जब-जब थामने की कोशिश करता हूँ,
कुछ दूर जा खड़ी होती है
गर बंद करना चाहूँ भी इसे,
कुछ ढ़ीली सी पड़ जाती है |
जब मतलब समझना चाहूँ,
बेमतलब सी हों जाती है
जब होता हूँ बेखबर तो,
हवा सा छू के निकल जाती है |
जब अकेला बैठा होता हूँ,
तब साथ देने आती है
बिन कहे-सुने,
कुछ बूंदों को लिए हुए,
सब कुछ कह जाती है |
जब कलम उठाता हूँ,
दौड़ी चली आती है
कुछ बेजान से शब्दों में,
जान डालकर
सबकुछ बयां कर जाती है |
कुछ रिश्तों के जरिए,
होता है इसका आगे बढ़ना
कभी अपनों से है बढ़कर,
तो कभी दुश्मनी सिखा जाती है |
जब गलती को याद रखकर,
सबक को भूल जाता हूँ
तो
कुछ दूर खड़ी होकर मुस्कुराती है |
जीतना ही जरुरी नही,
हर मोड़ पर,बार-बार
हारना भी बखूबी सिखलाती है |
कहीं तिनकों का आसरा लेकर
कभी कागज पर स्याही बनकर
कभी चेहरों की मुस्कुराहट बनकर
कभी दिल का दर्द बनकर
सब जगह दिख जाती है |
सारे रंगों को भी सोखकर,
कभी फीकी ही रह जाती है
"जिंदगी"-यूँ ही नही कहलाती है...!!!
- "मन"
जीतना ही जरुरी नही, हर मोड़ पर,बार-बार हारना भी बखूबी सिखलाती है | कहीं तिनकों का आसरा लेकर कभी कागज पर स्याही बनकर कभी चेहरों की मुस्कुराहट बनकर कभी दिल का दर्द बनकर सब जगह दिख जाती है |
जवाब देंहटाएं"जिंदगी"-यूँ ही नही कहलाती है...!!!
बड़े ही सुंदर लफ़्ज़ों मे, गहराई का पुट लिए,खूबसूरत कविता बहुत खूब ।
आभार...|
हटाएंकुछ रिश्तों के जरिए..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर तरीके से कही गयी जिन्दगी की बातें ..
और तरीका इस जिंदगी ने ही सिखाया है...|
हटाएंआभार |
बहुत सुंदर अंदाज में लिखा है...
जवाब देंहटाएंजि़न्दगी के हर रंग को उकेरा
शुक्रिया...उत्साहवर्धन के लिए |
हटाएंबहुत ही बढ़िया रचना..
जवाब देंहटाएंसुन्दर और बेहतरीन..
:-)
आभार...|
हटाएंबहुत सुन्दर रचना...जिंदगी में हार का भी महत्त्व होता है. मैं तो कहता हू जो भी स्वाभाविक है उसे जीवन में आने दो, हार और जीत भी शायद शब्दों का ही खेल हो. आभार
जवाब देंहटाएंजी आपसे पूर्ण सहमति रखता हूँ..आखिर जीत का मज़ा हार के बाद ही आता है |
हटाएंसुंदर भावपूर्ण कविता । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआभार |
हटाएंजी बिल्कुल....|
khoobsoorat kavita.zindgi ki jawaan vyakhya!
जवाब देंहटाएंआभार |
हटाएंबहुत भावपूर्ण रचना बहुत अच्छी लगी |
जवाब देंहटाएंआशा
उत्साहवर्धन के लिए...आभार |
हटाएंसादर |
वाह,.... .....बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भैया...|
हटाएंसारे रंगों को भी सोखकर,
जवाब देंहटाएंकभी फीकी ही रह जाती है
"जिंदगी"-यूँ ही नही कहलाती है...!!!
uf sahi kaha aesi ho hoti hai zindagi
sunder
rachana
आपका आभार....ब्लॉग पर आने के लिए |
हटाएंसादर |
जीतना ही जरुरी नही,
जवाब देंहटाएंहर मोड़ पर,बार-बार
हारना भी बखूबी सिखलाती है |
कहीं तिनकों का आसरा लेकर
कभी कागज पर स्याही बनकर
कभी चेहरों की मुस्कुराहट बनकर
कभी दिल का दर्द बनकर
बहुत बढ़िया कविता
जी स्वागत है मेरे ब्लॉग पर...यहाँ आने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद |
हटाएंसादर |
जीतना ही जरुरी नही,
जवाब देंहटाएंहर मोड़ पर,बार-बार
हारना भी बखूबी सिखलाती है |
बहुत बढिया लगीं ये पंक्तियाँ |
शुभकामनायें
-आकाश
आभार |
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