गिलहरियों को किस बात की जल्दी रहती है ? भागेंगी एकदम तेज़, छलांग देखिए कितनी सटीकता से लेती हैं। पलटती एकदम तेज़ी से, खाते वक़्त उनका दांत देखिए कितनी तेज़ी से चलाती हैं। 24 घण्टे चौकन्ने (हाँ तू देखता है उन्हें 24 घण्टे, नेता) पिछले दोनों पैरों पर खड़ी होकर कुछ खाती हैं तभी स्थिर रहती हैं तब भी पूंछ हिलती रहेगी.. गिलहरियों को किस बात की जल्दी रहती है या क्या पता उनका तेजी में रहना ही उनके लिए स्थिरता हो, क्या पता ?
कुछ लोग ज्ञान का एक स्तर पाके (ज्ञान नहीं ही है ये दंभ है) गुमान में जीने लगते हैं कि ज्ञान हो गया है फ़िर वो सर्टिफिकेट बाँटने लगते हैं कि उन्हें सामने वाले की सारी मनःस्थिति का पता है। ज्ञान पाने वाले को पता भी नहीं चलेगा कि वो किस दौर से गुज़र रहा, उसे शब्दों में बयान कर देने की तो बहुत ही दूर की बात है। कुछ खास प्रजाति ज्ञान देने के साथ साथ चाहती हैं कि आप एग्री क्यूँ नहीं कर रहे उनके साथ। सहमति न देंगे अपनी तो वो नस काट लेंगे, इस मूड में रहते हैं। ज्ञान देने वाला किस पॉइंट तक ज्ञान दे रहा है और किस पॉइंट से वो अपनी बातों को आप पर थोप रहा है उसे ख़ुद पता नहीं चलता। ज्ञान लेने वाला पहले तो इन लोगों से जल्दी से छुटकारा पाए और नहीं तो कम से कम उकसाए नहीं ऐसे ज्ञानी लोगों को।
सूर्यदेव भईया से मिला, फ़ास्ट फ़ूड की दुकान चलाते हैं प्रतीक भाई के ही फ्लैट के ऊपर रहते हैं। इस साल ग्रेजुएट हुए हैं। मार्च अप्रैल तक छोटे भाई के हवाले दुकान करके दिल्ली पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए निकलेंगे। सूर्यदेव भाई की दुकान पर ही एक ज्ञानी(?) भईया जो मेरे वहाँ पहुँचने तक सूर्यदेव भाई पर मौखिक अत्याचार कर रहे थे। बात अंबेडकर पर चल रही थी। और महान लोग महान कैसे बनते हैं इसपर। बौद्ध सब धर्मों में श्रेष्ठ क्यों है इसपर और और सबसे मुख्य वहीं कि अपने विचारों या ग़लतफ़हमियों को कैसे सूर्यदेव भाई पर थोपी जाए। ज्ञानी भईया जो सिविल सेवा की तैयारी कर रहे हैं, नो डाउट कि उनका किताबी ज्ञान अच्छा था, मगर मगर सिविल सेवा की तैयारी करने वाला बच्चा/बच्ची सब भूल जाता है कि सिविल सेवा के लिए किताबी ज्ञान की ज़रूरत बहुत बाद में पड़ती है। आप अपने एटिकेट्स अगर सिविल सेवा के अकॉर्डिंग रखेंगे तो ज़रूरी किताबी ज्ञान तक पहुँच भी हो जाएगी। मैं भी सोच रहा हूँ कि सिविल सेवा की तैयारी करूँ फ़िर.. *aham* *aham*
हम गिलहरी पर थे। नहीं नहीं गिलहरी का चैप्टर ख़त्म..
अब मौसम पर आते हैं-
कल एक दोस्त से मौसम प्रेडिक्शन पर बात हो रही थी। वही बताई कि मौसम विभाग के अनुसार 2-3 दिन में पटना में बारिश होगी। अभी 4 बजे भोर में घड़ी के टिक टिक और प्रतीक भाई के बाथरूम की नल से 24 घण्टे पानी टपकने की आवाज़ के बीच बाहर बालकॉनी से पानी गिरने की आवाज़ आयी। अगर कल दोस्त से प्रेडिक्शन की बात न हुई होती तो मुझे देर से पता चलता कि ये बाहर बालकॉनी से किस चीज की आवाज़ आ रही है। ख़ैर, जनवरी में बारिश ? पानी का कुछ तय नहीं है। उसका रास्ता कहीं से भी गुज़र सकता है। नदी नाले झील तालाब समंदर नाक आँख से होते हुए कहीं से भी.. समझ गए ना ? इसलिए पानी बचाइए। पानी को क्यों बचाना है इसके पीछे बहुत ही जबरदस्त साइंस छुपी है जो मुझे पिछले दिनों ही पता चला। अभी इतना जानिए कि चाँद का ग्रैविटेशनल पुल धरती पर लगभग-लगभग सबकुछ डिसाइड कर रहा है, जी हाँ। और और और हमारे शरीर में पानी ही पानी है। (कड़ी मिलाते रहिये)
कल सुबह
दरवाजा खोल के बाहर दूर की बिल्डिंग देखना चाहता हूँ अगर वो साफ दिख रही है यानी कि ओस कम गिरा है और आज फिर कल के जैसे धूप निकलेगी। मुझे रोज़ पटना शहर में जाना होता है तो सुबह सुबह आसमान देखकर काफी हद तक दिन भर के मौसम का अंदाजा लगाया जा सकता है। दरवाजा खोलते ही मेरी नज़रें सामने न जाकर ऊपर गई। ऊपर ही क्यों गयी ? क्योंकि ऊपर चाँद चमक रहा था, थोड़ी देर में उजाला होगा और चाँद धुँधला जाएगा। सुबह के 5:55 के वक़्त सन्नाटे का सोच ही सकते हैं। उस सन्नाटे के बीच ठीक-ठाक ठंड में मैं बालकॉनी में ही 10 मिनट रुक ही गया होऊँगा। चाँद का मोह मुझपर ठंड का असर कम किये जा रहा था। कुछ देर निहारने के बाद सोचा क़ैद कर लेता हूँ यादों के पिटारे में.. फिर उँगली के बीच, फिर एक उँगली से छूकर देखना चाँद को.... हालांकि मैं अवगत हूँ कि ऐसी तस्वीरें लेने वाले लड़के अजीब लगते हैं, होते हैं। और मैं तो अजीब हूँ, इसमें शक नहीं कोई ! पर वहीं जिस सुबह मैं चाँद को कैमरे में क़ैद कर रहा था उस दिन मुझे ये पानी वाला कॉन्सेप्ट और चाँद के ग्रैविटेशनल पुल के बारे क्यों पता चला, उस दिन के पहले क्यों नहीं ? उस दिन के बाद क्यों नहीं ? ताजुब्ब होने वाली चीजों पर कोई रिएक्शन न देना यह इंगित करता है कि आप अपने से बहुत दूर छिटक गएँ हैं, शायद !
हाँ तो आगे-
चाँद को देखते हुए भी ये ख़्याल आ सकता था कि जब चाँद भी साफ दिख रहा है यानी ओस कम है और धूप निकलेगी। पर नहीं चाँद को देखते हुए जो पहला ख़्याल ज़हन में आया वो किसी का चेहरा था। कि अभी इसी वक़्त 5:56 पर वो चेहरा किस हाल में होगा। नैन जगे होंगे या कि जगने के बाद भी रियल्टी से बचने के लिए बंद करके पड़े होंगे।
जीवन ऐसा ही है। इसमें हम किसी खास समय का कोटा लेकर खास जगह पर रुकने आते हैं। हमें कभी गिलहरी देखना होता है, कभी ज्ञानी भईया/बहिनी को उकसाना होता है, कभी पानी देखना/पीना होता है, कभी बिल्डिंग देखना होता है कभी चाँद देखना होता है कभी कोई चेहरा देखना होता है, कभी-कभी कुछ नहीं देखना होता। इन सब कामों में कुछ न कुछ काम(?) का ही हो रहा होता है। पता इसका हमें आगे जाकर पीछे देखने पर चलता है। है न.
समझे ? नहीं समझे तो आगे ताज्जुब/चकित/आवाक/स्तब्ध/दंग/निःशब्द होने के लिए तैयारी कीजिए अभी से.. आप भी कुऍं में गिरेंगे और अच्छा भी लगेगा। कुछ ग्राम ही सही, यक़ीन कीजिए मेरा !
😊
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