पहली कहानी - पहली
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एक ऐसा लड़का जो शायद भटक रहा था किसी के सच्चे साथ के लिए, साथ जो बंधन तो क़तई न बने। कोई ऐसा मिले जो उसका हाथ थामकर कहे कि बस, अब तुम रूक जाओ। पिछले साथ में लड़की को अनुभव ऐसे मिले थे कि वो प्यार को बंधन ही मानती आयी थी। उसी लड़की से लड़का मिला और दोनों के दोनों का साथ भा गया। बादलों के बीच से गुज़रने वाली सुनहरी धूप की तरह वो लड़की उसकी ज़िंदगी में आई। बातों का सिलसिला शुरू हुआ। लड़के के पास बेशुमार कहानियाँ होतीं और लड़की के पास पहाड़ जितना सुनने का धैर्य। कभी ख़ूबसूरत गाने भेजे दोनों ने एक दूसरे को, तो कभी पसंद नापसंद की बातें। कविताएँ एक होती थीं पर उसमें लिखे हुए शब्द दोनों के शामिल होते। हद चाय पसंद करने वाला लड़का अब कभी-कभार लड़की की पसंदीदा कॉफ़ी भी बनाकर पी लिया करता था। प्रेम हमें रबड़ बना देता है, मालूम ? नहीं मालूम तो प्रेम कीजिए और अपनी नापसंद को पसंद बनने का चमत्कार देखिए।
पर वो कहते हैं न कि नियति कभी-कभी दो लोगों को बिछड़ने के लिए भी मिलवाती है। ठीक ऐसा ही इन दोनों के साथ भी हुआ। एक समय बाद लड़की कहती रही लड़के से- "तुम जाओ उस लड़की के पास जो तुम्हें अच्छी लगती है, मैं तुम्हें कभी न कभी भविष्य में निराश करूँगी ही।" लड़की के बार-बार कहने के बावजूद भी लड़के ने कभी अलग होने की बात तक नहीं सोची। उसने शादी का प्रस्ताव भी रखा पर लड़की ने बात भविष्य पर छोड़ने को कह कर वर्तमान में साथ चलने को कहा। परिस्थितियाँ समय के साथ बनने के बजाय और बिगड़ती चली गई। लड़के बंद मुठ्ठी से ज़्यादा देर तक नहीं बहल सकते, मालूम ? बातें न के बराबर होने लगीं और ग़लतफहमियाँ रास आने लगीं। रिश्तों के टूटने की ज्यादा वज़ह ग़लतफहमियाँ ही होती हैं। लड़की का शक़ करना, लड़के को रोकना, ये सारी परिस्थितियाँ मिलकर लड़के के मन को अंदर ही अंदर परेशान करे जा रही थी। इंसान का मन ऐसा है ना कि वो जब टूटने लगता है तो वो बहुत जल्दी उस परिस्थिति पर काबू करने की कोशिश करता है जिससे वो जूझ रहा होता है। लड़की के लिए लड़का और मुश्किलें खड़ी करने लगा। और काबू पाने के क्रम में आख़िरकार अंत में एक फैसले ने दोनों को अलग कर दिया कि लड़का अपनी पसंदीदा लड़की के पास लौटेगा क्योंकि अब लड़की को उससे कोई परेशानी नहीं थी।
प्रेम में निराशा जैसे भावों को जगह मिलनी ही नहीं चाहिए। प्रेम अगर सच्चा है तो मिलन होगा ही चाहे मृत्यु के बाद ही क्यों न हो। मालूम ?
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