25 जुलाई 2020

बस इतना कि...

कॉलेज जाने की मेरे कईं वज़हों में
बेशक एक वज़ह वो भी थी
अलग नहीं थी वो
लाइब्रेरी में दिखी थी मुझे वो
केमिस्ट्री के लैब में मैं उसे
गणित की क्लास में हमदोनों ने
दोनों को देखा था बार-बार कईं बार
बाकी लड़कियों के जैसे ही थी वो भी
पर तस्वीर खिंचाती तो
बारी-बारी से एक आँख ज़रा सा बंद करना नहीं भूलती
कुछ पढ़ती तो पेंसिल उसके गुलाबी होंठों को छू जाते
हँसती तो उसके दाँत उसकी सुंदरता में इज़ाफ़ा कर देते
शायद किसी के नसीब न हुआ उसे देखना रोते हुए
उसकी जानकारी से दूर मैं उसे देर तक निहारता
अपनी बाइक पर
उसे दूर कहीं घूमाने ले जाने की सोचता पर
उससे ये कभी कहना नहीं चाहा
शहर के किस कोने से आती है, जानना नहीं चाहा
ना ही चाहा कभी कि
उसकी जुल्फ़ों के साए में सर रखकर कोई किताब पढूँ
ना ही चाहा कि वो मना करे मुझे सिगरेट पीने से
ना ही उसका पसंदीदा रंग जानना चाहा
ना ही चाहा घण्टों फ़ोन पर बतियाना
ना ही चाहा कि वो मेरी बातों का ऐतबार करे
ना ही कभी किताबों से तारीफ़ के शब्द
चुनकर उसके माथे पर टाँकना चाहा
ना ही हाथ थाम किसी प्राचीर से
पैर लटकाए डूबते सूरज को देखना चाहा
ना ही चाहा गुलाब के बदले में कभी भी गुलाब
ना ही कभी बारिश में साथ भीगना चाहा
ना ही कभी वो सब कुछ चाहा जो साँस लेने के जैसा
बेहद ज़रूरी होता है प्यार में

चाहा बस इतना कि
साहिर होना और 'उसके' इमरोज़ की पीठ पर लिखा जाना!

8 जुलाई 2020

बारिश का पानी

घर के पीछे
दूर तक फैले खेतों में
बारिश का पानी इक्क्ठा हो जाता है
जिसमें दिन भर
बरसाती मेढ़क टर्र टर्र करते रहते हैं
जिन्हें ध्यान देकर न सुना जाए
तो कोई मतलब नहीं।
रात को मेढ़क के साथ
झींगुर भी सुर मिलाते हैं।
मैं दिन में खिड़की से लग के
खेतों से धीमी रफ़्तार में
कम होते हुए पानी को देखता हूँ
और सोचता हूँ-
कविता लिखने के लिए अनुकूल दशा है ये!

तभी माँ आकर कहती है- जा, बाज़ार से सब्जी ला।
पिता आकर कहते हैं-केवल किताबों में ही जीवन नहीं है।
छोटा भाई गाना भेजकर पूछता है-किसकी आवाज़ है ये?
छोटी बहन को समझ ही नहीं आता सूर्यग्रहण की प्रक्रिया।
बड़ी बहन दबे आवाज़ में फ़ोन पर कहती है-दहेज कम क्यों दिया?
दादी अपने कमरे से बराबर आवाज़ लगाती रहती हैं-चश्मा कहाँ है?
शहर का करीबी दोस्त पूछता है-गाँव में रहना कैसा लगता है?
दूर देश की प्रेमिका(?) का मैसेज आता है-कब आ रहे हो दिल्ली?
पड़ोसी शिकायत लेकर आता है-उनके खेतों में हमारी गाय घुस गई है।

किताबों से निकलकर
गाय को अपनी जगह बांध
बाज़ार जाने की सोचता हूँ
सभी आवाज़ एक दूसरे पर हावी होते जाते हैं।
दहेज कम देना पड़े इसलिए
छोटी बहन को सूर्यग्रहण की प्रक्रिया का समझ आना ज़रूरी है।
दादी का चश्मा जगह पर ही है।
बस दोस्त और प्रेमिका को छोड़कर
मैं दिल्ली से गाँव चला आया हूँ।

खेतों में या तो
बारिश का पानी
इक्क्ठा ही नहीं होना चाहिए
या फ़िर कभी-कभी
खिड़की से खेतों की ओर नहीं देखना चाहिए।

2 जुलाई 2020

एक कवि है आलोक धन्वा

एक कवि है
जो चाहता था भारत में जन्म लेना
कोई मतलब पाना चाहता था
पर अब वह भारत भी नहीं रहा
जिसमें जन्म लिया उसने।

एक कवि है
जो कहता है-एक लड़की भागती है तो
यह हमेशा ज़रूरी नहीं है कि
कोई लड़का भी भागा होगा।
जो हिमायती है
मार्च के महीने में
लड़कियों का घर से भाग जाने का।

एक कवि है
जिसे बचाया है-सबसे सस्ती सिगरेट ने
दो कौड़ी की मोमबत्तियों की रोशनी ने
दो-चार उबले हुए आलू ने, जंगली बेर ने।

एक कवि है
जो कभी नहीं भूला
उन स्त्रियों को जिनसे प्रेम किया उसने।

एक कवि है
जो मीर के गली से हो आया है और
उधर जाने की हसरत रखता है जिधर
नदियाँ मिलती है समन्दर से।

एक कवि है
जिसके पास रेल है
जो जाती है उसके माँ के घर
सीटी बजाती हुई, धुआँ उड़ाती हुई।

एक कवि है
जिसके पास उम्मीद है सबके लिए कि-
एक बार और मिलने के बाद भी
एक बार और मिलने की इच्छा
पृथ्वी पर कभी ख़त्म नहीं होगी।



प्रिय कवि को जन्मदिन के लिए शुभकामनाएँ :)