उन विचारों में जिनमें आपका गहरा विश्वास हो चला है पर आपको लगता कि उस विचार से दुनिया को फायदा तो नहीं होने वाला तो उसे अपने कुछ ग्राम के दिमाग में ही रखिए अपना गिनी पिग आप ख़ुद बनिए अपने पर अप्लाई कीजिए अपना रायता और फैलाइये या समेटीए, आपका जीवन, आपका नरक, आपकी मर्जी..
किसी और के जीवन के बारे में चाय-कॉफी पीते हुए कुछ भी कह देना/मान लेना, गुटखा खा के कहीं भी थूक देने से भी ज्यादा आसान है। अपनी ज़िंदगी संवारिए पहले, कैसे संवरेगा ये आप जानिए, मैं इतना जानता हूँ कि जीवन के किसी भी मोड़ पर किसी भी पहलू में सुधार की गुंजाइश रहती है वो अलग बात है कि किसी किसी का रायता इस लेवल तक फैला है कि उससे वो रायता कम से कम इस जीवन में तो नहीं ही साफ होगा, तो मानिए कि उसके प्रारब्ध ही ऐसे हैं।
हालांकि मैं भी ये किसी लड़की/किसी की बहन/किसी की प्रेमिका/किसी की माँ पर आक्षेप ही लगा रहा हूँ, पर इस कृत्य को इस तरह से जस्टिफाइ कर रहा कि उन कुछ लड़कियों/औरतों की सोच के दायरे में मेरी माँ, बहन, नानी, प्रेमिका(?) भी आती हैं जिन्हें ऊपर वाले की कृपा से इतना स्पेस मिला हुआ है कि वो अपने मन का काम कर सकें, सपने देख सकें और उन सपनों को पूरा करने के लिए वो मेहनत/जज़्बा दिखा सकते हैं/दिखाते हैं, बजाय अपने से निम्न जीवन/नरक को भोगने वालों के लिए दीवार खड़ी करने के...
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