16 जून 2013

ज़िंदगी भी तो यही चाहती है...

जहाँ खुद ही खुद से जिरह हो
फिर हिस्से में आए खामोशी
जहाँ कुछ यकीन करने
और न करने के दरम्यान
खुद से मिलना न पड़े
जहाँ खुली आँखों के सामने
धुँधली दिखने लगे दुनिया
जहाँ कुछ खोने के डर से
बेतरतीब होते जाएँ सपने
जहाँ अपने करीबी के पास
वजह हो,दूर हो जाने का
जहाँ पसंद-नापसंद
मायने न रखते हो
जहाँ शिकवे-गिले रहने लगे
कुछ बेहतरी से ज्यादा
फिर वहाँ पर,
ज़िंदगी के रास्तों को
कुछ पल के लिए थामकर
दूसरों की नज़र से
खुद को टटोलना फिर
हम जो है,उसमें से
झूठ को बेदखल कर
सच को जगह देने के लिए
हर मुमकिन कोशिश करना
बेहद जरुरी है
क्योंकि,
कहीं न कहीं ज़िंदगी के हर मोड़ पर 
हम भी और एक सुकून भरी ज़िंदगी भी, 
हमसे यही तो चाहती है...

                                           - "मन"

14 टिप्‍पणियां:

  1. दूसरों की नज़रं से देखने से जिंदगी ला सकून कहां मिलता है ...
    वो भी एक माया ही मिलती है ...

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  2. हम भी और एक सुकून भरी ज़िंदगी भी,
    हमसे यही तो चाहती है...
    .......अच्छी प्रस्तुति

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  3. सुन्दर अहसास .और सुन्दर भाव लिए
    अति सुन्दर रचना..
    :-)

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  4. हम जो है,उसमें से
    झूठ को बेदखल कर
    सच को जगह देने के लिए
    हर मुमकिन कोशिश करना
    बेहद जरुरी है....

    क्या कहने मंटू जी बहुत उम्दा बात कही
    हर किसी के लिए जरूरी है, खुद को तरशते रहना

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  5. पढ़ लिए हैं इस लिए नहीं लिख रहे बल्कि अच्छा लगा इस लिए लिख रहे है, बहुत खूब मंटू जी...

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  6. " बेहद उम्दा " भैया ....

    आखिर... जिंदगी भी तो यही चाहती है ....

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  7. बहुत ही बढ़िया कहा आपने जिंदगी के बारे में
    http://puraneebastee.blogspot.in/

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