कहीं कुछ बाकी है
निशां है,अभी भी
आँखों को यकीं नही
पर
आँसू आ जाते हैं गवाही देने |
यूँ तो सांसों से शुरू हुई ज़िंदगी,
अब यादों से है चलती
साँसे तो अभी भी है,
पर ज़िंदगी पीछे झाँक रही है |
जो गुजरी है इस ज़िंदगी पर,
ना कभी बतायेंगे
बस कुछ बूँदे,घर बसाए
बैठे हैं पलकों पर |
कुछ मिलता है और
बहुत कुछ पीछे छूट जाता है
लोग बेहिसाब याद आते है...
शायद,
कभी खुद से मिलना नही चाहिए |
- "मन"
निशां है,अभी भी
आँखों को यकीं नही
पर
आँसू आ जाते हैं गवाही देने |
यूँ तो सांसों से शुरू हुई ज़िंदगी,
अब यादों से है चलती
साँसे तो अभी भी है,
पर ज़िंदगी पीछे झाँक रही है |
जो गुजरी है इस ज़िंदगी पर,
ना कभी बतायेंगे
बस कुछ बूँदे,घर बसाए
बैठे हैं पलकों पर |
कुछ मिलता है और
बहुत कुछ पीछे छूट जाता है
लोग बेहिसाब याद आते है...
शायद,
कभी खुद से मिलना नही चाहिए |
- "मन"
कुछ मिलता है और
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ पीछे छूट जाता है
बहुत सही
बहुत कुछ पीछे छूट जाता है
जवाब देंहटाएंलोग बेहिसाब याद आते है...
mango man sahab.....
laajawaab kar gaye aap............
ये बेहिसाब याद आने वाले लोग खुद में समा जो जाते हैं...बहुत याद आते हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही हृदयस्पर्सी शब्दसंयोजन है ।साधुवाद
जवाब देंहटाएंAchchha lagaa!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...कोमल हृदयस्पर्शी रचना..
जवाब देंहटाएंसस्नेह
अनु
बेहतरीन और शानदार।
जवाब देंहटाएंकोमल हृदयस्पर्शी ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना.....
संवेदनशील प्रस्तुति - बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंखुद से मिलना , इतना आसान नहीं है |
जवाब देंहटाएंऔर जो खुद से मिल लिया समझो वो खुदा से मिल लिया |
इन बूंदों को छलक जाने देना चाहिए ... तभी खुद से मिलना अआसान होता है ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब ...
उम्दा
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