कभी खुद का दीदार किए हों,
कभी समझे हों,इस जहाँ में
कभी समझे हों,इस जहाँ में
तुम्हारे होने का मतलब
कभी सोचे हों,
उम्मीद के कई धागे तुमसे जुड़े हैं
तुम्हारा बस होना भर ही,
किसी के लिए ज़िंदगी है...
और तुम्हें इसकी खबर तक नही |
कभी किए हों,
कुछ सुलझाने की एक पहल
खुद से उलझते जाते हों...
फिर सामने होती है एक और पहेली |
कभी कोशिश किए हों,
खुद को समझे बिना
दुनिया को समझना...
मुमकिन है पर आसान नही |
सच तो सच ही है
कोई सा तरीका अपनाकर,
समझा सकते हों खुद को
पर ये भी सच है कि
बस हम खुद को समझ जाए
और
ये उम्मीद करें कि
अंत में सबकुछ ठीक होगा,
एक फ़िल्म की तरह...
एक ज़िंदगी की तरह...
- "मन"
उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंlatest postअनुभूति : सद्वुद्धि और सद्भावना का प्रसार
latest postऋण उतार!
.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति . आभार हाय रे .!..मोदी का दिमाग ................... .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंतुम्हारा बस होना भर ही,
जवाब देंहटाएंकिसी के लिए ज़िंदगी है...
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कविगुरु रवींद्रनाथ ठाकुर के शब्दों में ----- यदि तुम जीवन से सूर्य के जाने पर रो पड़ोगे तो आँसू भरी आँखे सितारे कैसे देख सकेंगी? .
बहुत खूब ......यही मुमुक्षा चाहिए.........
जवाब देंहटाएंखुद को समझे बिना
दुनिया को समझना...
मुमकिन है पर आसान नही |.........नामुमकिन ही है ।
खुद का दीदार परम आवश्यक है
जवाब देंहटाएंसच तो सच है ... सच को समझना मुश्लिल नहीं ...
जवाब देंहटाएंओर सच के लिए खुद को समझना जरूरी है ... बहुत खूब ...
सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति... अंत भला तो सब भला... शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-03-2013) के चर्चा मंच 1193 पर भी होगी. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंachchi rachana , badhai ho! aap bhi mere blog par ayen , aapka swagat hai.
जवाब देंहटाएंइसके बाद में तुम्हारी ही एक पोस्ट कहती है कि कुछ सही गलत नहीं होता वैसे ही मुझे लगता है कि कुछ अच्छा या बुरा भी नहीं होता ,
जवाब देंहटाएंजाकी रही भावना जैसी | :)