26 मई 2013

आसान है पर मुमकिन नहीं...

रोज की तरह
दिन के एक ओर से,
रात के सो जाने तक
ज़िंदगी के हक़ में आता है,
पलकों का बोझिल भी हों जाना
कुछ सपनों से,कुछ अपनों से
तो कुछ ठिठके हुए पानी की बूंदों से
कुछ गुजरे हुए लम्हों से
तो कुछ साँस लेती हुई यादों से...
मगर मुस्कुराते हुए लब
सोख लेते हैं उन बूंदों को भी
जिन्होंने पनाह दिए
उन उम्मीद लिए सपनों को भी...
कहते हैं कि
बीते वक्त की यादें लेकर चलते जायें
क्योंकि,
जीने के लिए आज ही बहुत है
पर कभी-कभी
नज़रें सहमी हुई सी जाती हैं
कुछ अनकही सी बातें,
लफ़्जों के लिए तरसते हैं
ख्वाब दम तोड़ने लगते हैं
फिर एहसास होता है कि
अपनी ज़िंदगी में से
किसी को बेदखल कर देना,
आसान है पर मुमकिन नहीं...

                               - "मन"

21 मई 2013

गलत और सही...

कुछ भी सही
और
कुछ भी गलत
कभी नहीं होता...कभी नहीं,
नज़रिए की बात है
हमारे लिए जो सही है
वो कतई जरुरी नहीं,
औरों के लिए भी सही हो
और
गलत के साथ भी यही है |
दुनिया वैसी नहीं है
जैसा हम सोचते हैं...
और
जैसा और जितना सोचते हैं,
दुनिया बिल्कुल वैसी ही है
हाँ,
सोच-जरुरत-जज़्बात को लेकर,
कोई पहलू सही-गलत जरुर है |
हमारे पास खूबसूरत ज़िंदगी है,
सोचने का तरीका है
खुद कीजिए सही-गलत में अन्तर
क्यूंकि,
सही जितना गलत है
गलत उतना ही सही |
और फिर जरुरत भी कहाँ है,
कि
हर-बात को सही-गलत की हद तक
खींचकर लायें,
कभी-कभी दूसरों को हँसता देखकर
हमें मुस्कुराना भी चाहिए...

                                        - "मन"

16 मई 2013

इसे भी 'प्यार' ही कहते हैं...

जैसा कि लगभग हर 'प्यार' में होता है | लड़का और लड़की दोनों एक दूसरे से बेहिसाब मोहब्बत करते थे,फिर वक्त के आगे दोनों की न चली और दोनों के बीच अब बेहिसाब दूरियाँ ने जगह ले ली थी |
                    ऐसा नहीं था कि वह लड़का अब उस लड़की को भुला देने की तमाम कोशिशें कर चूका हो | वह अभी भी अपने मुस्कुराने की हर एक वजह में से थोड़ा-सा वक्त निकाल के उस लड़की को याद करता था,"वह लड़की भी शायद ! इस लड़के को कभी याद करती होगी ?" बेशक,लड़का ये उम्मीद अपने हिस्से के वक्त की राहों में कहीं दूर बहुत दूर छोड़ आया था या वह खुद से समझौता कर चूका था कि लड़की उसे याद करें या न करें वह जरुर उस लड़की से जुड़ी हुई हर बीती बात को अपने आने वाले सभी वक्तों में याद करता रहेगा,शायद ! लड़के के लिए मुस्कुराने की यही एक वज़ह हों |
                     पर इस 'प्यार' (?) में लड़का कभी भी उस लड़की को याद करते हुए अपनी पलकों को भीग जाने का एक भी मौका पूरे यकीन के साथ कभी नहीं देता था,क्यूंकि वह लड़का अपनी माँ को हमेशा मुस्कुराते हुए देखना चाहता था और यक़ीनन इसे भी 'प्यार' ही कहते हैं...
                     
                                                                                          

12 मई 2013

उस माँ को सलाम...

जब रात,आँखों से गुजरते हुए,
दिन के करीब पहुँच जाए...
जब पलकों के झपकने से ज्यादा,
बदलने लगूँ करवटें...
जब जीने की वजह,
रातों में भी धुँधली दिखे...
जब जज्बात बेबस होकर,
उसूलों की परवाह न करें...
जब मुस्कुराने की हर छोटी कोशिश,
उदासी में गुम हों जाए...
जब खुद की बनाई दुनिया ही,
अजनबी-सी लगे...
फिर एक छोटे-से कमरे में,
पूरी दुनिया को समेटकर
सबकुछ भूल जाने की जदोजहद में,
बस तुम याद आती हों,माँ...

माँ...मेरी छोटी-सी मुस्कुराहट में तुम्हारी हर बड़ी नाउम्मीदी पल भर में खो जाती थी...मै जितनी बढ़िया से अपनी हर बेमतलब की बात कह भी नहीं पाता था,उतनी इत्मीनान से तुम सुनती थी...
माँ...एक तुम्हारा ही झूठ बोलना मुझे हर सच्ची बात सीखा जाता है...झूठ,जो तुम्हें कभी भूख नहीं लगती थी...झूठ,जो मेरी जरूरतें पूरी करते-करते तुम कभी थकती नहीं थी...झूठ,जो कभी भी तुम्हें नई साड़ी की जरुरत नहीं पड़ी...वही झूठ जो मुझे सच्चे रास्तों पर चलने की हमेशा याद दिलाता है...वही झूठ जो सच के बेहद करीब है...
वह माँ,जिसके बिना मेरी ज़िंदगी का हर एक दिन अधूरा है...उस माँ को सलाम...

                                                                                                                       - "मन"

8 मई 2013

कविता-सा कुछ...

तुम्हें लिखने की कोशिश-भर में
लफ़्जों का दूर तलक चले जाना
बोझिल पलकों से इंतजार,
उन रूठे लफ़्जों का
पर अफ़सोस कि
जज्बात,चढ़ते नहीं कलम पर
और फिर...
अधूरी रह जाती है
तुम्हें याद करके लिखी जाने वाली,
एक कविता-सा कुछ...
उम्मीद है
तुम महसूस करोगे
मेरी लिखी हुई अधूरी कविता से,
उन ढेर सारे अधूरे एहसास को
जिन्हें बयां नहीं कर पाए,मेरे पूरे शब्द भी...
वक्त की परत समेट ले गई,
तुम्हारे हिस्से के भी लफ्ज़
शायद इसीलिए,तुम्हारे बारे में
ठीक-ठीक कहने लायक
कुछ भी नहीं है,मेरे पास
और फिर...
अधूरी रह जाती है
तुम्हें याद करके लिखी जाने वाली,
एक कविता-सा कुछ...

फिर भी
मन के कोने में,
कुछ 'शायद' जैसा ढलता जा रहा है 'यकीन' में
कि ये कविता अधूरी है...
और वजह भी है कि,
कोशिश करके कुछ भी लिखा नहीं जा सकता...

                                        - "मन"