1 जनवरी 2024

2022,2023 >>> 2024 ❣️

2022, 2023 के पहली जनवरी को ऐसा संयोग बना था कि इन दोनों ही साल गाँव में रहे और माई-पापा जी के साथ नया साल मना और जन्मदिन भी। 


2022

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2023- माई, बेबी (भांजी), मोहित (भांजा), मैं !



इस बार भी ऐसी परिस्थितियां बन ही गयीं थी। इस बार भी 1 जनवरी को गाँव में ही रहता मगर कुछ बदलाव हुए और नहीं जा पाया। तो इस बार यूँ हुआ कि पहली जनवरी दिल्ली+पटना में मन रहा है। दिल्ली में जबरदस्त ठंड बढ़ी है पिछली कुछ दिनों में और ऐसे ही पटना में भी.. अच्छा ही है। मौसम के प्रेडिक्टेबल हो जाने की सहूलियत कईं बार अच्छी याद में बाधा बन जाती है। 







पटना 🥰


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शाम तक दिल्ली में था और अभी 9 बजे तक पटना में हूँ। मेरा पूरा जनवरी ही ऐसे चुटकी बजाते ही गुजरने वाला है। जनवरी तक तो कन्फर्म गाँव ही हूँ, फ़रवरी में वर्ल्ड बुक फेयर का मोह मुझे वापस कहीं दिल्ली ला पटके। 2023 का वर्ल्ड बुक फेयर भी गाँव रहते हुए ही बीत गया था तो इस बार नहीं छोड़ने का सोचा है। कुछ ख़ास लोगों से वर्ल्ड बुक फेयर के बहाने भी मिलना हो सकता है। फ़िर भी भविष्य के गर्त में कुछ ऐसा भी है कि ऊपर लिखी बातों को भूल जाने के लिए मुझे बाध्य भी होना पड़े ख़ुशी-ख़ुशी.. 

जीवन ऐसी ही चलती है। हम मौसम को अब प्रेडिक्ट करने लगे हैं। जीवन को प्रेडिक्ट करने का गुमान हो गया है हम सब को। प्रेडिक्टेबल होना हमें एक रास्ता तो दिखाता है पर साथ में अगाह भी करता है कि भाई तुम अपना देख लेना, ठीक-ठीक वैसे ही कि दिल्ली में कुछ दिन से ठंड थी मगर पटना में 2-3 दिन पहले तक ठंड नहीं थी और आज अभी दिल्ली से भी ज्यादा ठंड पटना में है।

...और मेरा जिला (पूर्वी चंपारण, मोतिहारी) पूरे बिहार में सबसे कम टेम्परेचर का रिकॉर्ड बना रहा है। माई को ठंड लग जाती है, खाना बनाना दुभर हो जाता है उनके लिए। हम सब भाई बहन गाँव में नहीं है। पापा बर्तन धो देने जितनी मदद करते हैं पर खाना बनाने के लिए माई को ही उठना पड़ता है। 10 जनवरी से मैं गाँव ही रहने वाला हूँ तो थोड़ी मदद (चाय बना देता था, अबकी पूरा खाना बनाऊँगा) मेरे से भी हो जाएगी बाकी माई के इर्द गिर्द मैं रहूँगा तो वैसे भी माई को ठंड नहीं लगना है।

आज गूगल फोटोज ने मेरी और माई की साथ की तस्वीरें जुटा लाया। बहुत ही अच्छे लग रहे हैं हम दोनों ही और अब 2024 की दुनिया भी...
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मेरे 2022,2023 का ज्यादातर वक़्त पढ़ने में बीता है और मुझे ख़ुद से ख़ुशी है कि 2022 के पहले जो मेरा ही मेरे प्रति धारणा बनी हुई थी कि मैं एक जगह टिक के देर तक पढ़ नहीं सकता, इस धारणा को बहुत हद तक तोड़ दिया है। इसका परिणाम भी नज़दीक के भविष्य में मिलने वाला है शायद !

2024 में ऐसी परिस्थितियाँ बन रही हैं कि मेरे आगे का आधा से कम का ही बचा हुआ जीवन तय हो जाने वाला है। मगर मगर फ़िर भी.. प्रेडिक्शन करने से मैं रुकूँगा नहीं और जीवन अपने दाँव लगाने से चुकेगा नहीं.. हममें ठनी हुई नहीं है बस साथ चलने के लिए एक दूसरे की ज़रूरत की तरफ़ बढ़ रहे हैं...... शायद !

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सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है
जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है
वह नियति की नहीं मेरी है ~ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

और और और

कि हर दिशा में होती हैं चार दिशाएँ 
और पाँचवीं की गुंजाइश हरदम बनी रहती है ~ नरेश सक्सेना


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