पहली नज़र का प्यार कहा जा सकता है। यश राज बैनर की फिल्मों की देन थी कि खेलने कूदने खाने की उम्र में प्यार-मोहब्बत की बातें। वहीं नदी, पहाड़, बारिश, झरने, छत, मैदान, पेड़ के नीचे हीरो-हीरोइन गाना बजाना और आँखें चार करना। नितिन का भी कुछ यूँ ही था ज्योति के साथ।
दोनों क्लास के टॉपर थे पर नितिन जानबूझ कर सवाल ग़लत कर आता और ज्योति को टॉप होने देता। राहुल 4th, नितिन के लिए 'रांझणा' के मुरारी जैसा। 4th इसलिए कि क्लास में चार राहुल थे। कहने के लिए राहुल और नितिन पक्के जिगरी। एक को काटो तो दूसरे से खून निकलता टाइप।
राहुल जानता था कि नितिन ज्योति के लिए मरा जा रहा है। ज्योति भी जानती थी। क्लास में सभी जानते थे। श्वेता जो ज्योति की जिगरी थी, इस प्रेम-कहानी की विलेन बनी जैसे यश राज बैनर की फिल्मों में लड़की का पिता विलेन बनता है। मोहब्बत पर बने गाने को ज्योति से जोड़कर गाया जाने लगा।
राहुल छोटी से छोटी उम्मीद की किरण खोज लाता कि भाई वो भी चाहती है। नितिन के पर उगे, वो श्वेता की नज़रों से बचकर ज्योति के साथ उड़ने के सपने देखता। उसने ज्योति से उसकी फोटो माँगी पर ज्योति ने मना कर दिया। कई दिन ऐसा चलता रहा तब राहुल के दबाव से वो मुक़ाम आया जो हर प्यार में आता ही है।
एक दिन तय हुआ कि मिशन को अंजाम दिया जाए। पेज फाड़ा गया, दिल बनाया गया, आई लव यू लिखा गया, शायरी लिखने की योजना स्थगित करके नीचे नाम में लिखा गया- नितिन। और साथ में 'यस' और 'नो' ? भी लिखा गया। पर ये सब राहुल की हैंडराइटिंग में लिखा गया और चुपके से ज्योति के बैग में रख दिया गया।
पढ़े जाने के पहले तक नितिन-राहुल के दिल में धुकधुकी शुरू। ज्योति ने अकेले में पढ़ा और बिना कुछ बोले, बिना फाड़े प्रेमपत्र खिड़की से बाहर फेंक दिया। पर ज्योति की चुप्पी ने नितिन की धुकधुकी को और बढ़ा दिया। श्वेता सोचती रही माज़रा क्या है।
राहुल नितिन को बधाई देने लगा। ज्योति मॉनिटर होने के नाते क्लास चुप कराने लगी। हिंदी वाले मास्टर साब पढ़ाने कम अपना रोना रोने के लिए आ गए। मौसम बदल गया अचानक। वॉयलिन बजने की आवाज़ सिर्फ़ नितिन को सुनाई देने लगी।
कईं दिनों तक नितिन इशारों में ज्योति से पूछता रहा 'यस' और 'नो' ? कभी ब्लैकबोर्ड पर लिख आता, कभी उसकी कॉपी में, कभी बेंच पर, कभी खेलते टाइम ग्राउंड में। ज्योति देख लेती पर कहती कुछ नहीं। इसे नितिन 'यस' ही समझता और यश राज बैनर की फिल्में ख़ूब देखता और राहुल के सामने एक्टिंग करता।
एक दिन खो-खो में राहुल की टीम जीत गयी और उसने ज्योति-श्वेता को चिढाना शुरू कर दिया। इसका बदला कैसे लिया जाए इस उलझन में श्वेता, ज्योति को बिना बताए खिड़की के बाहर गयी, उठा लाई प्रेमपत्र और क्लास टीचर के सामने रख दिया। अब राहुल-नितिन के दिल में एकदम अलग टाइप की धुकधुकी शुरू हो गयी।
क्लास टीचर कतई ब्योमकेश बक्शी बन गया।
श्वेता से पूछा- "किसने किसके लिए लिखा है ये?"
श्वेता- "नितिन ने ज्योति के लिए।"
टीचर- "नितिन इधर आओ।"
नितिन धुकधुकी लिये सर के पास गया।राहुल धुकधुकी लिये बेंच में घुसने लगा।
टीचर- "तुमने लिखा?"
नितिन- "नहीं सर,मैंने नहीं।"
टीचर- "नाम तो तुम्हारा हैं?"
अब बोलने की बारी ज्योति की थी।
ज्योति- "सर ये हैंडराइटिंग राहुल की है।"
राहुल, नितिन से ज्यादा धुकधुकी लिये गाल पर हाथ रखे सर के पास पहुँचा।
श्वेता- "सर, हैंडराइटिंग राहुल की है पर नितिन ने ज्योति के लिए लिखवाया है।"
नितिन- "नहीं सर, मैं कुछ जानता ही नहीं।"
ज्योति एकदम चुप...
क्लास टीचर ने पहले नितिन को एक चाँटा जड़ा। राहुल की धुकधुकी दो झन्नाटेदार चाँटा पड़ने के बाद कम हुई। ज्योति, नितिन को देखती रही, श्वेता मुस्कुराई और पूरी क्लास का मनोरंजन तो हो ही रहा था।
पूरे माज़रे में नितिन बेदाग निकला। सोचता रहा यश राज बैनर की फिल्मों में ऐसी सिचुएशन को हैंडल करना बताया ही नहीं था। राहुल को मिड टर्म देने से रोक दिया गया और 3 महीने के लिए स्कूल-निकाला दे दिया गया। श्वेता और ख़ुश हो सकती थी पर 'नितिन बच गया' ये बात उसकी ख़ुशी में कटौती कर देती थी।
ज्योति जो कभी इक़रार नहीं कर पाई और देर-सवेर नितिन को 'यस' कह ही देती पर अब सोचती है कि नितिन झन्नाटेदार चाँटे नहीं खा सकता तो आगे क्या ही कर सकता है उसके लिए।
नितिन अब यश राज बैनर के बजाय अनुराग कश्यप की फिल्में देखता है। सवाल भी ग़लत करके नहीं आता।
श्वेता सोचती है कि 3 महीने कब बीतें कि राहुल को सॉरी बोला जाए।
अगले साल बोर्ड के एग्जाम में नितिन और ज्योति दोनों जिले के मेरिट लिस्ट में आए। अख़बार में दोनों की फोटो छपी और इस तरह नितिन के पास ज्योति की फोटो आ गई। जिसे वो कभी-कभार देख लेता है अब। दुआ कर लेता है...जगजीत सिंह को ख़ूब सुनता है!
बाद के दिनों में नितिन की लाइफ में जितनी भी लड़कियाँ आयीं, सब में नितिन, ज्योति को खोजता रहा। इस मलाल के साथ जीता रहा कि उसदिन सच बोल के झन्नाटेदार चाँटा खा लेता, 3 महीने के लिए स्कूल निकाला झेल लेता तो शायद! ज्योति साथ होती..शायद!
अब इस बात को अरसा हो गया।
...और अब किसी एक का एक के पास फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट पेंडिंग है।
शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंआपको भी...
Bahut hi relatable likhte ho.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया :)
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (०६-०९-२०२०) को 'उजाले पीटने के दिन थोड़ा अंधेरा भी लिखना जरूरी था' (चर्चा अंक-३८१६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
आभार :)
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