नज़र में रहती हो,पर नज़र नही आती अम्मा...
कहने को साथ हैं "अपने" पर,
वो "अपनापन" नही झलकता अम्मा...
पहले एक-एक पल में थे कई जीवन,
अब जीवन में ढूंढते हैं ,एक पल
तुम्हारे बिना अम्मा...
हम खुश रहकर मुस्कुराते थे और
तुम हमें खुश देखकर मुस्कुराती थी,
बस अंतर यही था अम्मा...
ख्वाइश भी नही हैं कुछ,
इस जहाँ से पाने की,
तुम्हारा महसूस ही काफी है,
अकेले मे रोने के लिए अम्मा...
तुम्हारा ना होना भी,
होने के जैसा है अम्मा...
तुम्हारे लोरी बिना नींद भी नही आती अम्मा...
"जहाँ" तुम चली गई,
उस "जहाँ" मे हमें कब बुलाओगी अम्मा...
तुम्हें दिखाएँ थे जो सपने,
उन सपनों की खातिर,
बस जी रहे हैं अम्मा...
बस जी रहे हैं अम्मा...
-"मन"
कहने को साथ हैं "अपने" पर,
वो "अपनापन" नही झलकता अम्मा...
पहले एक-एक पल में थे कई जीवन,
अब जीवन में ढूंढते हैं ,एक पल
तुम्हारे बिना अम्मा...
हम खुश रहकर मुस्कुराते थे और
तुम हमें खुश देखकर मुस्कुराती थी,
बस अंतर यही था अम्मा...
ख्वाइश भी नही हैं कुछ,
इस जहाँ से पाने की,
तुम्हारा महसूस ही काफी है,
अकेले मे रोने के लिए अम्मा...
तुम्हारा ना होना भी,
होने के जैसा है अम्मा...
तुम्हारे लोरी बिना नींद भी नही आती अम्मा...
"जहाँ" तुम चली गई,
उस "जहाँ" मे हमें कब बुलाओगी अम्मा...
तुम्हें दिखाएँ थे जो सपने,
उन सपनों की खातिर,
बस जी रहे हैं अम्मा...
बस जी रहे हैं अम्मा...
-"मन"
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंआपने मनोभावों को बड़ी सहजता और कोमलता से अभिव्यक्त किया है.
सादगी भरा,पूरा ब्लॉग ही आकर्षित करता है.
शुभकामनाएं मन्टू.
अनु