23 अगस्त 2012

सुगनी

यह मेरी पहली कहानी है,और गलतियों की भरपूर गुंजाइश है | ज्यादा बड़ी तो नहीं है, पर इसके बावजूद आपसे अनुरोध है कि पूरी कहानी पढ़े और हो सके तो आप अपने सुझावों से हमें अवगत कराएँ  | आभार...

                                                            "सुगनी"

मेरे चाचा-चाची जो दो बच्चों के साथ गाँव के आखिरी छोर पर कहने मात्र के दो मंजिला मकान में रहते थे | बड़ी लड़की सुगनी तथा छोटा लड़का मोनू |कहा जाता है-छोटा परिवार,सुखी परिवार लेकिन चाचा-चाची के विचार पूर्ण रूप से अंधविश्वासों से घिरा हुआ था जो कि उनकी नज़र में तो वे सुखी परिवार थे किन्तु दूसरों की नज़र में उन्हें दुखी परिवार वाला दर्जा मिला था | खाने-पीने की कोई चिंता तो नहीं थी,पर इस क्षेत्र में सोचने से कभी उन्हें छुटकारा नही मिल पाया था | मोनू, जो कहने मात्र का छोटा था,पर था एकदम चालू | राजकुमार की तरह हैशियत,जो कि हर एक मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार में लड़का-लड़की के प्रति व्यवहार से अनुमान लगाया जा सकता हैं |

इसके सर्वथा विपरीत सुगनी का रहन-सहन,उसके प्रति बर्ताव को देखकर शायद ही कोई हो जो इस परिवार के  लड़कियों के प्रति सोच वाली मानसिकता को पहचानने में गलती करें |
सुगनी तेज-तरार,चंचल,हँसमुख,भावुक,आँखों में काम करने का स्पष्ट झलकता डर और साथ में काम के बदले थोड़ा सा शाबासी पाने की उम्मीद लिए बैठे उत्सुक मन,इन सबके साथ अपने-आप को इस अंधविश्वासी माहौल में टिकाए रखने के लिए सहनशक्ति जो कि इस छोटी सी उम्र में एक सम्पूर्ण भारतीय नारी का स्वरूप झलकाता था |
चाची जो कि सुगनी से ऐसे कामों की उम्मीद रखती जो उसके बस की थी ही नहीं,पर फिर भी सुगनी काम को पूरे मन से करती | कोई काम सही से ना होने पर चाची के ताने और साथ में पिटाई,क्योंकि उम्मीद के मुताबिक काम ना होने पर दुःख होता हैं,और इस दुःख के परिणामस्वरूप सुगनी पर आफत गिरती |

सुगनी और मोनू दोनो गाँव के दूसरे छोर पर कहने मात्र के सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते थे | सुगनी पढ़ने कम और मोनू की बस्ता-बोरी उठाने के लिए ज्यादा जाती थी | बस्ता-बोरी उठाने की बात ना होती तो शायद चाची, सुगनी को कभी स्कूल का दर्शन भी ना करने देती |
मध्यांतर में जब वे खाना खाने को आते तो सुगनी को पहले घर के दो-चार काम निपटाने पड़ते जो कि उससे अपेक्षा नही की जा सकती थी, तब कहीं जाकर उसे खाना मिलता | कई बार वो काम करने के डर से स्कूल में भूखी ही रह जाती थी,फिर शाम को दो की जगह चार काम करने पड़ते थे तत्पश्चात ठन्डे खाने के साथ-साथ चाची की मार भी खानी पड़ती थी |
फिर भी सुगनी खुश थी और अपने-आप को कही कोने में अकेला पाती तो, आशुओं के सहारे अपने दर्द को निकाल लेती थी और इस बात से समझा-बुझाकर चुप करा लेती कि-"लड़की हूँ ना इसलिए" |

हर बार कि तरह इस बार भी होली-दिवाली आई और चली गई लेकिन सुगनी के लिए यह भी एक आम दिन के जैसा ही था,इन दिनों उसे और अधिक काम करना पड़ता तथा अपने भाई और पड़ोस के इठलाते बच्चों की खुशी देखकर ही खुश हो लेती | पर इस खुशी के पिछले दरवाजे पर एक दर्द छिपा बैठा था,जिसके बारे में केवल सुगनी का मन ही जानता था , इस दर्द की भनक शायद ही कभी चाचा-चाची को लग पाता |

एक दिन चाची की अनुपस्थिति में सुगनी को मोनू के साथ कौड़ी खेलने का मौका मिला | खेलते-खेलते किसी बात पर मोनू,सुगनी से उलझ पड़ा और दनादन लात-घुसे बरसाने लगा ,सुगनी सहती रही फिर बाद में उसने मोनू को धक्का देकर गिरा दिया | मोनू गिरते ही जोर-जोर से बनावटी आँसू का सहारा लेते हुए लगा रोने , तभी चाची आ धमकी, मोनू को सँभालते हुए सुगनी पर तडातड चांटों की बरसात कर दिया |सुगनी की धुनाई होती जा रही थी,आँसू का अता-पता नही था,सिसकियाँ जोर पकड़ रही थी और मोनू भी अपनी माँ का यह रूप देखकर विदक गया,,,पर अंततः खुश था |
अगले दिन से सुगनी के लिए खूब सारे काम साथ में ताने और धुनाई|
मेरा मन भी कहता था कि सुगनी अकेले में जरुर सोचती होगी कि -"मेरी माँ भी तो एक लड़की ही हैं,फिर सोचने के नज़रिए में इतना फर्क क्यूँ??"
पिटाई के कारण सुगनी का मिजाज थोड़ा नरम पड़ गया था पर चाची के नज़र में वो भी काम से छुटकारा पाने का एक बहाना ही प्रतीत हो रहा था पर सुगनी को पता था कि कोई उसकी नही सुनेगा सो वो भी काम करने में रमी रहती थी |

कुछ दिन से सुगनी दिखाई नही दे रही थी,खबर लेने पर पता चल कि वो तीन दिन से गायब है |सबने आधे-अधूरे मन से खोजने का प्रयत्न किया,पर कोई नतीजा नही |जबकि मोनू अनजान था,अपनी दुनिया में मस्त था |
काफी कहने के बाद चाचा ने पुलिश चौकी में मामला दर्ज करवाया | कैसे भी कर के कुछ दिन कटे,चाची को सुगनी से ज्यादा काम की चिंता थी |
कुछ दिनों के बाद पुलिश चौकी से खबर आई कि सुगनी को पुलिश वालों ने ढूँढ लिया हैं | चाची यह सुनते ही खुश हों गई पर इस खुशी के पीछे वजह कुछ और ही था |
चाचा-चाची जब सुगनी को लेने चौकी पहुँचे,तो उन्हें आश्चर्य का कोई ठिकाना ही नही रहा,दोनो स्तब्ध रह गए...क्योंकि सुगनी ने साफ़-साफ़ चाचा-चाची को अपना माता-पिता मानने से इंकार कर दिया था |

वाह रे....नियति और धन्य हैं ऐसे माता-पिता...|

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