31 दिसंबर 2012

बस थोड़ा-सा अलग...!

नववर्ष आने को है और हम हर बार की तरह नए जोश,जूनून,संकल्प के साथ तैयार हैं प्रवेश करने के लिए. सभी चाहते है कि नया साल कुछ ऐसा हों जो पिछले साल की उम्मीद जो बाकि है,पूरी हों जाए.मै भी चाहता हूँ,पर कुछ नए की शुरुआत हों इसके लिए यह एक दिन ही क्यूँ,हम पूरे साल के एक-एक दिन को नए साल के जैसे मनाएँगे."हर दिन हमारा,पिछले दिन से बढ़िया हों" ऐसा सोचेंगे और सोचने से एक कदम आगे जाकर ऐसा कुछ करेंगे कि हम एक पल के लिए दूसरों के नज़र में न सही पर अपनी नज़र में,हम खुद का आदर्श बन सकें.तो हम संकल्प ले कि २०१२ की असलियत को न भूलकर हम २०१३ में उन सभी कामों को थोड़ा और बेहतर बनाएँगे जो इंसानियत की खातिर और खुद के भले के लिए हों...

:(
कुछ आसान करती हुई राहें
कुछ भूले-भटके खुद भी
वक्त के साथ चलकर,
जो मंजिल के करीब लाए
उन राहों को ढूंढकर
कि आओ अब,
गुमराह राहों से ही
एक रास्ता और निकालें...

जो बीत गया उसे भुलाकर
कदम मिलाकर उन गलतियों से भी
कुछ सही करने की चाह लेकर
गलतियों से ही कुछ सीख लेंगे
कि आओ अब,
अफ़सोस की बीज से ही
उम्मीद का एक पौधा उगाएँ...

खुद ही को खुद में सिमटा के,
जी रहें थे शर्त के सहारे
कुछ ऐसा न होगा अब से
कि आओ अब,
लफ्जों की दुनियादारी में
आँखों की सच्चाई को माने...

नववर्ष की अनंत शुभकामनाएँ,वो सारी खुशी आपको हासिल हों जो आपके लिए उपयुक्त हों...

                                                                                                        - "मन"

18 दिसंबर 2012

कि अब,राह तकता हूँ...

हर पल को कुछ यूँ जिया हूँ कि 
अगले पल की ना हों खबर..
जो लाए हर खुशी,
उन लम्हों को सजोंकर..
उन बेरुखी से राहों से,
आगे निकलकर...
बुरे वक्त ने सबको कुचला है,
पर सामने लाया है,
कुछ सच्चे चेहरों को उभारकर...
चलता जा रहा हूँ 
कुछ चेहरों को पढ़कर, 
कुछ को पीछे छोड़कर..
इस ज़िंदगी की हर चाल को मै जनता हूँ
कि अब, 
मै रोज एक खुशी की राह तकता हूँ...
कभी थोड़ा सा पाया है,
बहुत कुछ खोकर..
कभी बहुत मुस्कुराया हूँ
थोड़ा सा रोकर..
पर सुकूं है कि 
मै हर बार खुद से जीता हूँ,
दुनिया वालों से हारकर...
चलता जा रहा हूँ
जिस राह पर मंजिल दिखी है दूर,
उस राह को थामकर..
हर राह को पहचानता हूँ
कि अब,
मै रोज एक खुशी की राह तकता हूँ...

क्या टिके ज़िंदगी
हम इंसानी फ़ितरत के आगे,
हम तो खुशियाँ भी ढूँढ लेते हैं
उन कचरों के ढेर से...

                         - "मन"

5 दिसंबर 2012

एक 'कल' के लिए...

कुछ बाकि है अभी भी,
कुछ कसक पूरे होने की...
जिसका इंतजार है,
हर बेजुबां तमन्ना को...
जहाँ खत्म हों बुझी-बुझी सी सुबह,
और तलाश है उस दिन की...

हर सुबह की उम्मीद में,
यूँ स्याह रातों का बीतना...
अधूरे सपनों की चुभन से, 
यूँ नींद,आँखों में भरना...
कि ये साजिश है वक्त की,
या खेल उन धुँधले लकीरों की...

कुछ वक्त की जोर से हुए पूरे,
कुछ ख्वाब रह गए अधूरे...
जहाँ खोकर आए हैं खुद को,
मुझे छोड़,खबर है सबको...
फ़िकर अब भी है,
उन अधूरे ख्वाबों की...
जिसके होने से मुझे इंतजार है,
एक सुनहरे कल की...

अब गम को पिघलना पड़ेगा ही,
राहें होंगी सीधी भी...
कि इंतजार है 
किसी मंजिल को,
एक-ना-एक दिन अपनी भी...

                           - "मन"