25 अक्टूबर 2012

एक दुनिया जो छोड़ आए...

एक दुनिया जो छोड़ आए,
एक दुनिया बसाने के लिए...
किसी अपनों को छोड़ आए
उन्हीं अपनों को कभी,
सहारा देने के लिए...

चलता जा रहा हूँ सफर पर
जहाँ साथ है,
खुशी,उमंगें,उम्मीद और हौसला...
पर एक कोने में बैठी है,
आँसू,गम और तन्हाई...
जो याद दिलाती है,
एक दुनिया जो छोड़ आए...

आज अपनों से दूर सही,
पर जुड़ा हुआ हूँ मन से...
आज बात हो जाती है कुछ पल,
फिर जी जाता हूँ हर पल...
कुछ खोकर पाने में जीत है,
और जिंदगी की यहीं रीत है...
और जरुरी भी है,
एक दुनिया बसाने के लिए...

कुछ पानी की बूँदे,
आ जाए पलकों तक,मन को झकझोर के...
तो फिर वहीँ से
एक डोर निकलती है उम्मीद की
जिसके सहारे चल निकलता हूँ,
इस शर्त पर कि
एक दुनिया जो छोड़ आए,
एक दुनिया बसाने के लिए...

                            - "मन"


11 टिप्‍पणियां:

  1. तो फिर वहीँ से
    एक डोर निकलती है उम्मीद की
    ..........................
    बेहतरीन मैंगो मैन साहब..
    बहुत कुछ ख़ास चलता रहता है आपके अन्दर और मुझे दिख भी रहा है....

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  2. अपनों को छोड़ने का दर्द...साथ ही कुछ पाने की खुशी
    वाह!! बेहतरीन अभिव्यक्ति!!

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  3. Jis kaune se ummeed ki roshni niklti ho, uska gam bhi sweekarya!Achchhi rachna!

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  4. जो गुज़र गई, कल की बात थी
    उम्र तो नहीं, एक रात थी
    रात का सिला अगर, फिर मिले कहीं
    मेरी आवाज़ ही पहचान है, गर याद रहे!!

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  5. चलता जा रहा हूँ सफर पर
    जहाँ साथ है,
    खुशी,उमंगें,उम्मीद और हौसला...
    पर एक कोने में बैठी है,
    आँसू,गम और तन्हाई...
    जो याद दिलाती है,
    एक दुनिया जो छोड़ आए...

    आंतरिक मन के भावों की अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर लगी यूँ मान लीजिये की मन को भा गयी..


    आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा।
    अगर आपको अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़ें।
    धन्यवाद !!

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  6. किसी अपनों को छोड़ आए
    उन्हीं अपनों को कभी,
    सहारा देने के लिए....bahot achche.....

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  7. एक दुनिया जो छोड़ आए,
    एक दुनिया बसाने के लिए...
    अच्छा लिखा है |

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