30 मार्च 2013

ज़िंदगी और राहें...

"हम जैसा चाहते हैं,ज़िंदगी उसी तरह आगे बढ़ती चली जाती है" पर यह बात शायद हर वक्त,हर जगह लागू न हों | कभी-कभी हमें अपने हिसाब से न चलाकर ज़िंदगी,जिस राह पर ले जाना चाहती है उसी तरफ चलना पड़ता है...पर कहीं न कहीं उस सही या गलत राह के लिए हम खुद ही जिम्मेदार होते हैं,यह बात हम खुद समझ जाए तो बेहतर वरना वक्त तो समझा ही देता है |
ज़िंदगी के रास्ते में हम बहुतों से मिलते हैं,किसी को खुद के बेहद करीब पाते हैं तो किसी से दूरी रखना सही लगता है...पर जीने का तरीका ये नही होना चाहिए कि खुद को बदले बिना हम ये उम्मीद करें कि हमसे जुड़े हुए लोग भी बदल जाए...

पलकों को बोझिल किए हुए
चल पड़ता हूँ उन राहों पर भी,
जिसे भुलाया भी न जा सका
और रहा हूँ उससे बहुत दूर भी...
अफ़सोस है कि
कुछ राहें बदल गईं,
उन्हीं राहों पर चलते-चलते
पर एहसान है उनका कि
चलना सिखाया है मुझे,
आगे की राहों पर...
कुछ राहें होती हैं
जिन्हें मंजूर नही कि
हम कुछ रिश्तों के संग,
चलते जाए उनपर
तो फिर
जरुरी हो जाता है,
किसी एक को पीछे छोड़कर
आगे बढ़ जाना...

                                   - "मन"

25 मार्च 2013

ज़िंदगी..ख़ुशी..प्यार...

मुंशी प्रेमचंद जी कहते हैं कि "जीवन का वास्तविक सुख,दूसरों को सुख देने में है,उनका सुख लूटने में नही"
सबके पास अपनी-अपनी ज़िंदगी है,वक्त भी बहुत है पर शायद,दूसरों के लिए नही | जहाँ एक ओर हम कहते हैं कि ज़िंदगी के इस सफ़र में खुद से बड़ा कोई हमसफ़र नही होता वहीँ दूसरी तरफ कि हमारे सुख या दुःख में हमें किसी ऐसे इंसान की जरुरत पड़ती है जो भले हमारे ख़ुशी से खुश न हों पर दुःख में दुखी जरुर हों,जो हमें समझता हों,जो ज़िंदगी,ख़ुशी और प्यार के सही मायनों से हमें वाकिफ़ करवाता हों...
तो फिर सही क्या है? गलत किसे कहें और किसी एक को सही मान ले तो,क्यूँ? दोनों बातें हमारे सामने हैं,फैसला हमारे हाथों में है कि हम किस बात को अपनी ज़िंदगी के लिए चुनते हैं...किस बात से हमारी ज़िंदगी में ख़ुशी आती है या इससे बढ़कर कि हमें,हमारी ज़िंदगी में खुश रहने की वजह से और कितनी जिंदगियों में खुशियाँ हैं |
जब हमें ज़िंदगी,ख़ुशी,प्यार के सही मायने पता चलते हैं तो हम खुश रहते हैं और हर कोई जो हमारी ज़िंदगी में आता है वो किश्तों में गम और एकमुश्त ख़ुशी लिए हुए आता हैं,इसके पीछे वजह हमारे नज़रिए का भी हों सकता है पर वजह चाहें हालात कैसे भी हों,हमें खुश रहना चाहिए...हमारी वजह से वे लोग खुश रहते हैं जो हमसे जुड़े हुए हैं और फिर उन्हें खुश देखकर हमें और ख़ुशी मिलती हैं |

                                                                                                - "मन"

20 मार्च 2013

एक ज़िंदगी की तरह...

कभी खुद का दीदार किए हों,
कभी समझे हों,इस जहाँ में
तुम्हारे होने का मतलब
कभी सोचे हों,
उम्मीद के कई धागे तुमसे जुड़े हैं
तुम्हारा बस होना भर ही,
किसी के लिए ज़िंदगी है...
और तुम्हें इसकी खबर तक नही |
कभी किए हों,
कुछ सुलझाने की एक पहल
खुद से उलझते जाते हों...
फिर सामने होती है एक और पहेली |
कभी कोशिश किए हों,
खुद को समझे बिना
दुनिया को समझना...
मुमकिन है पर आसान नही |
सच तो सच ही है
कोई सा तरीका अपनाकर,
समझा सकते हों खुद को
पर ये भी सच है कि
बस हम खुद को समझ जाए
और
ये उम्मीद करें कि
अंत में सबकुछ ठीक होगा,
एक फ़िल्म की तरह...
एक ज़िंदगी की तरह...

                      - "मन"

17 मार्च 2013

...कि दामिनी कुछ हमारी भी लगती थी"


कितना अजीब था ना,
इंसान ही उसे उस हाल में पहुंचाकर
इंसान को ही उसके लिए रोते देखा था
खुद के इंसा होने का रंज देखा था |
अगर दुनिया ऐसी ही है,
तो अच्छा हुआ...
उसे इस दुनिया से जाते हुए देखा था |
उसे हमारी नाकामियों में कैद होते देखा था
उसे ज़िंदगी से लड़ते देखा था
उसे इंसानियत से हारते देखा था
उसे सँभलते देखा था
उसे फिसलते देखा था
उसे अपनों से दूर जाते देखा था |

इक याद बस बन के पन्नों में,
दब सी गई है...
दामिनी अब शायद मर सी गई है !!!

                                           - "मन"