9 अक्तूबर 2012

सपने और पानी की बूँदें



सपने-जो आँखों में पनाह लिए...नाउम्मीदी से उम्मीदी तक...एक धागे का काम करती है...जिससे जिंदगी को जीने का एक जरिया मिलता है...और इसी के बदौलत अब-तक की जिंदगी मिली है....

पानी की बूँदें-बिन सावन आए...बगैर बादल के...घुमड़-घुमड़ के इन गालों पर चले आते हैं...ये जताने कि ये हमारे अपने हैं...कोई साथ दे या ना दे...हर खुशी...हर गम में...ये साथ खड़े होते हैं....

पर इन दोनों में समानता यह है कि...इनको पनाह मिलती है...आँखों में...जहाँ कोई किसी से कम नही...सपनों पर हमारा वश नही...और...ये पानी की बूँदें कभी खत्म होने का नाम ही नही लेती...इन दोनों का आना तय है...चाहें हर गम के बाद आए...या...हर खुशी के पहले....इन दोनों का होना उतना ही जरुरी है...जितना कि...एक-एक साँस है...इस छोटी-सी,खूबसूरत जिंदगी के लिए....

पर कभी-कभी यूँ भी होता है कि ये सपने...इन पानी की बूंदों को...आँखों से बेदखल करके...फ़िराक में रहती है अपना खुद का आशियाना बनाने में....पता नही क्यूँ????...पर उन सपनों को समझ में नही आता कि...सागर भी कम पड़ जाए इन कुछ बूंदों के आगे...और बूंदों को शायद ये पता नही कि...इन सपनों की कोई सीमा ही नही है....
                                                                                     
                                                                                                  - "मन"

8 टिप्‍पणियां:

  1. इन दोनों का होना उतना ही जरुरी है...जितना कि...एक-एक साँस है...इस छोटी-सी,खूबसूरत जिंदगी के लिए....

    सिर्फ वाह कहूँगा.....

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  2. बहुत ही खूबसूरत साम्य.. लेकिन एक बात से मैं सहमत नहीं हूँ.. आँखों में नींद तो ठीक है लेकिन सपने.. संदेह है मुझे??? जो नेत्रहीन होते हैं वे भी 'सपने देखते' हैं...
    कोई बात नहीं.. फिर भी इस अभिव्यक्ति में संभावना है, एक बहुत अच्छे लेखन की.. जीते रहो!!

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    1. सही कहा आपने...सपने तो उन्हें भी आते हैं जिनके पास आँखें ही नही है पर सपने ये नही देखते कि आँख किसके पास है और किसके पास नही..जहाँ इनकी कद्र होती है वहाँ आना इनका हक है|

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  3. बहुत सुन्दर | आभार


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