31 अगस्त 2012

सुन रे वो माई...

यह कविता मैंने, "सत्यमेव जयते" का पहला एपिसोड "कन्या भ्रुण हत्या" से प्रेरित होकर होकर लिखी थी,
'शायद' आपको पसंद आए |


सुन रे वो माई...                                              
तोरी अँगना में,इस छोटी सी गुड़िया को,
थोड़ी सी जगह दे...
तोरी आँचल की छाँव में,क्यूँ ना मै आऊँ,
इसकी तो वजह दे...
मुझको भी हक हैं,जीने को दुनिया,
ऐसी तू ना सज़ा दे...
सुन रे वो माई...
तोरी बिटिया को अब तो जीने दे |
तोरे ही घर-आँगन,
जहाँ आने को है मेरा बचपन,
जिसमें पड़ेगें ये नन्हें कदम |
जहाँ पलेगा मेरा सपना,
जहाँ कोई तो होगा 'अपना' |
फिर...
यादों का घरौंदा बनाऊँगी लाखों,
इक दिन जाऊँगी,छोड़ तुम सबको |
याद आयेंगे वो बचपन के फुदकते कदम,
फिर तू माई,भूल जायेगी सारे गम |
बस हैं इतनी सी गुहार कि...
सुन रे वो माई...
पिया घर जाने तक,थोड़ी सी जगह दे...
तोरी अँगना में,इस छोटी सी गुड़िया को,
बस थोड़ी सी जगह दे...

                          -"मन"

30 अगस्त 2012

'कल' 'आज' और 'कल'

एक जंग छिड़ी है...जंग-'कल' और 'कल' में
एक 'कल' जो बीत गया और एक 'कल' जो आने को हैं,जिसके पास 'आज' है |
पर उस 'कल' को मंजूर नही कि 'आज' साथ दे इस 'कल' का |
उस 'कल' को कुछ खोने का एहसास है,तो
इस 'कल' को कुछ पाने की चाहत
उस 'कल' ने हार को महसूस किया है,तो
इस 'कल' को जितने की आस है |
एक मरता नही..दूसरे को जीने की तमन्ना है |
कभी-कभी...
वह 'कल' इस 'आज' के दरवाजे से निहारता है,
आने वाले 'कल' को जिसकी बुनियाद 'आज' पर है,
वह 'कल' तैयार बैठा है,इस 'कल' पर हँसने के लिए |
कभी-कभी 'आज', दोहरी खेल खेलता है
कभी उस 'कल' के दर पर दस्तक देता है तो
कभी इस 'कल' की बाट जोहता है,
इस 'कल' को पसंद नही कि 'आज' उस 'कल' के पास जाए,
पर वह 'कल' ,इस 'आज' को अपनी तरफ खींचता है,
डराता है,सबक याद दिलाता है पर
यह 'कल' भी 'आज' का साथ नही छोड़ता है |
लेकिन अंत में वहीँ होता है जो 'आज' चाहता है,
उसको समझ में आ ही जाता है,
वह उठ खड़ा होता है,सबकुछ पीछे छोड़कर,
आगे की ओर देखता है,
कुछ पाने की उम्मीद लिए इस 'कल' की तरफ भागता है,
और...
फिर जीत होती है इस 'आज' की....
पर 'आज' भूलता नही,एहसान उस बीते हुए 'कल' की |

                                                          -"मन"

27 अगस्त 2012

एक महान गायक की याद में....

मुकेश चंद्र माथुर 
एक दिन बिक जायेगा,माटी के मोल....
जग में रह जायेगें प्यारे तेरे बोल....

जी आज है,हिन्दी फिल्म जगत के उस महान गायक की पुण्यतिथि जो अपनी अलग तरह की आवाज के लिए याद किए जाते हैं और याद किये
जाते रहेंगे | हम बात कर रहे हैं,फिल्म जगत में शो मैन राज कपूर की आवाज बनने वाले गायक मुकेश की,जिन्हें गायकी में फिल्म फेअर का सबसे पहला अवार्ड मिला था |
उनका पूरा नाम 'मुकेश चंद्र माथुर' था,लोकप्रिय तौर पर मुकेश | वो भी यहीं चाहते थे कि उन्हें 'मुकेश' कहकर बुलाया जाए |

22जुलाई 1923 को लुधियाना के एक कायस्थ परिवार में इनका जन्म हुआ |
पिता जोरावर चंद्र माथुर जो कि पेशे से एक इंजीनीयर थे और माता  चाँद रानी |10 बच्चों में मुकेश उनकी 6ठी संतान थे |उन्होंने दसवीं तक पढाई की और बाद में दिल्ली में सात महीने तक एक सरकारी नौकरी भी किया |

एक म्यूजिक टीचर जो उनकी बहन 'सुन्दर प्यारी' को गाना सिखाने आते थे,पर साथ-साथ मुकेश भी पास वाले कमरे में सीखते थे | मुकेश की आवाज की खूबी,दूर के रिश्तेदार- 'मोतीलाल' ने तब पहचाना जब उन्होंने मुकेश को अपनी बहन की शादी में गाते सुना | मोतीलाल उन्हें मुंबई ले आए,रहने का इंतजाम भी किया,,रियाज के लिए टीचर भी रखा,फिर जो दौर शुरू हुआ,वो आज ही के दिन 1976 में रुका |

मुंबई जाने के बाद 1941 में सबसे पहले उन्होंने "निर्दोष" नामक फिल्म में अभिनेता के तौर पर काम किया | बतौर गायक उन्होंने 1945 में आई फिल्म "पहली नज़र" से शुरू किया | गाना था-"दिल जलता है तो जलने दे"
इस गाने पर मोतीलाल ने अदाकारी की | मुकेश, K.L सहगल साहब को अपना आदर्श मानते थे,और इस गाने में उनकी झलक,मुकेश के आवाज के ऊपर साफ दिखाई दे रही थी | यह गाना जब K.L सहगल साहब ने सुना तो दंग रह गए,उनका कहना था कि "ये गाना मैंने कब गाया" |
इनके समकालीन गायक थे-मो. रफ़ी,मन्ना डे,तलत महमूद,किशोर कुमार | ये सब के सब एक से बढ़कर एक थे ,पर मुकेश जाने गए अपनी आवाज के भोलेपन से,मासूमियत से |

शुरू में मुकेश, अभिनेता दिलीप कुमार की आवाज बने,और मो.रफ़ी राज कुमार की | लेकिन बाद में म्यूजिक डायरेक्टर नौसाद साहब के साथ गाना गाने के बाद वे राज कपूर के नज़र में आए और फिर आगे से राज कपूर के लिए वे गाने लगे और मो. रफ़ी दिलीप कुमार के लिए |

उन्हें चार बार फिल्म फेअर का अवार्ड भी मिल चूका है | सबसे पहला मिला-गाना "सब कुछ सिखा हमने " फिल्म अनाड़ी(1959),फिर "सबसे बड़ा नादान वहीँ है" फिल्म पहचान(1970)से ,"जय बोलो बेईमान की"फिल्म बेईमान(1972)से ,"कभी-कभी मेरे दिल में "फिल्म कभी-कभी(1976) से के लिए |
उनके गाए हुए नौ गाने फिल्म फेअर अवार्ड के लिए नामांकित भी हुआ | 1974 में आई फिल्म 'रजनीगंधा' में उनके गाए गीत "कई बार यूँ भी देखा है" के लिए उन्हें बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला |
उन्हें तीन बार Bengal film journalists association awards भी मिल चूका है |
उन्होंने लगभग 1200 गाने को अपनी आवाज देकर संगीत-प्रेमियों को गुनगुनाने का मौका दिया | उन्होंने राज कपूर के 34 फिल्मों में 118 गाने,मनोज कुमार के 21 फिल्मों में 48 गाने,दिलीप कुमार के 6 फिल्मों में 19 गाने,देवानंद के 2 फिल्मों में 3 गाने,अमिताभ बच्चन के 4 फिल्मों में 10 गाने और राजेश खन्ना के 7 फिल्मों में 8 गाने गाए | वे 48 गजल,23 भजन,14 लोरी,109 गैर फ़िल्मी,92 फ़िल्मी और 115 गाने ऐसे भी गाए जो रिलीज नही हुए | उनके द्वारा गाई गई तुलसी रामायण ,आज भी लोगों के जेहन में ताज़ा हैं |

सबसे ज्यादा गाना उन्होंने राज कपूर के लिए गाए और उनकी आवाज राज कपूर की आवाज से बिल्कुल मिल जाती थी |
राज कपूर की फिल्म बरसात के बाद इनकी एक टीम बन गई थी जिसमें गीतकार "शैलेन्द्र" तथा "हसरत जयपुरी",गायक "मुकेश" और संगीतकार "शंकर-जयकिशन" शामिल थे | ये सभी एक दूसरे के अच्छे दोस्त भी थे और लगभग 18 वर्ष,एक लंबे अरसे तक एक साथ मिलकर काम करते रहें |
मुकेश,राज कपूर,शैलेन्द्र,हसरत जयपुरी,शंकर-जयकिशन
मुकेश ने अपने जीवन साथी के रूप में सरल त्रिवेदी रायचंद को चुना (1946 में) | उनके पांच बच्चे हैं-रीता,नितिन,नालिनी(स्वर्गवास),मोहनीश और नम्रता |
उनके स्वर्गवास के कुछ साल पहले यह अफवाह उड़ी थी कि वे तलाक ले चुके हैं,पर 22 जुलाई 1976  को (U.S.A  जाने के चार दिन पहले) उन्होंने अपनी शादी की 30वीं सालगिरह मनाया |
मुकेश और सरल त्रिवेदी रायचंद
उनके गाए कुछ तराने....जिसके लिए वे हमेशा संगीत प्रेमियों के दिल में घर बनाकर रहेंगे |

  • मेरा जूता हैं जापानी -(श्री 420) 
  • सावन का महीना,पवन करें शोर -(मिलन)
  • कहीं दूर जब दिन ढल जाए -(आनंद)
  • मै ना भूलूँगा -(रोटी,कपड़ा और मकान)
  • चाँद सी महबूबा,हो मेरी -(हिमालय की गोद में)
  • दोस्त,दोस्त ना रहा -(संगम)
  • दम भर जो उधर मुँह फेरे -(आवारा)
  • मैंने तेरे लिए है सात रंग के -(आनंद)
  • मै तो दीवाना -(मिलन)
  • ये मेरा दीवानापन है -(यहूदी)
  • आवारा हूँ -(आवारा)
  • जाने कहाँ गए वो दिन -(मेरा नाम जोकर)
  • हम तुमसे मोहब्बत करके सनम -(आवारा)
  • एक प्यार का नगमा -(शोर)
वे U.S.A के डिट्रोय्ट शहर में लाइव कन्सर्ट के लिए गए थे जब ह्रदय गति रुकने से उनकी मृत्यु हो गई ,53 साल के उम्र में वे इस दुनिया को अलविदा कह गए | बाकी का कन्सर्ट लता मंगेस्कर जी ने पूरा किया |
उनकी मृत्यु की खबर सुनते ही राज कपूर ने कहा था कि "मैंने अपनी आवाज खो दिया"
मो.रफ़ी साहब उस समय नौसाद के साथ कोई गाना रिकॉर्ड कर रहे थे,उन्होंने कहा था कि "एक बहुत अच्छा गायक,एक बहुत अच्छा इंसान,एक प्यारा साथी चला गया"
संगीतकार अनिल विश्वाश ने कहा था कि "मैंने अपने बेटों में से एक बेटे को खो दिया" 
उनका आखिरी रिकॉर्ड किया हुआ गाना था,फिल्म 'सत्यम,शिवम,सुन्दरम' का "चंचल,शीतल.कोमल"
"कभी-कभी मेरे दिल में " इस गाने के लिए उन्हें मरणोपरांत फिल्म फेअर का अवार्ड मिला था | इनके मृत्यु के बाद,इनके बोल से सजी फिल्म थी-धर्मवीर,अमर-अकबर-एंथोनी,चांदी-सोना,खेल-खिलाडी के दरिंदा,सत्यम-शिवम-सुन्दरम आदि |

कुछ यादें  जिन्हें बस महसूस किया जा सकता है-


राज कपूर और मुकेश 

मुकेश,इन्द्रा गाँधी से ऑटोग्राफ लेते हुए 


मुकेश,राज कपूर से अवार्ड लेते हुए
एक समारोह में
एक कन्सर्ट में ,कोलकत्ता 
मुकेश,राज कपूर एवं लता जी 
मुकेश और राज कपूर जी











राज कपूर एवं मुकेश जी
मुकेश,उनके बेटे नितिन एवं लता जी 
महेंद्र कपूर एवं मुकेश जी


28 अगस्त 1976 को अखबार
में उनकी मौत की खबर
अंतिम यात्रा की तैयारी


राज कपूर उदास मुद्रा में
मुखाग्नि देते हुए नितिन,साथ में राज कपूर जी

2003 में जारी डाक टिकट 
आज वे हमारे बीच नहीं है,पर उनकी आवाज अपने वक्त की बेमिशाल आवाज थी,आज भी है और कल भी रहेगी |
आज की पीढ़ी(कुछ को छोड़कर)भले उन्हें नही सुने,पर उनकी आवाज उनके देहांत के करीब 37 साल बाद भी उनके सुनने वाले के दिल में बसी हुई है,एक सुकून देती है |
"ओ जाने वाले लौट के आजा" गाने को सुनकर आज भी उनके चाहने वाले,उनकी राह देख रहे है...पर जाने वाले कभी वापस नही आते...यादों में रह जाते हैं... मन के किसी कोने में सिमटकर...



                                                                    (साभार-विकिपीडिया और मुकेश जी के official वेबसाइट से )

26 अगस्त 2012

चाँदनी रातों को याद आऐगें...

वे फिर से चले गए...उसी के पास...जहाँ सबसे पहले उन्होंने ही अपनी 
उपस्थिति दर्ज करवायी थी...
नील आर्मस्ट्रांग
चाँद पर पहला कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रांग,इस दुनिया को अलविदा कह गए | एक अमेरिकी नौसेना के पायलट,जो बाद में अपनी मेहनत के बल-बूते से नासा के अभियान से जुड़े और वह गौरव हासिल किया जिसके कारण आज पूरी दुनिया उनको याद कर रही है, भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रही हैं |
हाल ही में उन्होंने 5 अगस्त को अपना 82वाँ जन्मदिन मनाया था और कुछ दिन पहले ही उनकी बाईपास सर्जरी हुई थी |




चाँद की सतह पर

इनका पहला मिशन 1966 में जेमिनी-8 नामक अंतरिक्षयान से शुरू हुआ था और दूसरा मिशन था 1969 में अपोलो-11,जिसके द्वारा वे और उनके दो वैज्ञानिक साथी (एडलिन एल्ड्रिन और माइकल कॉलिंस ) के साथ सर्वप्रथम 20 जुलाई 1969 को चाँद की सैर की थी पर चाँद की सतह पर पहला कदम रखने का गौरव मिला था नील आर्मस्ट्रांग को | वे उस समय 38 साल के थे |तीन घंटे चाँद पर चहलकदमी के बाद उन्होंने रेडियो के जरिए ,यह संदेश पृथ्वी पर भेजा था कि "यह मनुष्य के लिए छोटा सा कदम है लेकिन मानवता के लिए बहुत बड़ा कदम है "
अपने दल के दूसरे साथियोँ सहित उन्हें अमेरीका का सर्वोच्च नागरिक
सम्मान "काँग्रेशनल मेडल" से भी नवाजा जा चूका हैं |      

चाँद पर उनका पद्चिन्ह 

उनके परिवार ने एक बयान में कहा है कि "हमें एक बहुत अच्छे 
इंसान के निधन पर दुःख है लेकिन हमें उनकी शानदार जिंदगी पर 
गर्व है और आशा है कि यह दुनियाभर के युवाओं में मेहनत करके 
अपने सपने साकार करने के लिए उदाहरण साबित होगा"                                


  सबसे पहले गए थे चाँद पर...                    
  कल फिर चल दिए उसी तरफ...                                                
  हमारी यादों में रह गए...
  धरती को सूना कर.......!!!


हाल ही की तस्वीर 





वे बस हमारी यादों में रह जाएँगे,पर जब-जब हमारी नज़रे चाँदनी रातों को चाँद पर पड़ेगी ...मन का कोई कोना बस उनके लिए ही सोचेगा और कोशिश करेगा कि चाँद के दाग में कहीं उनका पद्चिन्ह दिख जाए |
और हमसब यह वादा करते हैं कि जब भी हम चाँद की तरफ देखेंगे,हमारी पलकें कुछ पल के लिए उनकी याद में झुक जाएँगी | 


उनकी याद में 

25 अगस्त 2012

ऐसे भी होते हैं |

अरे भाई,तुम्हारे रिजल्ट का क्या रहा ??(कभी-कभी जब कोई,किसी और से रिजल्ट के बारे में पूछता है इसका मतलब है कि उस पूछने वाले का रिजल्ट बहुत बढ़िया आया है |)
"बहुत बढ़िया रहा,इतना बढ़िया कि अब क्लास के टॉपर्स के बीच कॉलर उठा के खड़ा हो सकता हूँ ...टीचरों से नज़र मिला सकता हूँ...इतना बढ़िया कि मम्मी-पप्पा अपने दोस्तों के बीच बोल सके कि "मेरे बेटे की इतनी बनी हैं,अब क्या बताए बचपन से ही बड़ा होनहार है,बिल्कुल मेरे ऊपर गया हैं जी ..."
और बात यहीं पर खत्म नही होती है बॉस ...हमरे पप्पा इतने खुश हुए कि अगले ही दिन, हमको एक फुल फीचर्स वाला चाइनीज मोबाइल और एगो फटफटिया दिला दिए |
चाइनीज मोबाइल के बारे में तो जानता ही होगा ,,,अरे वहीँ जिसमें गाना बजता हैं तो माहौल को एकदमे गनगना देता हैं | अब त चाइनीज का ही सब खेला है बाजार में,,,तुम एहिसे मिला लो कि अब तो मिस वर्ल्ड भी चाइनीज प्रोडक्ट ही हैं |और बात रही फटफटिया कि त ओहके बारे में भी बताई देत हैं ....सुबह देखा ही होगा कॉलेज उसी से त आए थे |
आँखों पर साइज़ से चार गुना ज्यादा बड़ा चश्मा...दाहिने हाथ में सिकड़ी और बाएँ में पट्टा....मुँह में गुटखा की जगह हैपीडेंट....(अच्छी संगत होने पर गुटखा भी होगा ) दाहिना कंधा,बाएँ कंधे के रेस्पेक्ट में साढ़े तीन इंच ऊपर उठाए हुए...छाती को फुल दम लगा के फुलाए हुए....रुमाल को गर्दन और कॉलर के बीच में फंसा के...
एकदम लुक देते हुए कॉलेज में एन्टर किये थे ....ससुरा गेटकीपर भी गेट को धड़ाक से ओपेन किया जबकि हम पूरे सवा दो घंटे लेट आए थे | और साथ में फटफटिया क्या लाएं,,,इतने सारे यार-दोस्त हो गए कि पूछो ही मत |बस एतना सुन लो कि पप्पा को बार-बार थैंक्यू बोलने का मन कर रहा है |
तुम अपनी भी तो सुनाओ लल्ला ?...बस खाली हमी बकत जात हैं |"
क्या कीजियेगा जानकार,,,बस पास हो गए,और हम भी यही चाहते थे......हम तो एक ही बात जानते हैं कि अगर ज्यादा पढ़ने लगेंगे तो ज्यादा नंबर आने लगेगा,,,जब ज्यादा नंबर आने लगेगा तो हम भी टॉप करने लगेंगे ,,,जब टॉप करने लगेंगे तो पापा जी खुश होकर हमको भी कुछ ना कुछ देने लगेंगे |इसीलिए हम पढ़ते ही नही हैं ,,,ना पढेंगे,,ना टॉप करेंगे..ना पापा जी का पैसा खर्च होगा |हम खाली देखने में ही ढपोल लगते हैं |
तो कुल मिला बात के यहीं हैं कि हम पापा जी का पैसा बचा रहें हैं |और पापा जी का बार-बार 'थैंक्यू बेटा जी' कहने का मन करता है |"

24 अगस्त 2012

"रुतबा"


                                                               कल की यादें,
                                                               पलकों पर बन के बूँदे,
                                                               आने की होड़ में हैं...

                                                               कि
                                                               कुछ यूँ बनाया है रुतबा अपना,

                                                               हमारी साँसे तो 'आज' की है,
                                                               पर हम जीते 'कल' में हैं |

                                                                                          -"मन"

23 अगस्त 2012

सुगनी

यह मेरी पहली कहानी है,और गलतियों की भरपूर गुंजाइश है | ज्यादा बड़ी तो नहीं है, पर इसके बावजूद आपसे अनुरोध है कि पूरी कहानी पढ़े और हो सके तो आप अपने सुझावों से हमें अवगत कराएँ  | आभार...

                                                            "सुगनी"

मेरे चाचा-चाची जो दो बच्चों के साथ गाँव के आखिरी छोर पर कहने मात्र के दो मंजिला मकान में रहते थे | बड़ी लड़की सुगनी तथा छोटा लड़का मोनू |कहा जाता है-छोटा परिवार,सुखी परिवार लेकिन चाचा-चाची के विचार पूर्ण रूप से अंधविश्वासों से घिरा हुआ था जो कि उनकी नज़र में तो वे सुखी परिवार थे किन्तु दूसरों की नज़र में उन्हें दुखी परिवार वाला दर्जा मिला था | खाने-पीने की कोई चिंता तो नहीं थी,पर इस क्षेत्र में सोचने से कभी उन्हें छुटकारा नही मिल पाया था | मोनू, जो कहने मात्र का छोटा था,पर था एकदम चालू | राजकुमार की तरह हैशियत,जो कि हर एक मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार में लड़का-लड़की के प्रति व्यवहार से अनुमान लगाया जा सकता हैं |

इसके सर्वथा विपरीत सुगनी का रहन-सहन,उसके प्रति बर्ताव को देखकर शायद ही कोई हो जो इस परिवार के  लड़कियों के प्रति सोच वाली मानसिकता को पहचानने में गलती करें |
सुगनी तेज-तरार,चंचल,हँसमुख,भावुक,आँखों में काम करने का स्पष्ट झलकता डर और साथ में काम के बदले थोड़ा सा शाबासी पाने की उम्मीद लिए बैठे उत्सुक मन,इन सबके साथ अपने-आप को इस अंधविश्वासी माहौल में टिकाए रखने के लिए सहनशक्ति जो कि इस छोटी सी उम्र में एक सम्पूर्ण भारतीय नारी का स्वरूप झलकाता था |
चाची जो कि सुगनी से ऐसे कामों की उम्मीद रखती जो उसके बस की थी ही नहीं,पर फिर भी सुगनी काम को पूरे मन से करती | कोई काम सही से ना होने पर चाची के ताने और साथ में पिटाई,क्योंकि उम्मीद के मुताबिक काम ना होने पर दुःख होता हैं,और इस दुःख के परिणामस्वरूप सुगनी पर आफत गिरती |

सुगनी और मोनू दोनो गाँव के दूसरे छोर पर कहने मात्र के सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते थे | सुगनी पढ़ने कम और मोनू की बस्ता-बोरी उठाने के लिए ज्यादा जाती थी | बस्ता-बोरी उठाने की बात ना होती तो शायद चाची, सुगनी को कभी स्कूल का दर्शन भी ना करने देती |
मध्यांतर में जब वे खाना खाने को आते तो सुगनी को पहले घर के दो-चार काम निपटाने पड़ते जो कि उससे अपेक्षा नही की जा सकती थी, तब कहीं जाकर उसे खाना मिलता | कई बार वो काम करने के डर से स्कूल में भूखी ही रह जाती थी,फिर शाम को दो की जगह चार काम करने पड़ते थे तत्पश्चात ठन्डे खाने के साथ-साथ चाची की मार भी खानी पड़ती थी |
फिर भी सुगनी खुश थी और अपने-आप को कही कोने में अकेला पाती तो, आशुओं के सहारे अपने दर्द को निकाल लेती थी और इस बात से समझा-बुझाकर चुप करा लेती कि-"लड़की हूँ ना इसलिए" |

हर बार कि तरह इस बार भी होली-दिवाली आई और चली गई लेकिन सुगनी के लिए यह भी एक आम दिन के जैसा ही था,इन दिनों उसे और अधिक काम करना पड़ता तथा अपने भाई और पड़ोस के इठलाते बच्चों की खुशी देखकर ही खुश हो लेती | पर इस खुशी के पिछले दरवाजे पर एक दर्द छिपा बैठा था,जिसके बारे में केवल सुगनी का मन ही जानता था , इस दर्द की भनक शायद ही कभी चाचा-चाची को लग पाता |

एक दिन चाची की अनुपस्थिति में सुगनी को मोनू के साथ कौड़ी खेलने का मौका मिला | खेलते-खेलते किसी बात पर मोनू,सुगनी से उलझ पड़ा और दनादन लात-घुसे बरसाने लगा ,सुगनी सहती रही फिर बाद में उसने मोनू को धक्का देकर गिरा दिया | मोनू गिरते ही जोर-जोर से बनावटी आँसू का सहारा लेते हुए लगा रोने , तभी चाची आ धमकी, मोनू को सँभालते हुए सुगनी पर तडातड चांटों की बरसात कर दिया |सुगनी की धुनाई होती जा रही थी,आँसू का अता-पता नही था,सिसकियाँ जोर पकड़ रही थी और मोनू भी अपनी माँ का यह रूप देखकर विदक गया,,,पर अंततः खुश था |
अगले दिन से सुगनी के लिए खूब सारे काम साथ में ताने और धुनाई|
मेरा मन भी कहता था कि सुगनी अकेले में जरुर सोचती होगी कि -"मेरी माँ भी तो एक लड़की ही हैं,फिर सोचने के नज़रिए में इतना फर्क क्यूँ??"
पिटाई के कारण सुगनी का मिजाज थोड़ा नरम पड़ गया था पर चाची के नज़र में वो भी काम से छुटकारा पाने का एक बहाना ही प्रतीत हो रहा था पर सुगनी को पता था कि कोई उसकी नही सुनेगा सो वो भी काम करने में रमी रहती थी |

कुछ दिन से सुगनी दिखाई नही दे रही थी,खबर लेने पर पता चल कि वो तीन दिन से गायब है |सबने आधे-अधूरे मन से खोजने का प्रयत्न किया,पर कोई नतीजा नही |जबकि मोनू अनजान था,अपनी दुनिया में मस्त था |
काफी कहने के बाद चाचा ने पुलिश चौकी में मामला दर्ज करवाया | कैसे भी कर के कुछ दिन कटे,चाची को सुगनी से ज्यादा काम की चिंता थी |
कुछ दिनों के बाद पुलिश चौकी से खबर आई कि सुगनी को पुलिश वालों ने ढूँढ लिया हैं | चाची यह सुनते ही खुश हों गई पर इस खुशी के पीछे वजह कुछ और ही था |
चाचा-चाची जब सुगनी को लेने चौकी पहुँचे,तो उन्हें आश्चर्य का कोई ठिकाना ही नही रहा,दोनो स्तब्ध रह गए...क्योंकि सुगनी ने साफ़-साफ़ चाचा-चाची को अपना माता-पिता मानने से इंकार कर दिया था |

वाह रे....नियति और धन्य हैं ऐसे माता-पिता...|

22 अगस्त 2012

पाने की धुन में...

तेरे ही यादों के सहारे
मिले हैं जीने के इशारे
तेरा ना होना भी होना हैं,
जैसे कि तुझे खोकर भी पाना हैं

तेरे संग जो पल बिताए,
सब भूले ना भुलाए
अगर याद ना भी करना चाहूँ,
तो पलकों पर दो बूंद बनके आए

याद करते-करते उन लम्हों को,
अब लम्हा ठहर सा जाता हैं
पाने की धुन में ये भूल गए,
कि यहाँ 'कुछ' खोना भी होता हैं |
           
                      -"मन"

21 अगस्त 2012

जितने तारे,उतने फोटू...

आकाश में कितने तारे मौजूद हैं?
जितने कि कल (20 अगस्त) अखबार में राजीव गाँधी जी के फोटो थे |

कल के अखबार के लगभग सभी पेज पर,जिधर देखो उधर राजीव गाँधी जी निहार रहे थे |
आपका जीवन ,हमारी प्रेरणा...... सदभावना दिवस...... उनके चेहरे पर एक भाव था सदभावना का...... भारत के पूर्व प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर उन्हें शत-शत नमन...... आपकी दृष्टि ,हमारा लक्ष्य...... उन्होंने अपने सपनों के भारत को अनेकों का स्वप्निल गंतव्य बनाया...... सच हुआ सपना एक दूरदर्शी का(???)...... भारत रत्न...... राजीव गाँधी अक्षय उर्जा दिवस...... गाँव-गाँव बिजली,घर-घर प्रकाश(?),,अक्षय उर्जा से भारत विकास......
(और इस बार के अक्षय उर्जा दिवस की उपलब्धि थी- पवार ग्रिड का फेल होना और 21-22 राज्यों में अँधेरा छाना |)

चलिए मुदे पे आते हैं- बेशक राजीव गाँधी जी ने एक ऐसे भारत निर्माण की कल्पना की थी जहाँ हमे अपनी स्वतंत्रता पर गर्व हों,हम कृषि और तकनिकी में आत्मनिर्भर हों,हम गरीबी तथा सामाजिक-आर्थिक असमानता के बंधनों से मुक्त हों| वे काफी हद तक अपने मिशन में कामयाब भी हुए|

पर आज सरकार(और हम भी) यह क्यूँ भूल जाती हैं कि जिस भारत का स्वरुप राजीव गाँधी जी ने बदला वो भारत उनके हाथ में कैसे और कहाँ से आया ??? यह आया भगत सिंह,राजगुरु,सुखदेव,चंद्रशेखर आज़ाद, रामप्रसाद बिस्मिल,खुदीराम बोस और ना जाने कितने ही आज़ादी के दीवानों के कुर्बानी,बलिदान और समर्पण से| और सरकार इनके जन्मदिन और शहीदी पर इनके लिए अखबार का एक कोना भी रखती|

हाल ही में 11 अगस्त को खुदीराम बोस का 104वाँ शहीदी दिवस था,सरकार कहाँ थी? राजीव गाँधी के जन्मदिन के पोस्टर बनाने में????

खुदीराम बोस के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने ही क्रांति का पहला बम धमाका किया था| "भागवत गीता" हाथ में लेकर मात्र 18 साल की उम्र में फांसी पर लटकने वाले देश के सबसे कम उम्र के क्रन्तिकारी थे|
वे इसी भारत के लिए कुर्बान हुए ,जहाँ उन्हें आज याद तक भी नहीं किया जाता|

"खुदीराम बोस अंग्रेजो के गिरफ्त में(मुज़फरपुर जेल)" 
24 अगस्त को राजगुरु का जन्मदिन है| अब उस दिन देखना है,सरकार कितना सरीक होती  है जन्मदिन मनाने मे......
28 सितम्बर को भगत सिंह का जन्मदिन भी आ रहा है ...भूलिएगा नहीं |

14 अगस्त 2012

एक और स्वतंत्रता दिवस...!

एक और स्वतंत्रता दिवस.....एक और मौका जब हम "आई लव माई इंडिया" कहकर यह जता सके कि भाई हमें भी इंडिया की बड़ी चिंता हैं .....(सच मे हैं क्या??)

हमें आज़ाद (?) हुए 65 वर्ष हो गए ,और इन 65 वर्षों में एक काम करने वाला व्यक्ति अपने जीवन का दो तिहाई से अधिक हिस्सा  समाप्त कर चूका होता है (अब तो 65-70 मे ही निकल लेते हैं)| आज़ादी के इन 65 वर्षों में हमने क्या पाया और क्या खोया ??
हर साल हम 15 अगस्त को आज़ाद होते हैं,तथा अगले ही दिन से हम फिर भ्रष्टाचार, बेईमानी,
बेरोजगारी,हिंसा,अशिक्षा,असमानता,गरीबी,महंगाई,आतंकवाद,नक्सलवाद (लिस्ट अभी बाकी है...) की गुलामी तले  होते हैं |


प्रथम स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने दृढ़ प्रतिज्ञा लेते हुए यह घोषणा की थी कि "हम निश्चय ही एक शक्तिशाली भारत का निर्माण करेंगे। यह भारत न केवल विचारों में, कार्यो में और संस्कृति में शक्तिशाली होगा, बल्कि मानवता की सेवा के मामले में भी आगे होगा"
और आज UNDP (united nations devlopment programme) द्वारा जारी मानव विकास सूचकांक वाले देशों मे भारत का स्थान आता है 134वें नंबर पर | पंडित जवाहर लाल नेहरु ने क्या सोचा था और हम किस गली जा रहे हैं ???

सरकार लगातार जता रही है कि उसका लक्ष्य 8-10 प्रतिशत आर्थिक
विकास हासिल करना है, हालांकि इससे महज 4-5 फीसदी लोगों को ही लाभ होना है, फिर हमारी सरकार मात्र इतने से खुश क्यों हो रही है? भारत में अब भी सर्वाधिक गरीबों और निरक्षर लोगों का देश बना हुआ है |कुपोषण से ग्रस्त लोगों की संख्या के मामले में भी हम विश्व में सबसे आगे हैं।और भ्रस्टाचार के मामले तो आप देख ही रहे हैं |
जिन मोर्चों पर हमें मजबूत होना था वहाँ हम निरंतर कमजोर होते गए, और जिन मोर्चों को पनपने ही नहीं देना था वहाँ हमने लापरवाही से उनके लिए भरपूर 'स्पेस' दिया |
संभवत: कुछ क्षेत्रों में हम बाकी से आगे भी हैं, लेकिन यह प्रगति हमारी जरूरतों और क्षमता के मुकाबले बहुत कम है। 

अब देश में ऐसी कौन सी चीज बची है जो नहीं बिकतीं? चुनाव लड़ना अब हिंसा, धन और बाहुबल का खेल होकर रह गया है। आज हर बात को वोट,जाति और धर्म के चश्मे से ही क्यूँ देखा जाता हैं???? यहाँ अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और गरीब.....पर एक बात हैं कि वोट के टाइम पर,गरीब सबसे ज्यादा अमीर बन जाता हैं...मानते हैं कि नहीं???? 


आज कसाब को बिरयानी खिलाया जा रहा हैं,,पर भारत में बहुतों की संख्या ऐसी हैं कि उनके पास पीने को पानी तक नही हैं | आप खुद सोच सकते हैं कि उस देश का क्या होगा "जहाँ बूढ़े तो देश चला रहे हैं और जवान फेसबुक" 

हमसब तो यह मान के बैठे हैं कि "भारत का नाम रोशन करने की जिम्मेदारी सिर्फ सचिन तेंदुलकर ने ले रखी हैं" लेकिन इससे होगा कुछ नही, हम चाहते हैं कि हमारे देश का नाम अग्रणी देशो में आए,तो हमसब को एक साथ आगे आना पड़ेगा,कुछ करना पड़ेगा, तब कहीं जाकर इस दिन की उपयोगिता नज़र आएगीं| आखिर आमिर खान भी कब तक कहते रहेंगे|

स्वतंत्रता दिवस कि हार्दिक शुभकामनाएँ...!यह मानते हुए कि हम सचिन की बोझ को "थोड़ा सा" कम करेंगे|
और अंत में...."सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा......."

                                   -मन्टू

12 अगस्त 2012

"अपने"

गैर हुए बगैर कारण के,
अपनों की नज़र मे...
अपनों को सहारा दिया,
गैरों से लड़कर,
अपनों ने ही हरा दिया,
हमें गैर समझकर...

जिनको, सोचा था कि देंगे साथ,
आखिरी दम तक,
साथ भी दिया,
पर मतलब निकल जाने के
दम भर पहले तक...

सुना हैं...
कुछ खून का रिश्ता भी होता है,
पर अब जाने हैं कि,
जिंदगी के राश्ते मे नही,
होता है बस कहने तक...

हमे अपनों ने ही लुटा,
ऐसे तो गैरों मे भी दम था,
पर वे सहम गए,
क्यूंकि,
हमारे अपनों की लंबी थी कतार,
उन्होंने सोचा कि...क्या फायदा ?
लूटे हुए को लूटकर...!

                     -"मन"

11 अगस्त 2012

कछुए की सच्चाई

आपको पता है कि कछुआ अपने आस-पास कोई आहट पाते ही अपना आँख,नाक,कान,मुँह,पैर छुपा क्यूँ लेता हैं?? नहीं ना ...चलिए हम बताते हैं ...
बात पुराने जमाने की है | कछुआ और खरगोश ने दौड़ की प्रतियोगिता रखी (पहले के जमाने मे कुछ भी हो सकता था) | और शर्त यह रखा गया कि जितने वाला हारने वाले की आँख,नाक,मुँह,पैर काट लेगा | कछुआ यह सोचकर तैयार हो गया कि कहानियों के मुताबिक खरगोश सो जाएगा और जीत उसकी होगी | दोनो सहमत हुए | दौड़ने लगे...
पर आज की सीख भरी कहानियाँ जिसमें कि खरगोश घमंड
करता है ,थोड़ा आराम करने के लिए पेड़ के नीचे सो जाता है,और
कछुआ इसका फायदा उठाकर दौड़ जीत लेता है, इसके बिल्कुल उलट इस दौड़ में जीत खरगोश की हुई और हार कछुए की | जहाँ बात नाक-कान कटने की थी भला वहाँ खरगोश सो कैसे जाता, आखिर सवाल पूरे खरगोश बिरादरी की आन की थी | और ऐसे भी हम जानते हैं कि खरगोश तेज भागता है, ना कि कछुआ | कछुआ तो बस सीख भरी कहानियों के चक्कर मे आके बेचारा फँस गया | शर्त के मुताबिक हारने वाले की आँख,नाक,मुँह ,पैर कटना था , पर कछुआ निकला धूर्त ,एन टाइम पर दगा
दे गया और डर के मारे अपने आँख,नाक,मुँह,पैर आदि को
अपनी खोली मे छुपा लिया |
तब से लेकर आज तक (और आगे तक भी) जब भी कछुए को किसी आहट का आभास होता है,वह खरगोश समझकर अपने-आप को छुपाकर बचाव करता रहा है |

10 अगस्त 2012

"अम्मा"

नज़र में रहती हो,पर नज़र नही आती अम्मा...
कहने को साथ हैं "अपने" पर,
वो "अपनापन" नही झलकता अम्मा...
पहले एक-एक पल में थे कई जीवन,
अब जीवन में ढूंढते हैं ,एक पल
तुम्हारे बिना अम्मा...
हम खुश रहकर मुस्कुराते थे और
तुम हमें खुश देखकर मुस्कुराती थी,
बस अंतर यही था अम्मा...
ख्वाइश भी नही हैं कुछ,
इस जहाँ से पाने की,
तुम्हारा महसूस ही काफी है,
अकेले मे रोने के लिए अम्मा...
तुम्हारा ना होना भी,
होने के जैसा है अम्मा...
तुम्हारे लोरी बिना नींद भी नही आती अम्मा...
"जहाँ" तुम चली गई,
उस "जहाँ" मे हमें कब बुलाओगी अम्मा...
तुम्हें दिखाएँ थे जो सपने,
उन सपनों की खातिर,
बस जी रहे हैं अम्मा...
बस जी रहे हैं अम्मा...
         
              -"मन"