वक्त तेज़ी से निकला और
और तुम वक्त से तेज़ निकले...
जख्म तो तुम्हारे जैसे दगा दे गया,
पर निशानी का साथ अब भी है...
अब शामिल है,मुस्कुराना फितरत में...
और 'शायद' इसकी खबर किसी को नही,
कि पीछे एक दर्द अब भी है...
मेरे-तुम्हारे हिस्से का,
जहाँ गुजरता था वक्त,
अब भी जा आता हूँ...
कुछ बदला नही, तुम्हारे सिवा
पर ढलता सूरज,
जाता है कहता हुआ...
कि...तुम्हारे जाने के दिन मे,
एक और दिन जुड़ गया |
तुमसे अब कोई वास्ता नही,
पर आज तलक...
तुम्हारे हिस्से का वक्त यूँ ही...
'तन्हा' गुजरता है |
कभी-कभी सोचता हूँ,
कि काश...!
कोई ऐसा दिन भी आता,
तुम पास मेरे आती और कहती,
कि "कौन लगते हो तुम,मेरे??"
जो रोज सपनों मे चले आते हों |
-"मन"
बहुत सुन्दर |शुभकामनाएँ |
जवाब देंहटाएंतुम्हारे हिस्से का वक्त यूँ ही...
जवाब देंहटाएं'तन्हा' गुजरता है |.....
बहुत ही दिलकश... mango man sahab
यादों पर किसी का बस नहीं बेरोकटोक आती हैं, फिर भी मुस्कुराना तो पड़ता ही है.... बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंChalo, koi 'man' to aisa bhi hai jo bolta bhi hai. aur bahut khoob bolta hai.
जवाब देंहटाएंKHOOBSOORAT KVITA
जवाब देंहटाएंयादें जीवन की अनुपम धरोहर हैं। इन्हे संजोकर रखिए एवं जब किसी की याद आए तो बस मुस्करा दीजिए, जिंदगी हसीन हो जाएगी । बहुत सुंदर। मेरे नए पोस्ट पर आपका हार्दिक अभिनंदन है।
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव , अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंविविध विषयों पर लेखन आपके ब्लॉग की और आकर्षित करता है ....आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ अच्छा लगा ..नियमित लेखन के लिए आपको शुभकामनायें ...!
जवाब देंहटाएंSaral va bhav purn -- Utam
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन शदों से सजी पंक्तियां ................
जवाब देंहटाएंजख्म तो तुम्हारे जैसे दगा दे गया,
पर निशानी का साथ अब भी है...
अब शामिल है,मुस्कुराना फितरत में...
और 'शायद' इसकी खबर किसी को नही,
कि पीछे एक दर्द अब भी है...
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंमनभावन रचना...
:-)