17 दिसंबर 2023

चादर.. जीवन.. और और ईगो...

2021 की दीवाली छठ पूजा की अवसर पर आखिरी बार घर रहा था, फिर पूजा बाद दिल्ली लौटने का टिकट कन्फर्म नहीं हुआ और एक वोट की वज़ह से पापा ने भी कहा रुक जाओ फिर वोट डालने आओगे ही (उस साल बिहार पंचायत इलेक्शन में माँ के नाम पर पापा चुनाव में उतरे थे) मुझे पहले दिन से पता था हम हारेंगे, मैं बेमन से ही घर रहा और देखता रहा सब। 

हम बुरी तरह हार गएँ। मैं कम देर के लिए दुःखी होकर ज्यादा देर तक ख़ुश था कि पापा का ये चुनाव वाला भूत उतरे जल्दी। उतरा तो नहीं चढ़ और गया कि अगली बार हम अच्छा करेंगे, मैंने सोचा कि अब आगे आने वाले उस चुनावी साल (2026) में कहीं जंगल में रह लूंगा पर घर पर दिखूंगा नहीं हाहा.. 

किसी ने कहा मेरे से "हम हर एक चीज का आउटकम जानते हैं पहले से, फिर भी ऐसी हरकतें करके ख़ुद का नुकसान कर लेते हैं।" 

कईं बार चीजों पर हमारी पकड़ हमारे सोचने के लेवल तक ही रहती है, रियलिटी में ऐसा बहुत कुछ घट रहा होता है जिससे हम आँख मूँद लेते हैं। फिर जीवन आगे बढ़ता जाता है और हम पीछे बहुत कुछ ऐसा छोड़ते जाते हैं जिसे बहुत अच्छे से मैनेज किया जा सकता है/था। करने वाले करते भी हैं (शायद) और फिर उनका भावी जीवन वैसा होता चला जाता है जैसा कि होना चाहिए।


2021 पर आते हैं, कोरोना की दूसरी वेव उसी साल अप्रैल मई में आया था और पहले वाले से भी भयंकर किंतु परन्तु लेकर। मुझे पटना में किसी से मिलना था तो अप्रैल के शुरू में दिल्ली से आया फ़िर रहने गाँव चला गया। दूसरी वेव में दिल्ली में नहीं था नहीं तो इस कहानी के कुछ और हो जाने की संभावना भी हो सकती थी। दोस्त लोग दिल्ली से कहते कि तुम्हारा सही है हर वेव से पहले तुम पता नहीं कैसे बिहार निकल जाते हो।


गैरज़रूरी बात-

सबकुछ ठीक किया जा सकता है, ठीक हो जाता है, वहाँ भी जहाँ रत्तीभर भी उम्मीद न हो चीजों को ठीक हो जाने की। ईगो ऐसी शय है जिसने कईं ऐसे पलों/रिश्तों का बेड़ा गर्क किया है जिसके न बिगड़ने से आगे का सबकुछ बेहद आसान लगने लगता कम से कम मानसिक तौर पर.     


यूनिवर्स बहुत बड़ा है, बहुत ही बड़ा है, हम सबका अस्तित्व कुछ पलों के लिए है बस..

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*पटना में गंगा की दो धाराओं के बीच में रेत की टीलों पर
(अप्रैल 2021)




*घर पर
(अप्रैल 2021)



*गाँव में
(मई 2021)


*जून की एक रात ये कांड भी हुआ था मेरे से (कांड छुपाया गया पर माँ से क्या ही छिप सका है)


*कुछ लोग इक रोज़ जो बिछड़ जाते हैं...



*छत से घर के पीछे का दृश्य
(जुलाई 2021)






*जुलाई में दिल्ली रवाना (जहाँ से दिल्ली जाकर लाइफ बदलने वाली थी और मैं अनजान था)




*शीशगंज गुरुद्वारा, चाँदनी चौक
(अगस्त 2021)



*खतौली (मेरठ के पास) मासी के घर, गंगा नहर आरती




*एक ही ज़िन्दगी काफी नहीं है (के.नटवर सिंह जी की आत्मकथा)
(सितंबर 2021)


*2021 में ही उत्तराखण्ड भी गए थे उत्कर्ष ब्रो के साथ
(अक्टूबर 2021)



*दीवाली की पिछली शाम को मोतिहारी पहुँचा, दिल्ली से बहुत धक्के खाते हुए

(नवंबर 2021)


*😍



* 🙏




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*ये तस्वीर उसी छठ पूजा और चुनावी उठा पटक के बाद की है जब इलेक्शन हो गया था, रिजल्ट आना बाकी था। 

चादर सुपरमेसी 😍

:)

1 टिप्पणी:

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