28 सितंबर 2012

मै कौन हूँ ...???



मै कौन हूँ???
यह एक ऐसा अटल सवाल है,जिसका जवाब पल-पल बदलता है और हमें सोचने पर मजबूर करता है |जिंदगी के हर सफर पर...हर मोड़ पर यह ओट बनकर जवाब माँगता है जो अब-तक के जवाबों से शायद संतुष्ट नही |
हम देखते हैं कि कभी-कभी किसी बात के अंत में यही जिंदगी हमसे कुछ दूर पर खड़ी होकर,हमारी नादानी पर मुस्कुरा रहीं होती है,जिससे इस सच का पता चलता है कि हमने आज-तक इस सवाल के जवाब देने में कहीं ना कहीं झूठ का सहारा लिया है | जिंदगी सही मायने में आगे बढ़े तो इसके लिए सच्चाई को आगे आना ही पड़ेगा और इसका फैसला हमारे हाथों में है |
हम खुद के नज़रिए में अपने-आप को काबिल मानकर मन को तसल्ली दिला सकते हैं पर जिंदगी केवल अपने खुद से नही चलती,इससे जुड़े हैं कई और जिनकी नज़र में हमारे वजूद का एहसास काफी हद तक मायने रखता है...यहीं जीवन का सच है...थोड़ा अजीब है पर सच है |

मेरे जिंदगी से भी जुड़े है कई ऐसे शख्स जिनकों,मुझसे उम्मीद है...शायद मै नही जानता कि वे मेरे बारे में क्या नज़रिया रखते हैं पर इतना जानता हूँ कि मेरी जिंदगी में सच्चे मन से इनका होना...सबकुछ बयां कर देता है(शायद)...

मै कौन हूँ ???
मै हूँ...
उस पिता का बेटा..." जो यह सोचकर आश लगाए बैठा है कि जो सपने मै नहीं देख सका वो अपने बेटे को हर नामुमकिन कोशिश करके जरुर दिखाऊँगा...जो कसक अधूरी रह गई वो बेटे के सहारे पूरा करूँगा "
मै हूँ...                              
उस माँ का बेटा..." जो दरवाजे पर बाट जोहे खड़ी रहती है...अपने सच्चे बेटे के इंतजार में जो दुनिया के नज़र में कैसा भी हों...जो जी भर के देखना चाहती है...जो फिर से गले लगाना चाहती है...चूमना चाहती है...फिर से दुलारना चाहती है "
मै हूँ...
उस बहन का भाई..."जो मजबूरन वो ना कर सकीं,मुझसे चाहती है...जिसके आँखों तले एक कामयाब भाई का
सपना पल रहा है...जिसको इंतजार है एक मजबूत कलाई पर राखी बाँधने को "
मै हूँ...
उस भाई का भाई..."जिसको विश्वास है मुझपर...हर एक फैसले पर...जो उन्हीं राहों को पीछा करता हुआ चला
आ रहा है,जहाँ मेरे कदमों के निशान मौजूद है "
मै हूँ...
उस दोस्त का दोस्त..."जिसने हर हालात में..हर पल..हर दम..मुझे जिंदगी को जीना सिखाया...जो आज मेरे पास नही पर दिल के बहुत करीब है "
मै हूँ...
किसी पराए के लिए अपना..." जो अनजान..बेखबर है...जिसको किसी अपने की तलाश है,इस छोटी सी दुनिया में "
मै हूँ...
एक आम आदमी जैसा दिखने वाला प्राणी...जो जिंदगी के हर पहलू को स्वीकारता आया है...जो जिंदगी के हर रंग को जीना चाहता है...जो इस बात में विश्वास रखता है कि दूसरों की खुशी में ही अपनी खुशी है...जिसने सिखा है हर एक को अहमियत देना...जिसको कुछ पाने की ललक है और खोना भी बखूबी जानता है "

मै तो इतना सा जानता हूँ कि जब कोई किसी से उम्मीद रखता है,तो सामने वाले को भी चाहिए कि वह उसके उम्मीदों पर खरा उतरे...क्यूंकि अगर उम्मीद पूरी ना हों तो बहुत दुःख होता है |

                                                                                                - "मन"

27 सितंबर 2012

जिंदगी...



                                             किसी के लिए ख्वाहिश है...
                                             तो किसी के लिए एक सच्चाई है जिंदगी...
                                             कोई समझे तो सहेली है...
                                             जो ना समझे तो अबूझ पहेली है जिंदगी...
                                             हर पल बिगड़ के जो...
                                             हर पल सँवरे वो है जिंदगी...
                                             किसी के लिए पराई है...
                                             तो किसी के लिए प्यारी है जिंदगी...
                                             कुछ के लिए कुछ भी नही...
                                             तो किसी के पास केवल हैं ही जिंदगी...
                                             कुछ...
                                             खोकर,पाने का नाम है जिंदगी...
                                             हारकर,जीतने का नाम है जिंदगी...
                                             गिरकर,उठने  का नाम है जिंदगी...
                                             रोकर,हँसने  का नाम है जिंदगी...
                                             जो जी रहे वो भी नही...
                                             केवल साँस चलने का नाम भी नही...
                                             हर साँस में हो आश वो कहलाती है जिंदगी...

                                             ख्वाहिशों के ताने-बाने से बुनी है और...
                                             जो आंसू पी-पी के मुस्कुराती है वो है जिंदगी...

                                                                                           - "मन"

22 सितंबर 2012

तेरे बिना वो दोस्त..!



तेरे साथ...लम्बे रास्तों की फ़िकर ना थी...पर अब छोटे रास्ते...बड़े लम्बे से लगते हैं...और उन रास्तों पर...सूना पसरा है...तेरे बिना वो दोस्त..!
तेरे होने से...हर वो खुशी मिलीं...जो आज में...मेरे हर एक मुस्कुराहट की वजह है...मस्ती के हर रंग में वो चमक मिलीं...जो यक़ीनन फीकी और बेमतलब रह जाती...तेरे बिना वो दोस्त..!
वो एक-दूसरे का काम करना...कभी घर से निकलकर स्कूल ना पहुँचना...हमेशा स्कूल लेट जाना...साथ में बेंत खाना...और क्लास के बीच में ही टिफ़िन खत्म करना...कभी पापा से डाँट सुनवाना....मेरा रूठना...फिर तेरा मनाने का वो अजीबोगरीब तरीका अपनाना...वो मस्ती-मजाक...सब याद है...पर अब वो यादें हैं...तेरे बिना वो दोस्त..!
आज हर कदम पर...हर सफर पर सोचता हूँ कि...तू होता तो ये करते...तू होता तो वो करते...लेकिन बस सोचता ही हूँ...और...एक कसक के साथ मुस्कुराहट झलक रहीं होती है चेहरे पर...तेरे बिना वो दोस्त..!
पहले हर खुराफ़ाती में अपना नाम आता था...हर वो काम करना जरुरी था...जिसमें केवल हमारी खुशी हों...आज आलम ये है कि...खुराफ़ाती का मतलब ही कहीं गुम है...तेरे बिना वो दोस्त..!
पहले दिन भर...धूप में क्रिकेट खेलते थे...साइकिल से रेस लगाते थे...घर से बहुत दूर निकल जाते थे...पर अब धूप से कोई वास्ता ना रहा...कहीं पर साइकिल देखता हूँ तो...जी ललचता है...घर से अब भी दूर हूँ पर...कुछ खोया-खोया सा लगता है...तेरे बिना वो दोस्त..!
तू बहुत याद आता है...जब अकेले में हँस रहा होता हूँ...जब अकेले में रो रहा होता हूँ...जब अकेले कहीं जा रहा होता हूँ...जब अकेले कुछ खा रहा होता हूँ...जब अकेले पढ़ रहा होता हूँ...जब कुछ भी नही कर रहा होता हूँ...अब तू ना सही पर तेरा एहसास तो है...तेरे बिना वो दोस्त..!
यह चेहरा जो कभी हँसता था...आज इसको भी उदास होने की जरुरत पड़ती है...तेरे बिना वो दोस्त..!
तेरे साथ खुशी का हर पल था...गम का साया कहीं दूर-दूर तक नहीं...आज खुशी के पल गिन लेते हैं...और...गम ने दिया है साथ हर घड़ी...तेरे बिना वो दोस्त..!
अब सोचता हूँ कि...काश !...वो खुशी भरे दिन...हम साथ ना बिताते तो...आज यूँ...मन को तड़पना ना पड़ता...बिन आंसू के रोना ना पड़ता...तेरे बिना वो दोस्त..!
आज बेशक तेरे साथ नही...पर महसूस करता हूँ रोज तुझे...और नज़र उसी राह पर आश लगाए,इस ताक में है कि एक दिन तू आकर...मेरा हाथ थाम लेगा...क्यूंकि...मै कुछ भी नहीं...तेरे बिना वो दोस्त..!

                                                                                     - "मन"

19 सितंबर 2012

यादें और तकिया

आज ऐसे ही कुछ ढूंढते-ढूंढते मेरे एक पुराने फाइल में कुछ मिला,जिसमें कुछ फोटो,कुछ पहले के लेटर,कुछ खट्ठी-मीठी यादें,जिन्हें रखकर शायद मैं भूल गया था या आज में कुछ ऐसा नही हुआ जिनसे कि मैं उन यादों को फिर से याद कर सकूँ,(या शायद मेरा आज उन्हें फिर से स्वीकार नही करना चाहता हों) |
उनमें से कुछ यादें मुड़ गई थी,कुछ धुंधली पड़ गई थी तो कुछ बस फाइल का वजन बढ़ा रहीं थी और कितनी तो ऐसी थी जो अपनी तरफ देखने भी नही दे रही थी |

आज उन यादों को फिर से जीने का मौका मिला,कुछ अच्छी मिलीं जिनकी वजह से मुस्कुराया तो कुछ बुरी जो फिर से एक सबक का रूप लेकर आज में खड़ी हो गई शायद मेरे कल के बचाव के लिए |(पर दोनों हीं काम की है)

बहुत दिन से पड़े-पड़े उन यादों ने अपने-आप को अकेला महसूस कर,नमी को सोख उन्हें अपना बना लिया था सो मैंने उन्हें हटाकर अपने तकिये के नीचे रख दिया |फिर वहीँ पर कुछ सोचते-सोचते खो गया |कुछ देर बाद देखता हूँ कि तकिया गीला पड़ा है |अब ये आंसू थे जिन्हें आँखों में पनाह ना मिलीं या शायद उन यादों की नमी,कुछ कह नही सकते...:(

वक्त के साथ सबको तेजी से या धीरे-धीरे एक ना एक दिन बदल ही जाना है पर कुछ चीझें हैं ऐसी जिनपर वक्त का कोई जोर नही चलता और उनमें से एक है "यादें" |

                                                                     - "मन"

16 सितंबर 2012

बेहिसाब याद आती है,माँ..!

पता नहीं कौन सी ऊँगली थामे,
मुझे चलना सिखाया होगा,माँ..!
अब हर ऊँगली को देखता हूँ तो
बेहिसाब...
याद आती है,माँ..!
तुम्हारे मुस्कुराहट के सहारे आज
हर कोशिश है खुश रहने की
तुम्हारे गोद,तुम्हारे आँचल में आने की
पर जितना कि तुमसे दूर हूँ
उतना ही पास चला आता हूँ,माँ..!
आज हर साँस के साथ,
बेहिसाब...
याद आती है,माँ..!
तुम्हारे सपनों की फ़िकर ना होती तो
आज तुमसे यूँ दूर ना होता,
लोरी के बिना यूँ रात ना कटती,
डांट के बिना यूँ दिन ना गुजरता,
फिजाएं यूँ खामोश ना होती,
इस तरह से बेसहारा ना होता,
चेहरे पर यूँ तुम्हारा महसूस ना झलकता,
और यूँ ही तुम्हारी याद ना आती,माँ..!
आज जीने से भी ज्यादा,कई उलझनें हैं,
हर उलझन के दर पर
बेहिसाब...
याद आती है,माँ..!

वह माँ,जिसके बिना...
मेरी जिंदगी का हर एक दिन अधूरा है,
उस माँ को सलाम...!

                     - "मन"

11 सितंबर 2012

जीने की कसम खाई है अब...

उलझते सपने,सुलझे अब
पलकों तले,कुछ ख्वाब ढले अब |
भीड़ से अलग दिखें और
उस पार जाने का,कोई धुन चढ़े अब |
कुछ खोने से लेकर पाने की चाहत तक
मंजिल की ओर बढते जाए अब |

कुछ पाना है,कुछ कर दिखाना है,
कोई आस लगाए,घर बैठा है अब |

अब तो,
जीने के सहारे से गुजारिश है कि,
सब छोड़ गए,तू न छोड़ जाना अब |

रास्ते खत्म नही होते,जिंदगी के सफर में,
मंजिल तो वहीँ है,जहाँ ख्वाहिशें थमे अब |

जिंदगी की राहें सीधी हैं,गिले-शिकवे तो उन्हें हैं,
जिनकी चाल ही टेढ़ीं है अब |

ऐ रुख ज़रा पलट और,
कह दे उन मुश्किल हालातों से कि
मैंने हर हाल में जीने की कसम खाई है अब |

                                       - "मन"

9 सितंबर 2012

ये मै कहाँ आ गया...

पहले कच्चे घर मे,
पक्के दिल वाले मिलते थे
अब पक्के घर मे कच्चे दिल वाले मिलते हैं,यहाँ
ये मै कहाँ आ गया...
हँसते-मुस्कुराते चेहरे बेशक लगते हैं प्यारे,
पर मुस्कुराहट के पीछे अब
कोई मतलब जुड़ा है,यहाँ 
ये मै कहाँ आ गया...
जिंदगी के राह पर चलते-चलते
मिल जाते हैं कई अनजाने लोग
कोई अपना तो कोई सपना सा लगता है 
पर अब देखता हूँ,कि
कोई भरोसा के लिए तो
कोई भरोसा करके रोता है,यहाँ
ये मै कहाँ आ गया...
हर ज़ज्बात को जुबान नही मिलती है
हर आरजू को दुआ नही मिलती है
अब दुःख-दर्द को गुस्से का नाम दिया जाता है
अब तो,
पलकों पर बिठाया जाता है,नजरों से गिराने के लिए,यहाँ
ये मै कहाँ आ गया...
मेरे खुदा अब अच्छा नही लगता है ये जहाँ 
ये मै कहाँ आ गया...?
     
                      - "मन"

5 सितंबर 2012

मुझे आज भी याद है...


वो काम ना करने का बहाना बनाना...और बड़ी सादगी से पकड़ा जाना...
वो आपका कान मरोड़ना...और फिर हिदायत देके छोड़ना...
मुझे आज भी याद है...

वो ककहारा रटवाना...वो जोड़-बाकी के सवालों से जूझाना...
वो 13 का पाहड़ा,मुझे याद ना होना...फिर आपका बेंत बरसाना...
फिर मेरे रोने तक मुर्गा बनवाना...मेरा चुप ना होना...
फिर चुप कराने के लिए दो थपड लगाना... और फिर
अगले दिन तक की मोह्लत देना...
मुझे आज भी याद है...

वो चाट-पकौड़ी खाते पकड़े जाना...गाँव की गलियों मे
गोली खेलते धरा जाना...कभी-कभी आपको देखकर रफूचक्कर हो जाना...
फिर अगले दिन स्कूल के प्रार्थना मे सभी बच्चों के सामने पानी-पानी करना...
और कान पकड़वा के उठक-बैठक कराना...
मुझे आज भी याद है...

वो आपका पढ़ाना...मेरे ऊपर से जाना...वो क्लास मे पूछना...
फिर मेरा सकपकाना...सर दर्द का बहाना बनाना...
और फिर घर पर शिकायत करना...
मुझे आज भी याद है...

वो दस मे से 3 नंबर आना...आपका डाँटना...मेरा खामोश खड़ा होना...
फिर अगली बार दस मे से 8 नंबर लाना...
आपका हल्का सा मुस्कुराना..."दस मे से दस क्यूँ नही आए" आपका कहना...
मुझे आज भी याद है...

वो डाँट के पीछे प्यार...वो गुड़िया वाली कविता...वो सीख भरी कहानी...
वो आपका हौसला बढ़ाना..."कुछ बन के दिखाऊंगा" मेरा सोचना...
और आपका पीठ थपथपाना...
मुझे आज भी याद है...


वो मेरे मस्ती के दिन...बहुत सारी खुराफातें...
और आपकी माफ करने की आदतें...
मुझे आज भी याद है...

कभी कुछ गलत होने पर मेरे कंधे पर हाथ रखना...
जैसे एक प्यारे दोस्त का साथ होना...
मुझे आज भी याद है...


मुझे आज भी याद है,मुझे सबकुछ याद है,सर | आज जो कुछ भी हूँ,आपसे ही हूँ | छोटे थे जब ये चीजें बुरी लगती थी पर आज इनकी कमी महसूस होती है |अब सोचता हूँ की इन सब रंगों के बगैर मेरा बचपन अधूरा रह जाता...पर आपके होने से ऐसा नही हुआ |आपका कितना शुक्रगुजार हूँ ? इसके लिए मेरे पास शब्द नही है |

4 सितंबर 2012

"फेसबुकिया साइकिल"

"फेसबुक"...इससे आज तक कोई नही बचा,ना ही कोई बचेगा |कभी-कभी तो लगता है कि जो फेसबुक पर नही है वो कहीं का नही है,शायद इस दुनिया का भी नही है (खासकर आज की पीढ़ी),और मै भी इसी केटेगरी मे आता हूँ सो मै कैसे बच जाऊँगा | आखिर जब बात मेरे दुनिया मे होने की हो तब तो फेसबुक पर होना तो बनता ही हैं | और शायद इसीलिए मैंने इस ब्लॉग के साइड मे 'फेसबुक का चटका' भी लगाया है |
सभी फेसबुक के बारे मे अपने 'सुंदर-सुंदर' विचार ब्लॉग पर रखते हैं, तो हम भी यहीं देख के लाए हैं- "फेसबुकिया साइकिल"
आपने अब-तक लाइफ साइकिल,इको साइकिल,वाटर साइकिल,ऑक्सीजन साइकिल,कार्बन साइकिल और ना जाने कौन-कौन सा साइकिल देखा और पढ़ा होगा...पर मै आपके सामने रख रहा हूँ-
"फेसबुकिया साइकिल"
अब देखना है कि ये साइकिल चला के कितना मज़ा आता है आप सबको |

              1st स्टेज ऑफ साइकिल (छोटा हैं पर काम का है......)

                                         हमने करी पप्पा से Talking..
                                 पप्पा ने लगवाया नेट की Setting..
                                    फिर जब नेट हुआ Connecting..
                                                 तब हम हुए Starting..

              2nd स्टेज ऑफ साइकिल (असली शुरुआत,अब आगे देखिएगा.....)

                                        जब  नेट हुआ  Connecting..
                                                  तब हम हुए Starting..
                                  जिनसे तमन्ना थी,उनसे
                                                      होने लगी Chating..
                              प्यार की आईस रुक-रुक के Melting..
                                                 माई हार्ट इज Beating..
                                                               एंड Beating..
                                   हमने की प्यार के बारे मे Talking..
                                              उन्होंने किया Accepting..
                                                  हो गई हमारी Setting..
                                                   तब होने लगी Dating..

             3rd स्टेज ऑफ साइकिल (एकदम उफान मार रहा था.....)

                                                  अब..
                                                 दोस्तों मे बढ़ी Rating..
                                             लव वाले स्टेटस Posting..
                                            न्यू हेअर स्टाइल Cutting..
                                       करके बेल्ट के ऊपर Shirting..
                               मारने लगे हम बाइक पर Stunting..

            4th स्टेज ऑफ साइकिल (जोर का झटका जोर से....)

                                      जब बिगड़ा हमारा Budgeting..(budget)
                                                  तब माइंड मे Getting..
                                           दैट समथिंग इज Faulting..
                                                तब मैंने किया Testing..
                                            तो पाया उनको कि...
                            उनका हो गया दूसरों के साथ Meeting..
                                  बैठा लिया उन्होंने अपना Setting..
                                        हमरे साथ हो गया Cheating..
                                                        सब कुछ Losting..
                                                        सब कुछ Routing..
                                                        सब कुछ Looting..

          5th स्टेज ऑफ साइकिल (उनको भुला के फिर से Recovory...... )

                                   उनकी याद मे बुरी लगी Habiting..
                                                  देर तक अकेला Sitting..
                                                 बुरे ख्याल Thoughting..
                                                   फिर माइंड मे Getting..
                                      कि क्यूँ कर सुसाइड Commiting..(commit)
                                              फिर..
                                              यादों को किया Formating..
                                                   प्रोफाइल किया Editing..
                                                     फिर....
                                                    नेट करके Connecting..
                                                             हुए हम Starting..
                                    तब पूरा प्रोसेस फिर से Restarting..
                                                   तब जाकर...
                           "फेसबुकिया साइकिल" हुआ Completing..

                         और बढ़िया लगे तो कीजिएगा Commenting..

2 सितंबर 2012

तुम याद आती हो...




                                                   वक्त तेज़ी से निकला और
                                                   और तुम वक्त से तेज़ निकले...

                                                   जख्म तो तुम्हारे जैसे दगा दे गया,
                                                   पर निशानी का साथ अब भी है...
                                                   अब शामिल है,मुस्कुराना फितरत में...
                                                   और 'शायद' इसकी खबर किसी को नही,
                                                   कि पीछे एक दर्द अब भी है...
                                                 
                                                   मेरे-तुम्हारे हिस्से का,
                                                   जहाँ गुजरता था वक्त,
                                                   अब भी जा आता हूँ...
                                                   कुछ बदला नही, तुम्हारे सिवा
                                                   पर ढलता सूरज,
                                                   जाता है कहता हुआ...
                                                   कि...तुम्हारे जाने के दिन मे,
                                                   एक और दिन जुड़ गया |
                                                 
                                                   तुमसे अब कोई वास्ता नही,
                                                   पर आज तलक...
                                                   तुम्हारे हिस्से का वक्त यूँ ही...
                                                   'तन्हा' गुजरता है |

                                                   कभी-कभी सोचता हूँ,
                                                   कि काश...!
                                                   कोई ऐसा दिन भी आता,
                                                   तुम पास मेरे आती और कहती,
                                                   कि "कौन लगते हो तुम,मेरे??"
                                                   जो रोज सपनों मे चले आते हों |

                                                                                -"मन"