7 दिसंबर 2025

गाड़ी खींचो रे...


हम जीवन में आगे बढ़ते जाते हैं और जीवन हम में अनुभव समोते हुए हमसे आगे बढ़ रहा होता है। चलते-चलते कहीं किसी जगह मील का पत्थर (नौकरी, किसी अज़ीज़ से अलगाव, किसी से जुड़ाव, शादी, कभी कुछ, कभी कुछ..) लग जाता है पर हमारा चलना रुकता नहीं है। 


जिस पल हम जीवन से मिले अनुभवों की बारीकियों पर गौर करते हैं लगता है अब ये स्वभाव स्थाई रह जाने वाला है, जो चाहिए वो संतुष्टि का भाव मिल गया है पर समय बीतता है और हमें इस सबक से भी सामना होता है कि अरे ये तो क्षणिक था जो भी था। इंसान प्रेरणा के बल पर बहुत कुछ को स्थाई मानने लगता है। प्रेरणा की बत्ती गुल होने के बाद किया गया काम, सोचा गया जीवन ही कुल जमा कमाई होती है जो परत दर परत जमा होते-होते किसी दिन संतुष्टि का भाव लाता है फिर एक मील का पत्थर लगता है। जीवन ऐसे ही बढ़ता है और ख़त्म हो जाता है।

"हमें कैसे याद रखा जाएगा ? कोई याद भी रखेगा या नहीं ?" का मोह ही है जो दुनिया से जोड़े रखता है, विरक्ति की भाव को दूर भगाता रहता है। 

दादा को गुजरे 50 साल होने जा रहे। बामुश्किल, किसी जमीन या उनके द्वारा बनाए गांव वाले घर की बात आती है तो उनका ज़िक्र होता है। छत वाले कमरे में उनका पहना गया टंगे कोट को देखकर उनकी याद आती है। बीते समय की बात होती है तो पापा याद करते हैं कि "बाबू के टाइम पर...ऐसे... वैसे..." पर कभी-कभी ही...

मतलब कि 50 साल में ही आदमी को भूला दिया जाता है? वो भी तब जब दादा की वज़ह से ही हमारी यह पारिवारिक पीढ़ी सुख(?) भोग रही है। 50 साल तो बहुत ही कम समय है। नहीं ?

नज़रिए की बात है और नज़रिया समय के साथ बदलता है। सुबह आदमी कोई और होता है शाम को कुछ और बन जाता है। कभी-कभी तो आदमी की फितरत समय की भी मोहताज नहीं होती।

लाखों सेल्फ हेल्प किताबें और अब पॉडकास्ट का समन्दर, जीवन की गाड़ी कैसे आगे बढ़ेगी, सब कोई बांच रहा है। सब कोई सीख रहा है, सबकी गाड़ी अटकी पड़ी है। सब में आगे बढ़ने का दिखावा तो है ही।


...और जिनको जीवन ने इतना सोचने तक की सहूलियत नहीं दी है कि उनका जीवन कैसे बीत रहा है ? उनके लिए भी तो यही जीवन है, उनके मोह का क्या ? उन्हें भूल जाने वाले और बहुत जल्दी भूल जाने वालों की फेहरिस्त तो लंबी हो जाएगी। 


फ्रांसीसी लेखक आंद्रे जिद ने कहा था- "जो कुछ भी कहा जाना था, वो पहले ही कहा जा चुका है। लेकिन चूंकि कोई सुन नहीं रहा था, इसलिए हर बात को फ़िर से कहा जाना ज़रूरी है।"

...तो आप सुन रहे हैं ना ? हाहा.
       
:)

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