30 अगस्त 2012

'कल' 'आज' और 'कल'

एक जंग छिड़ी है...जंग-'कल' और 'कल' में
एक 'कल' जो बीत गया और एक 'कल' जो आने को हैं,जिसके पास 'आज' है |
पर उस 'कल' को मंजूर नही कि 'आज' साथ दे इस 'कल' का |
उस 'कल' को कुछ खोने का एहसास है,तो
इस 'कल' को कुछ पाने की चाहत
उस 'कल' ने हार को महसूस किया है,तो
इस 'कल' को जितने की आस है |
एक मरता नही..दूसरे को जीने की तमन्ना है |
कभी-कभी...
वह 'कल' इस 'आज' के दरवाजे से निहारता है,
आने वाले 'कल' को जिसकी बुनियाद 'आज' पर है,
वह 'कल' तैयार बैठा है,इस 'कल' पर हँसने के लिए |
कभी-कभी 'आज', दोहरी खेल खेलता है
कभी उस 'कल' के दर पर दस्तक देता है तो
कभी इस 'कल' की बाट जोहता है,
इस 'कल' को पसंद नही कि 'आज' उस 'कल' के पास जाए,
पर वह 'कल' ,इस 'आज' को अपनी तरफ खींचता है,
डराता है,सबक याद दिलाता है पर
यह 'कल' भी 'आज' का साथ नही छोड़ता है |
लेकिन अंत में वहीँ होता है जो 'आज' चाहता है,
उसको समझ में आ ही जाता है,
वह उठ खड़ा होता है,सबकुछ पीछे छोड़कर,
आगे की ओर देखता है,
कुछ पाने की उम्मीद लिए इस 'कल' की तरफ भागता है,
और...
फिर जीत होती है इस 'आज' की....
पर 'आज' भूलता नही,एहसान उस बीते हुए 'कल' की |

                                                          -"मन"

14 टिप्‍पणियां:

  1. वाह..... क्या बात है!

    अच्छा लिखा है....

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  2. बहुत खूब
    मिलते रहिये
    मैं यहाँ-यहाँ मिलती हूँ
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/,
    http://yashoda4.blogspot.in/,
    http://4yashoda.blogspot.in/,
    http://yashoda04.blogspot.in/

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  3. अच्छा लिखा है आपने लेकिन जैसा आपने लिखा जीत होती है फिर आज की वहाँ मुझे ऐसा लगता है की जब आज की जीत होती है तब तक वह आज बीते हुए कल में तब्दील हो चुका होता है क्यूंकि मेरी नज़र में आज चलाये मान है पाना और खोना बीते हुए कल और आने वाले कल में निहित है,
    यह मेरे विचार है इसलिए कृपया इसे अन्यथा ना लें....

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    उत्तर
    1. जी आपने बहुत सही फ़रमाया,,वो 'आज' बदल चूका होता है 'कल' में ...|
      आपके विचार से मै बिल्कुल सहमत हूँ |

      सादर..|

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  4. बहुत सुन्दर...गहन अर्थ लिए रचना है....
    इसी कल आज और कल के ताने बाने में तो पिरोया हुआ है पूरा जीवन....
    बहुत बढ़िया मन्टू.

    अनु

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  5. कुछ पाने की उम्मीद लिए इस 'कल' की तरफ भागता है,
    और...
    फिर जीत होती है इस 'आज' की....
    पर 'आज' भूलता नही,एहसान उस बीते हुए 'कल' की |
    जिंदगी की यही सच्चाई है ! हकीकत को मान लेना चाहिए !

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  6. बहुत खूब मन्टू भाई...
    ऐसे ही लिखते रहिए... शुभकामनाएँ...

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  7. बहुत सुंदर ! कल आज और कल की यह खींचातानी बहुत रोचक है..

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  8. आज 4/09/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

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  9. वाह...
    बहुत सुन्दर...
    कल,आज और कल....!!

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कैसे भी लिखिए,किसी भी भाषा में लिखिए- अब पढ़ लिए हैं,लिखना तो पड़ेगा...:)