15 जून 2014

एक कल जो आज भी है...

हमारे लिए सभी चीझें आसान हुआ करती थी | मुश्किलों का वास्ता बड़ों से होता था,हम बस उनकी उदासी पढकर अंदाजा लगा लेते थे कि मुश्किलें बड़ी हैं या छोटी | खुश रहना,हमसे ज्यादा बेहतरी से कोई नहीं जानता था और हमें खुश देखकर न जाने कितने चेहरों को मुस्कुराने का मौका मिलता था | छोटी-छोटी बातों में से खुशियाँ ढूँढकर चेहरों पर ओढ़ लेना,हम बखूबी जानते थे और हमारी ज़िंदगी ने उस वक्त तक हमें इतना ही सिखाया था | मतलब की बात को मासूमियत से बेमतलब बनाते हुए और बेमतलब की बातों से ज़िंदगी को जीना जानते थे | हमारे आस-पास की ज़िंदगी कैसी हो,इसका फैसला केवल हमारे हाथों में होता था | फ़िक्र से कभी पाला नहीं पड़ता था और ज़िंदगी को रत्ती भर भी समझे बगैर एक खुशहाल ज़िंदगी जीने का तरीका हम बखूबी जानते थे |
               एक उम्र को वक्त की परतों में यादों के संग सिमटाकर संजोते जाते थे | ज़िंदगी हमारी मर्जी से चलती थी और हर पहलू के पीछे हम वजह ढूँढने के फिराक में नहीं रहते थे | उस वक्त की ज़िंदगी उतनी ही मासूम थी जितनी कि हमारे चेहरें बयां करती थी | घर में माहौल गमगीन हो तो बिना कारण जाने हम भी उदास हो जाया करते थे और घर में ख़ुशी के वक्त सारी खुशियाँ हमारे चेहरों के मुस्कुराहट के रस्ते से होकर गुजरती थी | उन दिनों हम पढाई को इसलिए जरुरी समझते थे कि यह काम करने के बाद हमें कोई खेलने से रोकने वाला कोई नहीं होता था और इसी बहाने घर वालों की नज़र में हम पढ़ने वाले बने रहते थे और खुद की नज़र में खेल से सारी खुशियाँ पाने वाले |
               चोट लगती तो हम माँ का चेहरा पढकर अपने दर्द का अंदाजा मासूमियत से लगा पाते,पिता जी के गुस्से से समझ पाते कि हमारी लापरवाही बढ़ गई है,पर कभी-कभी उन्हीं लापरवाही के पीछे पिता जी का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखता तो सबकुछ बेहतर हो जाता था | माँ की गोद सुकून भरी नींद के लिए थी तो दुनिया भर की बेमतलब के सवालों के जवाब के लिए दादी और डांटने के लिए दादा जी होते थे |
               आज हम बड़े हो गए है इसलिए बचपन की इन सब बातों को याद करने का हमारे पास वजह और जरिया,आज की ज़िंदगी बनती है | अपने जेहन में से कभी न मिटने वाला एक सुनहरे वक्त को आज में याद करना उन ज़िंदगी को फिर से जीने के बराबर है | उन लम्हों को फिर से आँख मूँदकर देखे बगैर हमारी आज की ज़िंदगी अधूरी सी है और कहने के लिए हमारे पास है,काश...!!!
               यह अनुभव करना जरुरी है कि ताउम्र बचपना हममें से निकल नहीं पाता बस आज में वक्त ने इतना सा करवट ले लेता है कि हम मुस्कुराने से पहले उदास होना जरुरी मानते हैं,उम्मीद की डोर थामे बगैर बड़े-बड़े वादे और सपने लिए फिरते हैं,हर पहलू में मुस्कुराने के लिए वजह ढूँढते हैं,मासूमियत को गंभीरता बनाकर ओढ़ लेते है और हमारे आस-पास की ज़िंदगी बेहतर कैसे बने,इसका फैसला हम किसी और के हाथ में दे देते हैं |

                                                                                              - "मन"