किसी ने मेरे से कहा- कि ब्रो यूनिवर्स बहुत बड़ा है, किसी और के पॉइंट ऑफ व्यू की वज़ह से अपनी लाइफ स्टाइल, अपना स्व मत बदलो। और ये लाइन मुझपर ऐसे पड़ी जैसे जोर का झापड़ रसीद किया जाता है गुस्से में सामने वाले पर.. और शायद कुछ तार मेरे जुड़ गए उस जगह जहाँ जुड़े रहना चाहिए था।
जितना भी जीवन मैंने जिया अब तक उसमें ज्यादातर बारी मेरे जानने वाले मेरे से ही प्रभावित रहे (ऐसा मैं मानता हूँ) मैं किनसे प्रभावित रहा या हो जाता हूँ, या किसके पॉइंट ऑफ व्यू से मैं अपने स्व से समझौता कर लेता हूँ, इसको ज़ाहिर करने से बचता रहा, कामयाब भी रहा इसमें। एक्टिंग कह सकते हैं कि आला दर्जे की मेरी एक्टिंग ने मुझे बचाये(?) रखा। हम सभी एक्टिंग करते हैं और उस एक्टिंग में इतना रम जाते हैं और उस लेवल तक एक्टिंग में परफेक्शन ला देते हैं कि हमें ख़ुद पता नहीं चलता हम एक्टिंग कर रहे हैं।
मगर मगर मगर... सबके जीवन में एक पॉइंट, एक दशा, एक परिस्थिति ऐसी आती है, आएगी ही जब उसे वही झापड़ रसीद होगी और हम सबके अंदर के तार ऐसे जुड़ेंगे जैसे कि..... (जिनकी ये दशा नहीं आती, मानिए कि वो बेहद कम एक्टिंग कर रहे हैं जो वो अंदर से हैं वो बाहर भी दिख रहा होता है)
मगर मगर मगर... ये भी है कि जब हम आगे जाकर पीछे देखते हैं तो सबकुछ साफ़-साफ़ दिखने लगता है और कुछ चीज़ें बहुत धुँधली भी हो जाती हैं। ये मुमकिन है कि क्या पता पीछे छोड़ आए अपने स्व में कुछ भी एक्टिंग न हो, उस वक़्त हम रियल ही हों और अब पीछे घूम के देखने पर उन्हें एक्टिंग के खाँचे में रख देना भी नाइंसाफ़ी ही है। आप समझ रहे है ना ? समझिए इसे...
और और और और...
क्या पता हम एक्टिंग के परफेक्शन में एक लेवल और बढ़ गए हों। जो अभी हाल का स्व है वो भी एक आला दर्जे की एक्टिंग ही हो जिससे हम फिलहाल अनजान हो और आगे 5-6 साल बाद पीछे देखे तो लगे कि अरे.. वाह... गज़ब...बहुत सही, तुम्हारा मुश्किल है बेटा/बेटी 😁
ख़ैर, हमें (बहुतों को) जब-जब लगता है कि जीवन को हमने क्रैक कर लिया है, जीवन अगले ही पल कुछ ऐसे गुल खिला देती है कि हमारा इसे समझ लेने का गुमान टांय टांय फिश...
इसलिए शायद इसे समझने का या कम से कम इसमें टाइम खोटी करने का कोई सेंस बनता नहीं है <<< बाद में इसे नकारने के लिए मैं स्वतंत्र हूँ, आप देख लो अपना
और और और...
अरे सुनो... बर्फ़ी फ़िल्म बहुत दफ़े देखी, सारे गाने अनगिनत बार सुने पर एक गाना 'फटाफटी' पता नहीं कैसे कभी सुन ना पाया। पिछले दिनों इस एल्बम के गानों से गुजरते हुए इसे सुना और मैं, जैसे.... अरे यार ये गाना कहाँ तक अबतक। गाने के बीच में रणबीर भी कुछ कुछ बोलता रहता है, रैप टाइप। अच्छा गाना है। सुना जा सकता है, ख़ुश रहा जा सकता है या कम से कम ख़ुश रहने की एक्टिंग की जा सकती है 😐
और अब...
शायद ज़रूरी बात- ये ऊपर की बक-बक मेरा पॉइंट ऑफ व्यू है। आपको क्या करना है, क्या नहीं ये आप जानते हैं। नहीं जानते ? जान जाइएगा, इंताज़र कीजिए।
😊
मंतुर दास जिंदाबाद
जवाब देंहटाएं