31 अगस्त 2020

शीघ्रातिशीघ्र

कीड़े जानते होंगे कि
किसी के लिए दी जाने वाली बद्दुआ में वो शामिल होते हैं ?
बिल्ली जानती होगी कि
वो बाघ की मौसी कहलाती है ?
कौए जानते होंगे कि उनके बोलने को
बिहार में अशुभ माना जाता है और राजस्थान में शुभ ?
ख़रगोश जानता होगा कि
उसके नाम से स्कूलों में सबक याद कराए जाते हैं ?
भेड़िये को ख़बर है कि
सदियों से वो सीखा रहा है हमें झूठ नहीं बोलने के लिए ?
यमुना को पता होगा कि
इलाहाबाद के आगे भी उसका अस्तित्व है ?
या ब्रह्मपुत्र को पता है कि वो पुरुष है और गंगा स्त्री ?
मंटो को कौन यक़ीन दिलाएगा कि
वो ख़ुदा से भी बड़ा अफ़सानानिगार है ?
मुग़ालते में डूबे शाषक के भ्रम को कौन तोड़ेगा ?
बाढ़ के पानी को कौन संदेशा देगा कि
बच्चे उसे देख-सोच रोमांचित होते हैं
जबकि दोआब में बसे गाँव डर से काँपने लगते हैं ?
कोसी नदी को कौन उलाहना देगा कि
वो बिहार का शोक बनी हुई है ?
आसमान को कहकर कौन डराएगा कि
जब पृथ्वी न रहेगी तो वो कहाँ बरसेगा, कहाँ निहारेगा ख़ुद को ?
सूरज क्या जानता होगा कि
कितनी उम्मीद लगा के लोग सो जाते हैं रातों को ?
कुछ भाषाओं को भनक भी है कि
अब वे विलुप्ति के कगार पर हैं ?
सिगरेट को कौन ये कहकर ख़ुश करेगा कि
उसके ऊपर मनुष्य जाति के बहुत एहसान लदे हैं ?
वसंत ऋतु को कौन आगाह करेगा कि
पतझड़ का आना भी तय है ?
जवानी को कौन बताने की ज़हमत उठाएगा कि
अगले ही किसी मोड़ पर बुढ़ापा कातर निगाहों से इंतज़ार में है ?
दूर देश की एक सुंदर लड़की को ये कौन कहकर उसे
चहकने का मौका देगा कि
किसी लड़के की डायरी में अब दर्ज़ होने लगी है वो ?

ये सारे काम कवियों के हाथों में सौंपे जाने चाहिए....शीघ्रातिशीघ्र!