कितना अजीब था ना,
इंसान ही उसे उस हाल में पहुंचाकर
इंसान को ही उसके लिए रोते देखा था
खुद के इंसा होने का रंज देखा था |
अगर दुनिया ऐसी ही है,
तो अच्छा हुआ...
उसे इस दुनिया से जाते हुए देखा था |
उसे हमारी नाकामियों में कैद होते देखा था
उसे ज़िंदगी से लड़ते देखा था
उसे इंसानियत से हारते देखा था
उसे सँभलते देखा था
उसे फिसलते देखा था
उसे अपनों से दूर जाते देखा था |
इक याद बस बन के पन्नों में,
दब सी गई है...
दामिनी अब शायद मर सी गई है !!!
- "मन"
इक याद बस बन के पन्नों में,
जवाब देंहटाएंदब सी गई है...
दामिनी अब शायद मर सी गई है !!!
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दामिनी और दामिनी जैसी न जाने कितनी जिंदगियों के दर्द और आह के बोझ तले हम जी रहे हैं ...
बढ़िया लिखा आपने ..
sunda abhivykti
जवाब देंहटाएंbahataree
जवाब देंहटाएंजाने कितनी जिदागियाँ ऐसे ही दम तोड़ देती हैं रोज़ ही ... ओर मन बेबस देखते रहने के सिवा कुछ कर भी नहीं पाते ...
जवाब देंहटाएंधीरे धीरे दामिनी के साथ संवेदनाएं भी चली गई हैं ...
आज की ब्लॉग बुलेटिन ताकि आपको याद रहे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसच कहा....
जवाब देंहटाएंदामिनी मर चुकी है...और साथ ही हमारी संवेदनाएं भी.....
इंतज़ार है अगली सनसनीखेज खबर का....
:-(
अनु
इक याद बस बन के पन्नों में,
जवाब देंहटाएंदब सी गई है...
दामिनी अब शायद मर सी गई है !!!
सच ....