कभी मेरे दिल में " इस गाने के लिए उन्हें मरणोपरांत फिल्म फेअर का अवार्ड मिला था | इनके मृत्यु के बाद,इनके बोल से सजी फिल्म थी-धर्मवीर,अमर-अकबर-एंथोनी,चांदी-सोना,खेल-खिलाडी के दरिंदा,सत्यम-शिवम-सुन्दरम आदि |

कुछ यादें  जिन्हें बस महसूस किया जा सकता है-


राज कपूर और मुकेश 

मुकेश,इन्द्रा गाँधी से ऑटोग्राफ लेते हुए 


मुकेश,राज कपूर से अवार्ड लेते हुए
एक समारोह में
एक कन्सर्ट में ,कोलकत्ता 
मुकेश,राज कपूर एवं लता जी 
मुकेश और राज कपूर जी











राज कपूर एवं मुकेश जी
मुकेश,उनके बेटे नितिन एवं लता जी 
महेंद्र कपूर एवं मुकेश जी


28 अगस्त 1976 को अखबार
में उनकी मौत की खबर
अंतिम यात्रा की तैयारी


राज कपूर उदास मुद्रा में
मुखाग्नि देते हुए नितिन,साथ में राज कपूर जी

2003 में जारी डाक टिकट 
आज वे हमारे बीच नहीं है,पर उनकी आवाज अपने वक्त की बेमिशाल आवाज थी,आज भी है और कल भी रहेगी |
आज की पीढ़ी(कुछ को छोड़कर)भले उन्हें नही सुने,पर उनकी आवाज उनके देहांत के करीब 37 साल बाद भी उनके सुनने वाले के दिल में बसी हुई है,एक सुकून देती है |
"ओ जाने वाले लौट के आजा" गाने को सुनकर आज भी उनके चाहने वाले,उनकी राह देख रहे है...पर जाने वाले कभी वापस नही आते...यादों में रह जाते हैं... मन के किसी कोने में सिमटकर...



                                                                    (साभार-विकिपीडिया और मुकेश जी के official वेबसाइट से )