28 नवंबर 2012

कभी-कभी या हर वक्त...

कभी ज़िंदगी के साथ जीया हूँ,
तो कभी छोड़ आता हूँ पीछे कहीं...
कभी हर गम को पीता हूँ,
तो कभी छोड़ देता हूँ आँसूओं के साथ उन्हें...
कभी लिखता हूँ खुद कि तक़दीर को,
तो कभी उसके भरोसे भी नही चल पाता हूँ...
कभी हर दिल में घर बनाने की कोशिश करता हूँ,
तो कभी बेदखल हों जाता हूँ खुद से ही...
पर सोच के मुस्कुराता हूँ कि
जो वक्त ने राह दिखाई है,ज़िंदगी को
उसकी खबर नही है मुझको,पर
उस राह पर चलना बखूबी जानता हूँ मै...

                                                   - "मन"

17 नवंबर 2012

कुछ तो बाकी है...

कहीं कुछ बाकी है
निशां है,अभी भी
आँखों को यकीं नही
पर
आँसू आ जाते हैं गवाही देने |
यूँ तो सांसों से शुरू हुई ज़िंदगी,
अब यादों से है चलती
साँसे तो अभी भी है,
पर ज़िंदगी पीछे झाँक रही है |
जो गुजरी है इस ज़िंदगी पर,
ना कभी बतायेंगे
बस कुछ बूँदे,घर बसाए
बैठे हैं पलकों पर |
कुछ मिलता है और
बहुत कुछ पीछे छूट जाता है
लोग बेहिसाब याद आते है...
शायद,
कभी खुद से मिलना नही चाहिए |

                                    - "मन"

12 नवंबर 2012

क्यूँ ???

क्यूँ
फैला है सन्नाटा
पर छंटती नही भीड़ है...

क्यूँ
रिश्ते है जुड़े हुए,
पर एहसास का निशां नही...

क्यूँ
साथ है तुम्हारा,
पर पास तुम अब भी नही...

क्यूँ
उजाला है चारों तरफ,
पर दिखता सिर्फ अँधेरा है...

क्यूँ
राहें बनी है गुमराह,
खबर नही मंजिल की भी...

क्यूँ
जान नही पाया,
अपने ही खुद को...

क्यूँ
मिला है सबकुछ,
पर बाकी है एक कसक...

क्यूँ
हो गया मै सबका,
पर कोई हमारा ना हो सका...

                                   -"मन"

2 नवंबर 2012

अपने होने का पता...

क्यूँ ओट हूँ मै खुद का,
फिर कभी खींचता हूँ खुदी को...
क्यूँ हर खुशी के पीछे भागता हूँ,
फिर कभी साथ देता हूँ गम का...
तो फिर कभी खामोशी का आसरा लेकर
कह जाता हूँ बहुत कुछ...
ये हैं मेरे उसूल या इन्हें
मानू जिंदगी के फलसफ़े...?

जब दूर जाने लगती है जिंदगी,
तब उसूल पीछे रह जाते हैं
जज्बात सिसकियाँ लेती है,
और आँखे डूब जाती है समंदर में
तब जिंदगी बड़े करीब से समझ आती है
तो कभी इनके साथ तो कभी मुस्कुराते हुए,
आगे सरकती जाती है
और फिर इनका होना
जरुरी ही नही बहुत जरुरी हो जाता है |

अब शिकवे नही है उन राहों से
जहाँ खोए है कुछ सपने,
जहाँ से मंजिल दिखी है और दूर...
क्यूंकि अब लगता है कि
खोने के बजाय पाया बहुत कुछ है,
एक खूबसूरत सपना संजोने के लिए
किसी मंजिल को पाने के लिए |

पहले पूछता था खुद से
कि मेरे अपने होने का पता दू कैसे?
अब शीशे के सामने सर झुका के खड़ा ना होकर
होता हूँ आँख से आँख मिलाकर,
और जवाब मिल जाता,खुद से ही |

                                       - "मन"