3 अप्रैल 2021

दुनिया संकरी है...

तुम मुझमें समाना ऐसे
जैसे आमीखाई की कविताओं में दर्ज़ है युद्ध
जैसे मुक्तिबोध की कलम से दर्ज़ हुए सारे पहलू
जैसे मंटो की कहानियों में है पसरी अमानवीयता
जैसे राहुल सांस्कृत्यायन के मन में था घुमक्कड़ी
जैसे प्रेमचंद की कहानियों में है गाँव और महाजन
जैसे गर्मी के दिनों के पास है सुकून भरी रात
जैसे प्यासे समन्दरों के लिए है नदी
जैसे चाँद के लिए है धरती
जैसे रोने और हँसने के लिए है आँख
समझ गई ना तुम ?


इतिहास पढ़ने वाली लड़की से
गणित पढ़ने वाले लड़कों को मुहब्बत नहीं करनी चाहिए
और
एक उदास लड़की को
हँसाने के लिए किए गए सारे जतन
पीढ़ी दर पीढ़ी सभी को सिखाने की अनिवार्यता होनी चाहिए।
कविता में उतर आए बेमतलब की बातों के लिए
निकाली जाने वाली व्याख्याएँ कवि के लिए वरदान है
ठीक-ठीक वैसे ही
हमारा मिलना और प्यार करना
भविष्य में दुनिया को बचाने का एक ज़रिया होगा, यक़ीन करो मेरा..

पता है तुम्हें ?

बहुत कम समय बचा है
हमें जल्दी से मिलना होगा
"भूल जाना मुझे" की जगह
हमें दुहराना होगा "हम कभी नहीं भूलेंगे"
हमें उन दो शहरों की गलियों से गुज़रना होगा
जहाँ बेमन से बीता हम दोनों का बचपन
हमें हर शहर में दर्ज़ करानी होगी अपनी उपस्थिति
हमें नीले फूलों को खिलते हुए देखना होगा रोज़
हमें नदियों, पहाड़ों, सड़क और इमारतों को हटाना होगा
क्योंकि.. हमारे प्यार के लिए, ये दुनिया बहुत संकरी है।


:)