आप सभी का जो लिखने और पढ़ने का शौक रखते है, या इस नशा को पालने की तैयारी में है, इस ब्लॉग पर स्वागत है| (और मेरा भी)..
आप लोगों ने इस ब्लॉग को एक नज़र देखने की जो तकलीफ़ उठाई है , उसके लिए आपका धन्यवाद..! और आगे भी हम यही इच्छा रखते है कि ऐसे तकलीफ़ आप उठाते रहेंगे |
लिखने की चाह, आप मन की भड़ास भी कह सकते हैं, एक ऐसी कला है जो आपके मन को चैन से बैठने तक नही देती है, हालाकि जो इस कला में माहिर है उसके लिए बस चैन ही चैन है |
मन के जो भाव उभरते है, वह कहानी, कविता,व्यंग,आलेख आदि के रूप में निकलते हैं, और जब कुछ बढ़िया नही सूझता है तो खाली-पीली ''पंचायती'' करने में तो बेशक निकलता ही है, (जो कि हमारा एक जन्म सिद्ध अधिकार है) |
लिखने का जो हुनर है, वह एक तरह के नशा के जैसे है..अंतर बस इतना सा है कि एक बार लग जाए तो उतरने का नाम ही नही लेता , और यह वहीं समझ सकता है जिसको यह बीमारी (जानलेवा नही) लगी हो | खुशकिस्मती से यह बीमारी मुझे भी है, इसलिए इस ब्लॉग के जरिए इस बीमारी के वायरस को अपने अंदर और बढ़ाने और आप लोगों के बीच और फ़ैलाने की कोशिश कर रहा हूँ |
आप लोगों ने इस ब्लॉग को एक नज़र देखने की जो तकलीफ़ उठाई है , उसके लिए आपका धन्यवाद..! और आगे भी हम यही इच्छा रखते है कि ऐसे तकलीफ़ आप उठाते रहेंगे |
लिखने की चाह, आप मन की भड़ास भी कह सकते हैं, एक ऐसी कला है जो आपके मन को चैन से बैठने तक नही देती है, हालाकि जो इस कला में माहिर है उसके लिए बस चैन ही चैन है |
मन के जो भाव उभरते है, वह कहानी, कविता,व्यंग,आलेख आदि के रूप में निकलते हैं, और जब कुछ बढ़िया नही सूझता है तो खाली-पीली ''पंचायती'' करने में तो बेशक निकलता ही है, (जो कि हमारा एक जन्म सिद्ध अधिकार है) |
लिखने का जो हुनर है, वह एक तरह के नशा के जैसे है..अंतर बस इतना सा है कि एक बार लग जाए तो उतरने का नाम ही नही लेता , और यह वहीं समझ सकता है जिसको यह बीमारी (जानलेवा नही) लगी हो | खुशकिस्मती से यह बीमारी मुझे भी है, इसलिए इस ब्लॉग के जरिए इस बीमारी के वायरस को अपने अंदर और बढ़ाने और आप लोगों के बीच और फ़ैलाने की कोशिश कर रहा हूँ |
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जवाब देंहटाएंअब जब इस ब्लॉग पर आ ही गया हूँ तो....
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कुछ बातें जो ज़रूरी है...
१. सबसे पहले तो मैं ज्यादा फोर्मल नहीं हो सकता इसलिए अपने से छोटे को बेझिझक तुम बुलाना पसंद करता हूँ, ये मन्टू "जी" टाईप की बात मेरे से उम्मीद न ही रखो तो अच्छा है...
२. मैं ज्यादातर ब्लॉग दिन में ऑफिस में ही पढता हूँ, इसलिए हर ब्लॉग पर जा जा कर पढने की बजाय गूगल रीडर में ही पढ़ लेता हूँ... इसलिए सभी पोस्ट्स पर कमेन्ट करना मुमकिन नहीं है, हाँ इस बात की सौ प्रतिशत गारंटी है कि मैं तुम्हारी हर एक पोस्ट पढूंगा... देर सवेर ही सही... केवल बेहतरीन पोस्ट, उम्दा अभिव्यक्ति आदि कमेन्ट नहीं ही करूंगा... हाँ यदि पोस्ट से जुड़ा कोई विचार आया तो ज़रूर साझा करूंगा...
बाकी सब मस्त है... बढ़िया लिखते हो.. लिखते रहना.... मैं पढता रहूँगा.... बाकी तो बी.टेक. कर ही रहे हो... बेकार का झोलम झोल है भाई... पता नहीं हम बिहार यूपी वाले कितना इंजिनियर बनेंगे ... मैं तो सोचता हूँ साला पूरी दुनिया भर के कैरियर ऑप्शन छोड़कर ये इंजीनियरिंग क्यूँ कर ली... और भी बहुत कुछ है दुनिया में... दिन भर में १५ घंटे कंप्यूटर के सामने सर फोड़ने के आलावा ... :(
खैर कमेन्ट बहुत लम्बा हो गया.... बाकी का फिर कभी... और हाँ अब तक की तुम्हारी सभी पोस्ट पढ़ चुका हूँ... "कल आज और कल".. "यादें और तकिया" मेरी फेवरेट है...
आपकी यहाँ उपस्थिति,एक सुखद एहसास लेकर आई |आप मेरे ब्लॉग पार आए...
हटाएंइसके लिए तहदिल से शुक्रिया |
और 'मन्टू' क्यूँ आप 'मन्टूआ' भी बुलाएंगे तो चलेगा..:)