31 अगस्त 2012

सुन रे वो माई...

यह कविता मैंने, "सत्यमेव जयते" का पहला एपिसोड "कन्या भ्रुण हत्या" से प्रेरित होकर होकर लिखी थी,
'शायद' आपको पसंद आए |


सुन रे वो माई...                                              
तोरी अँगना में,इस छोटी सी गुड़िया को,
थोड़ी सी जगह दे...
तोरी आँचल की छाँव में,क्यूँ ना मै आऊँ,
इसकी तो वजह दे...
मुझको भी हक हैं,जीने को दुनिया,
ऐसी तू ना सज़ा दे...
सुन रे वो माई...
तोरी बिटिया को अब तो जीने दे |
तोरे ही घर-आँगन,
जहाँ आने को है मेरा बचपन,
जिसमें पड़ेगें ये नन्हें कदम |
जहाँ पलेगा मेरा सपना,
जहाँ कोई तो होगा 'अपना' |
फिर...
यादों का घरौंदा बनाऊँगी लाखों,
इक दिन जाऊँगी,छोड़ तुम सबको |
याद आयेंगे वो बचपन के फुदकते कदम,
फिर तू माई,भूल जायेगी सारे गम |
बस हैं इतनी सी गुहार कि...
सुन रे वो माई...
पिया घर जाने तक,थोड़ी सी जगह दे...
तोरी अँगना में,इस छोटी सी गुड़िया को,
बस थोड़ी सी जगह दे...

                          -"मन"

13 टिप्‍पणियां:

  1. तोरी अँगना में,इस छोटी सी गुड़िया को,
    बस थोड़ी सी जगह दे...
    bahut hi umda mango man sahab.....

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  2. तोरी अँगना में,इस छोटी सी गुड़िया को,
    बस थोड़ी सी जगह दे...
    आज की सच्चाई से रूबरू कराती रचना आभार.......

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  3. Tumne kavita ke liye jo vishay chuna hai vah apne me ek kaal-paatra hi hai. Aur fir tumne aasani se bhar diya usme dher sara dard!

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  4. kya bhaav hain...chitere mann ke

    hindi kavvyy ke is saarthi ko ehsaas ki badhayee...

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  5. बहुत बढ़िया रचना मंटू ...
    बधाई !

    भ्रूण हत्या से घिनौना ,
    पाप क्या कर पाओगे !
    नन्ही बच्ची क़त्ल करके ,
    ऐश क्या ले पाओगे !
    जब हंसोगे, कान में गूंजेंगी,उसकी सिसकियाँ !
    एक गुडिया मार कहते हो कि, हम इंसान हैं !

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  6. प्रेरणा देती हुई बहुत सुंदर रचना।

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  7. सुन रे वो माई...
    पिया घर जाने तक,थोड़ी सी जगह दे...
    तोरी अँगना में,इस छोटी सी गुड़िया को,
    बस थोड़ी सी जगह दे...
    सुंदर रचना

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  8. ज़माना ,
    कितनी तेजी से बढ़ रहा है ,
    नन्हीं कलियों को पैरों से ,
    कुचलते हुए |

    अच्छा मुद्दा , सुन्दर रचना |

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