उसी दिन लड़के ने चादर बदला और अपने अंदर से एक शख़्स को भी। और रात तक सोते सोते उसने उस नए चादर को वपास पुरवर्ती तहों से तह करके वापस रख भी दिया, पुराने चादर के पास वापस चला गया। नया चादर इसी निमित्त उस सुनहरे दिन की शाम को लड़के की देह पर धारण की गई थी। चादर ने कुछ तो असर किया लड़के पर कि लड़के ने वो काम किया जो शायद वो कभी करने की मन में ला भी नहीं सकता था, उस काम को उसने हक़ीक़त में कर दिया था।
लड़का अपने माँ-बाप का एकलौता और बेहद शर्मिला था। इतना शर्मिला की घर में बहनों का साथ न मिला, अकेले रह गया और बहुत सी बुनियादी बातों से महरूम रहकर जब बड़े होने पर उस विशेष कुऍं में गिरा तो दंग रह गया। ये होता ही है होना ही चाहिए। ऐसे ही शर्मीले बच्चे उद्दंड बच्चों के मसलों के साथ दुनिया को संतुलित करते हैं। उसका शर्मीलापन दुनिया के लिए नेमत है ये वो नहीं जानता, आगे जान जाएगा।
हाँ तो, भटकाव का दौर झेल रहा लड़का एक लड़की के क़रीब पाता है ख़ुद को। लड़की ऐसी कि लड़के ने कोई मंशा पाल के उससे जुड़ा ही नहीं। पहले से तय करके किसी से जुड़ना बहुत ही घातक होता है ये लड़का जान गया था। लड़के की भटकाव वाली जर्नी ने उसे ये बख़ूबी सीखा दिया था कि चीजें अपनी गति से हो तभी टिकतीं हैं। जल्दबाज़ी के कारण बहुत ही जरूरी चीजों से महरूम रहने के बाद आया ये ठहराव वाला गुण ऐसा जादू किया कि ये वर्तमान वाली लड़की पर न चाहते हुए भी असर होने लगा, वे दोनों ही अनजान थे। लड़की नहीं खुलती पहली दफ़ा में, नहीं खुली, कईं प्रयास लड़के के नाकाम होते रहे, लड़की अपनी पिछली दुनिया को इस कदर ढोती रही या उसके साथ चलती रही कि वो लड़के की कोशिश देख पाने में ख़ुद को लाचार पाई, लड़का ये पक्ष जानता था इसलिए टिका भी रहा। तब तक टिका रहा जब तक कि लड़की ने अपने अतीत को पीछे छोड़ न दिया।
मगर समय के छोटे अंतराल में कुछ ऐसा हुआ कि लड़की के मन से अतीत छूटने लगा और इसका भान ख़ुद लड़की को भी न हुआ। लड़का भांप गया। लड़का शर्मीला होते हुए भी उन कहानियों से गुजरा था जिसके निचोड़ और स्व के अनुभव ने उसे घाट घाट का पानी पिलाने जैसी स्थिति में तो ला ही दिया था।
हाँ, तो चादर का कमाल कहिए या जो भी, लड़के ने चादर ओढा और रात तक बम पटक दिया लड़की के पास। लड़की नार्मल रही, नार्मल रहने का दिखावा की.. पर पर पर मगर मगर किंतु परंतु, लड़की अपने अतीत से छुटकारा पा चुकी थी तो उसे अब ज़रूरत थी इस लड़के की। लड़की को भी किसी लालच वश नहीं जुड़ना था लड़के से, बस अब वो चाहती कि लड़के की दर्ज कराई गई प्रणय निवेदन पर गौर फरमाया जाए।
तो सबकुछ एक गति से ही चलने वाला था चलता ही पर लड़का लड़का हाहा वो लड़का.. इत्ती आसानी से समझ कैसे आएगा, शर्मीला होने का दिखावा ही उसने बचपन से किया था तो समझ सकते हैं कि बाकी मसलों पर वो किस कदर परिस्तिथियों से जूझकर उसमें से अपना बेस्ट निकाल सकता है। अब बारी लड़के की थी वार करने की। लड़के ने अपना रास्ता अलग किया जो उसने जान बुझकर लड़की के जीवन से कभी जोड़ा भी नहीं था लड़के ने रास्ता अलग कर लिया। लड़के ने ख़ुशी ख़ुशी विदा लिया, लड़की भी ख़ुशी ख़ुशी (?) उसे विदा की। जैसा कि पहले भी अनगिनत बार हुआ है। और रात के सन्नाटे में बहुत तेज़ डेसिबल के साउंड पैदा होने लगता है जिसको केवल वो लड़का-लड़की ही सुन सकते जो इस दौर से गुजरे हैं।
दोनों के रास्ते अलग हुए। लड़का दूसरे शहर में चला गया। लड़की बहुत सारा अतीत को अपने मन के बहुत ही निचले स्तर पर दबाकर ससुराल चली गई। लड़का दूसरे शहर में कमाने लगा और अब सच को मानते हुए अपना शर्मीलापन छोड़ दिया। अब अधिक से अधिक लोगों से जुड़ता गया जीवन आसान हो गयी उसकी। मगर अगले ही साल उसी दिन के 1 साल बाद जिस दिन उसने नए चादर को ओढ़ के लड़की को विदा किया था, उसी दिन को लगभग उसी समय को उसका एक्सीडेंट हो गया। लड़के को हॉस्पिटल ले जाने की भी ज़रूरत नहीं पड़ी। लड़की इन सब से अनजान अपने ससुराल में ख़ुशी ख़ुशी अपने 4 महीने के बेटे के साथ खिलखिलाती है और उसे प्यार से बुलाती है- मोहन
एक लड़का था उसका नाम था मोहन, एक लड़की थी उसका नाम था _______
कहानी उल्टी शुरू हो गयी क्या शायद ? कोई ना.. उल्टी-सीधी सब एक ही तो कहानी है। हाहाहा...
😊
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