31 अक्टूबर 2012

एक तुम ही तो हों...

जब होता है तुम्हें देखना,
तब बंद कर लेता हूँ आँखें
और
फिर तुम चली आती हों
आँसू बन के...

जब होता है तुम्हें पाना,
तब महसूस कर लेता हूँ
हवाओं को,
और
फिर तुम छू के निकल जाती हों...
यूँ सरसराती...

जब होता है तुम्हें छूना,
तब सहारा लेता हूँ
स्याही और कागज का
और
फिर तुम आ जाती हों करीब...

जब होता है तुमसे मिलना,
तब घुम आता हूँ उन गलियों में
जहाँ मिल जाती हों तुम
और
फिर मै मुस्कुरा लेता हूँ,
यूँ गम की आड़ में...

जब होता है तुम्हें सुनना,
तब ले जाता हूँ,
इस दिल को कहीं अकेला
और
फिर वहाँ होती हों तुम और मेरी तन्हाई...

अब सोचता हूँ कि शायद तुम मेरे किस्मत में नहीं थी...पर दिल पर किसका जोर है,वहाँ तो बस तुम ही तुम हों...और इसीलिए वो "दिल" कहलाता है...नही तो वो दिल नही कहलाता और उस दिल को "दिल" बनाने में पूरी जिंदगी गुजर जाती |
कभी-कभी हमारे जिंदगी के उसूल इतने कमजोर क्यूँ पड़ जाते है कि हमें किसी और की आवश्यकता पड़ती है,इस जिंदगी को आगे बढ़ाने के लिए...पता नही क्यूँ...???

                                                                                                            - "मन"

25 अक्टूबर 2012

एक दुनिया जो छोड़ आए...

एक दुनिया जो छोड़ आए,
एक दुनिया बसाने के लिए...
किसी अपनों को छोड़ आए
उन्हीं अपनों को कभी,
सहारा देने के लिए...

चलता जा रहा हूँ सफर पर
जहाँ साथ है,
खुशी,उमंगें,उम्मीद और हौसला...
पर एक कोने में बैठी है,
आँसू,गम और तन्हाई...
जो याद दिलाती है,
एक दुनिया जो छोड़ आए...

आज अपनों से दूर सही,
पर जुड़ा हुआ हूँ मन से...
आज बात हो जाती है कुछ पल,
फिर जी जाता हूँ हर पल...
कुछ खोकर पाने में जीत है,
और जिंदगी की यहीं रीत है...
और जरुरी भी है,
एक दुनिया बसाने के लिए...

कुछ पानी की बूँदे,
आ जाए पलकों तक,मन को झकझोर के...
तो फिर वहीँ से
एक डोर निकलती है उम्मीद की
जिसके सहारे चल निकलता हूँ,
इस शर्त पर कि
एक दुनिया जो छोड़ आए,
एक दुनिया बसाने के लिए...

                            - "मन"


22 अक्टूबर 2012

कल भी मिला था...

आपने किशोर दा का यह वाला गाना सुना ही होगा....
                       
                           "आते-जाते खूबसूरत आवारा सड़कों पे...
                            कभी-कभी इतेफ़ाक से,कितने अंजान लोग मिल जाते हैं...
                            उनमें से कुछ लोग...
                            भूल जाते हैं,कुछ याद रह जाते हैं..."

इन चार लाइनों से हमारा वास्ता डेली लाइफ में पड़ता रहता है,वो बात अलग है कि यह आवारा सड़क कभी ब्लॉग बनकर आता है तो कभी फेसबुक तो कभी कोई सफर या फिर कभी कोई ठिकाना...पर लोगों का हमसे मिलना या हमारा उनसे मिलना तय है...हम जैसा है वैसे भी लोग मिलते हैं जिनसे हमारी खूब जमती है...कुछ अलग टाइप के भी मिलते हैं,जिनके व्यक्तित्व में कुछ खास बात होती है और हम सोचने लग जाते हैं कि इस बंदे से कुछ सीखना चाहिए...कुछ ऐसे भी मिलते हैं जिनके व्यक्तित्व के काबिलियत को देखकर मुस्कुराने के अलावा कुछ नही सूझता...और ये मदद करते है हमें सभी टाइप के व्यक्तित्व के बारे में जानकारी रखने में...

हम लोगों से मिलते हैं...जिनके साथ हमें अच्छा अनुभव मिलता है तो हमारा नजरिया भी उनके प्रति अच्छा हों जाता है...जिनसे बूरा अनुभव मिलता है तो हम सतर्क हों जाते हैं...और इन दोनों के ही आधार पर हम आगे की ओर कदम बढ़ाते हैं...
इन मिलने वालों में से कुछ के साथ ऐसा एक बंधन या रिश्ता बन जाता है जिन रिश्तों के हाथ-पैर भी नही होते...पर जो सुख,शांति और चेहरे पर जो मुस्कुराहट झलकती है शायद कोई अपना भी नही दे सकता |

अभी कुछ दिनों पहले मैंने "OHH MY GOD" फिल्म देखी...इस फिल्म में नया कुछ भी नही बताया गया है...जो हम देखते,सुनते आ रहे हैं कहानीकार ने उसे करके बताया है...
ऊपर वाले को मानना चाहिए या नही मानना चाहिए...इस दोनों ही खास मुदों का सटीक कारण दिया हुआ है...हम माने तो क्यूँ माने और नही माने तो क्यूँ नही माने...मै यह नही कह रहा कि इसे देखने के बाद जो आश्तिक है वे नाश्तिक हों जायेंगे या जो नाश्तिक है वे आश्तिक...|
यह फिल्म बताती है कि हर एक आदमी के अंदर भगवान है...निर्भर करता है हमारे नज़रिए पर...हम किस तरीके से देखना पसंद करते हैं लोगों को जो जिंदगी के सफर में हमसे मिलते हैं...यकीं मानिए आप अपने नज़रिए को अपनी जिंदगी के हिसाब से बदल लीजिए,आप रोज भगवान से मिलेंगे...मै तो रोज मिलता हूँ...कल भी मिला था | 

यह एक इंसानी फ़ितरत है कि जब कोई आदमी हमें बूरा लगता है तो हमें केवल उसकी बूराई नज़र आती है और जब हमें कोई अच्छा लगने लगता तो हम केवल उसकी अच्छाई की तरफ देखते हैं...पर हमारे कुछ भी सोचने से सामने वाला नही बदल सकता है...वह उसकी जिंदगी है...चाहें जैसे बनाए | पर हमारी जिंदगी तो हमारे हाथ में ही है...पकड़ के रखना है या छोड़ना है...ये हमे खुद को सोचना है |
  
जिंदगी में बहुत सारे भगवान मिलेंगे,हमारे ही रूप में...कभी किसी मोड़ पर,कभी सफर करते-करते...फिर वहाँ पर बहुत सारे समझौते होंगे दिल और दिमाग के बीच...पर यह याद रखना होगा कि "जिंदगी समझौतों से भरी पड़ी है,यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस-किस का सामना करने के लिए तैयार है"

                                     "चेहरे मिलें हैं हजारों...
                                      यूँ सफर करते-करते,जिंदगी की राहों में...
                                      कि
                                      किसी ने ऊपर वाले का दर्जा पा लिया...
                                      तो कोई,
                                      सामने से गुजर गया और नज़र भी ना आया...."

                                                                                            - "मन"

20 अक्टूबर 2012

आखिर जिंदगी को क्या तलाश है...

कभी-कभी सोचता हूँ कि जिंदगी हमें चलाती है या हम उसे...क्या जिंदगी में बस वहीँ सब होना चाहिए जो केवल और केवल हम चाहते है...क्या जिंदगी में सबकुछ खुशी ही होती है या दुःख का मतलब भी समझ में आना चाहिए...
हमें कभी-कभार अंदाजा भी नही लग पाता कि जिंदगी को हमसे क्या चाहिए...और हम उसे क्या दे रहे हैं...हमारे कुछ फैसले,हमें उन नतीजों तक लेकर जाते हैं जिसकी कल्पना हमने कि भी नही थी...फिर दोष किस पर डालें...
जिंदगी पर या अपने-आप पर... जिंदगी के सफर में हम कुछ राहें चुनते हैं...मंजिल की खोज में आगे बढते हैं,पर मंजिल का कोई अता-पता नही...तो राहें गलत थी या हमारा फैसला...
किसी शायर ने यूँ फ़रमाया है कि -

                        "जिंदगी तेरा दस्तूर समझ नही आया...क्या है मेरा कसूर समझ नही आया... 
                         तेरी हर एक चाल पे,नज़र रखता हूँ मै...फिर भी तेरा फतूर समझ नहीं आया..."

बेखबर...बेपरवाह...
उस राह पर भटकता हुआ
जहाँ निशां है,
कुछ ठिठकते क़दमों के...
शायद,मेरे और मुझमें कोई बात नही बनी...
और फिर राहें ऐसी मिली,
जिसका अंत मंजिल तो नही है...|
वहीँ बिता हुआ कल,जब आज में,
झलक जाए आँखों के सामने,
तो जिंदगी फीके रंगों पर सवार हों जाती है...
मन को मलिन होना पड़ता है और
सपने,आँखों से समझौता कर लेते हैं...|
मै कहीं तो जा रहा हूँ...
कहीं उड़ता हुआ...
कभी मुड़ता हुआ...
कभी किसी राह को ठोकर मरता हुआ,
पर शायद उन कुछ राहों पर मंजिल का पता लिखा था,
और मै था अंजान...|
पांव तले कितनी राहें रुख कर गई...
ना पूछा,ना रोका,ना टोका,ना सोचा,
पता नही आखिर जिंदगी को क्या तलाश है...|

पर यह जरुरी तो नही कि हर राह,मंजिल तक ही जाती हों...कुछ का अंत भटकाव भी होना चाहिए जो कि हमारी मदद करें उस राह को चुनने में जो बेशक कुछ मोड़ लेती हुई मंजिल तक ही जाती हों...जिंदगी की राह में ठोकरें काफी मिलती है लेकिन अपने पैरों पर उठ खड़े होने का फैसला केवल हमारे हाथों में ही है...

                "आसान जरुर होंगी राहें...अगर मुश्किलों का सामना हिम्मत से हों जाए...और,
                 हौसला धीरे से मुस्कुरा दे...फिर जिंदगी बढ़ चलेगी अपनी राह पर और हम उसके सहारे"

                                                                                                                - "मन"

16 अक्टूबर 2012

कुछ रिश्ते होते हैं...

कुछ रिश्ते होते हैं...
जो नाम के मोहताज नही...
उन्हें बेनामी रहना पसंद है,
इस शर्त पर कि
एहसास कभी कम ना हों उन रिश्तों के लिए...

कुछ रिश्ते होते हैं...
जिन्हें दूरी पसंद है
और करीब आने का राश्ता,
वे शायद भूला चुके होते हैं...

कुछ रिश्ते होते हैं...
नाकाब पहने...यूँ साथ चलते हैं जैसे...
उन्हें परवाह है हमारी...
पर अफ़सोस उनके लिए कि,
एक ना एक दिन नाकाब भी साथ छोड़ देगी...
उनके,इस रवैये के लिए...

कुछ रिश्ते होते हैं...
दिखावटी,
जहाँ दम घुट रहा होता है...
खुशियों का...एहसास का...
और उन रिश्तों का होना...
शायद कभी-कभी,
जरुरी हों जाता है इस जिंदगी के लिए...

कुछ रिश्ते होते हैं...
इतने जरुरी जितने कि...
नदी के लिए पानी...
कलम के लिए कागज...
और फिर उन रिश्तों के,
होने से ही हम होते हैं...

कुछ रिश्ते होते हैं...
जिनका बंधन यूँ तो मजबूत नही,
पर टूट के बिखरना,इतना आसान भी नही है...

कुछ रिश्ते होते हैं...
जो दफ़न हों जाते हैं,
वक्त के गहरे समंदर में...
लेकिन उनकी परछाई हमारा साथ दे रही होती है...
आज में,
और हम होते हैं बेखबर...

कुछ रिश्ते होते हैं...और होने भी चाहिए...|

                                           - "मन"

सही में रिश्तों का इस जिंदगी में होना उतना ही जरुरी है जितना की हमारे वजूद का इस जिंदगी में होना...कभी-कभी रिश्तों की डोर ढीली पड़ जाती है और फिर उन रिश्तों के लिए जीने की आश धुँधली नज़र आती है...मन को चैन नही पड़ता...और खुली हवा में भी घुटन महसूस होती है...
एक फिल्म में एक पात्र यह कहता भी है कि "बंधन रिश्तों का नही एहसास का होता है...अगर एहसास ना हों तो रिश्ते मजबूरी बन जाते हैं...वहाँ प्यार की कोई जगह नही होती...और वैसे भी रिश्ते,जिंदगी के लिए होते हैं,जिंदगी रिश्तों के लिए नही"

14 अक्टूबर 2012

यूँ ही नही कहलाती है...


                                                   जब-जब थामने की कोशिश करता हूँ,
                                                   कुछ दूर जा खड़ी होती है
                                                   गर बंद करना चाहूँ भी इसे,
                                                   कुछ ढ़ीली सी पड़ जाती है |
                                                   जब मतलब समझना चाहूँ,
                                                   बेमतलब सी हों जाती है
                                                   जब होता हूँ बेखबर तो,
                                                   हवा सा छू के निकल जाती है |
                                                   जब अकेला बैठा होता हूँ,
                                                   तब साथ देने आती है
                                                   बिन कहे-सुने,
                                                   कुछ बूंदों को लिए हुए,
                                                   सब कुछ कह जाती है |
                                                   जब कलम उठाता हूँ,
                                                   दौड़ी चली आती है
                                                   कुछ बेजान से शब्दों में,
                                                   जान डालकर
                                                   सबकुछ बयां कर जाती है |
                                                   कुछ रिश्तों के जरिए,
                                                   होता है इसका आगे बढ़ना
                                                   कभी अपनों से है बढ़कर,
                                                   तो कभी दुश्मनी सिखा जाती है |
                                                   जब गलती को याद रखकर,
                                                   सबक को भूल जाता हूँ
                                                   तो
                                                   कुछ दूर खड़ी होकर मुस्कुराती है |
                                                   जीतना ही जरुरी नही,
                                                   हर मोड़ पर,बार-बार
                                                   हारना भी बखूबी सिखलाती है |
                                                   कहीं तिनकों का आसरा लेकर
                                                   कभी कागज पर स्याही बनकर
                                                   कभी चेहरों की मुस्कुराहट बनकर
                                                   कभी दिल का दर्द बनकर
                                                   सब जगह दिख जाती है |

                                                   सारे रंगों को भी सोखकर,
                                                   कभी फीकी ही रह जाती है
                                                   "जिंदगी"-यूँ ही नही कहलाती है...!!!
                                                                                     
                                                                                         - "मन"

11 अक्टूबर 2012

एक उल्टी प्रेम-कहानी


वो लड़का हर बार की तरह इस बार भी उस लड़की से मिल रहा था...जैसे ये दोनों पहले अनगिनत बार मिल चुके थे...और गवाह...ये फिजाएँ...बहती हवा...वक्त...इनकी मुस्कुराहट...पेड़-पौधे...चहचहाती चिडियाएँ थी...
पर इस बार वक्त ने सबकुछ बदल दिया था...केवल इन दोनों को ही छोड़कर...
फिजाएँ खामोश थी...हवाएँ कुछ रुखी-रुखी से बेमन बहे जा रही थी...हिलते-डुलते पत्ते यूँ बेजान पड़े थे जैसे,इन्हें कोई मतलब ही नहीं है किसी से...वक्त रुक सा गया था...चिड़ियों का चहचहाना कही गुम था इनके ख़ामोशी के आगे...उन दोनों की चेहरे की हँसी,इन हवाओं के साथ कहीं दूर बह गई थी...और अगर हवाओं का रुख पलट भी जाए तो इनकी हँसी इनकी मुस्कुराहट बनने को किसी भी हाल में तैयार ना थी...दूर-दूर तक सूना पसरा था...और उनकी दिल की बातें बिन जुबां के सहारे लिए उनकी आँखें बता रही थी...
लड़की थोड़ी सहमी नज़र आती है...लड़का थोड़ा बेबस...दोनों आमने-सामने आते हैं...लड़का,लड़की की हाथ पकड़ता है...लड़की और सहम जाती है...लकड़ा हाथ छोड़ देता है...फिर लड़की थोड़ी दूर होकर खड़ी हों जाती है...लड़का और पास जाने की हिम्मत को दबा लेता है...फिर लड़के की आवाज,खामोशी का तोडती है वह लड़की की आँखों में देखते हुए पूछता है..."हमनें साथ में एक-एक पल बिताने की कसमें खाई थी और अब तुम जा रही हों छोड़ के मुझे...मेरे जिंदगी के उन कुछ रिश्तों में तुम थी जो मुझे अपना कहती थी,फिर अलविदा कैसे कह दिया...???" लड़की की नज़रे झुक जाती है...लड़का वैसे ही रहता है,जवाब सुनने के इंतजार में...
पर उस लड़के को शायद पता नही कि कुछ सवालों के जवाब,जुबां कभी नही दे सकती और ख़ामोशी सबकुछ कह जाती है...
फिर वो लड़की उस लड़के को छोड़ के जाने लगती है...मुड़ के भी नही देखती है...और लड़के कि हसरत भरी निगाहें...कुछ पानी की बूंदों का सहारा लेकर उसके गालों पर आने लगती है...वह एकटक देखता जाता है...उस लड़की को जाते हुए...अपने सामने से...अपने जिंदगी से...अपने वजूद से...अपने सजाए ख्वाब से...
फिर वो लड़का नीचे गिर जाता है................
और फिर अचानक उसकी नींद खुलती है...यह सबकुछ एक सपना था...घड़ी सुबह के पांच बजने का इशारा कर रही होती है...वो सपना उसे कुछ देर तक सोचने को मजबूर करती है...फिर वह अपने काम में लग जाता है...पर रह-रह के वह उसी सपने के बारे में सोचता है...यह उसके साथ कभी हुआ ही नही...फिर क्यूँ ये सपना, हकीकत में उसका पीछा नही छोड़ रही है...फिर वो सोचता है कि शायद आगे जाकर ऐसा कुछ हों...क्यूंकि ऐसा कहते है कि भोर का देखा हुआ सपना सच हों जाता है...लेकिन उसके लिए पहले उस लड़के को एक लड़की की जरुरत है...जो उसे इतना प्यार करें कि उसे छोड़ने का दर्द कुछ इस तरह से बयां हों सकें....

10 अक्टूबर 2012

कुछ खास नही...बस यूँ हीं...!

कुछ चीजें ऐसी होती है जिन्हें कभी भी बदला नही जा सकता...उन्हें अपनाने के लिए या तो खुद हमें बदलना पड़ता है या फिर हमारी सोच बदल जाती है,उन चीजों के प्रति और ऐसा महसूस होने लगता है कि ये चीजें हमारे लिए मायने नही रखती...पर हमारी सोच बदल जाने से यह नही हों सकता है कि उन चीजों का असली मतलब भी बदल जाए...वे हमारे लिए ना सही किसी और के लिए तो वही मतलब लिए हुए है |
कुछ अनछुई बातें...लम्हें...जिसे जीया सबने है पर अपनाया कुछ ने ही...जिसे देखा सबने है पर महसूस कुछ ने ही किया है...जिसे कहा-सूना सबने है पर...अम्ल में कुछ ने ही लिया है...

लेखा-जोखा-
जब पेट और जेब दोनों एक साथ खाली हों तो ये एहसास होने में देर नही लगती कि जिंदगी ने हमें क्या-क्या दिया है और बदले में हमने उसे कितना लौटाया है???
वजूद-
सबके पास अपना-अपना है...पर कितनों के पास खुद का है???
किसे कहें अपना-
जो हमारी बातें सुनता हों...जो हमें समझाता हों...जो हमें चाहता हों...या फिर वो...जो हमारे दर्द को समझता हों... जो अपने हाथों से हमारे घाव पर मरहम लगाता हों...???
चेहरा-
हर चेहरे ने मुखौटा लगा रखा है हर चेहरे के सामने...हम खुद तो दूर,आइना भी गफ़लत में पड़ जाए कि असली वाला चेहरा कौन सा है ???
कहाँ तक जाना है-
आज चाँद तक पहुँच है हमारी...पर कितनों को ये खबर है कि अपना पड़ोसी कौन है???
जैसे को तैसा-
जो खुशियाँ पाने कि चाह रखते है...पहले वो ये बताए कि उन्होंने दूसरों को देने की कितनी बार कोशिश भर भी की है???

और इन कुछ के होने से ही ये दुनिया टिकी है |ये ऐसी बातें हैं...जो सब किसी पर लागू नही होती...या ऐसा भी हों सकता है कि कोई ऐसा चाहता ही ना हों...पर कितने अभी भी हैं इस दुनिया में जो इन बातों को अपनी जिंदगी में खुद आगे बढ़कर स्वीकारते हैं...जो सही को सही मानते हुए गलत को भी बखूबी पहचानते हैं...फिर वो दुनिया की नज़र में चाहें कैसे भी हों,अपनी नज़र में वे महान होते है...जो की असल जिंदगी जीने के लिए सबसे बड़ी चीज है...
मै तो यही जानता हूँ कि जहाँ कुछ सही है,वहाँ गलत भी होने की पूरी गुंजाइश है...और फिर जिंदगी का हर पहलू ऐसे ही संतुलित होता है...एक ही तराजू के दोनों पलड़ों पर चढ़कर...एक बगल सही तो दूसरी बगल गलत ...

                                                                                                           - "मन"

9 अक्टूबर 2012

सपने और पानी की बूँदें



सपने-जो आँखों में पनाह लिए...नाउम्मीदी से उम्मीदी तक...एक धागे का काम करती है...जिससे जिंदगी को जीने का एक जरिया मिलता है...और इसी के बदौलत अब-तक की जिंदगी मिली है....

पानी की बूँदें-बिन सावन आए...बगैर बादल के...घुमड़-घुमड़ के इन गालों पर चले आते हैं...ये जताने कि ये हमारे अपने हैं...कोई साथ दे या ना दे...हर खुशी...हर गम में...ये साथ खड़े होते हैं....

पर इन दोनों में समानता यह है कि...इनको पनाह मिलती है...आँखों में...जहाँ कोई किसी से कम नही...सपनों पर हमारा वश नही...और...ये पानी की बूँदें कभी खत्म होने का नाम ही नही लेती...इन दोनों का आना तय है...चाहें हर गम के बाद आए...या...हर खुशी के पहले....इन दोनों का होना उतना ही जरुरी है...जितना कि...एक-एक साँस है...इस छोटी-सी,खूबसूरत जिंदगी के लिए....

पर कभी-कभी यूँ भी होता है कि ये सपने...इन पानी की बूंदों को...आँखों से बेदखल करके...फ़िराक में रहती है अपना खुद का आशियाना बनाने में....पता नही क्यूँ????...पर उन सपनों को समझ में नही आता कि...सागर भी कम पड़ जाए इन कुछ बूंदों के आगे...और बूंदों को शायद ये पता नही कि...इन सपनों की कोई सीमा ही नही है....
                                                                                     
                                                                                                  - "मन"

7 अक्टूबर 2012

वो बच्चा...

कुछ दिन पहले जब मै मंदिर से होके आ रहा था तब रास्ते में मुझे एक करीब 7-8 साल का बच्चा मिला |देखकर और कहने को तो वो एक बच्चा ही था पर इतनी सी उम्र में उसकी समझ और बात करने का सलीका...
बस मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया |अपने खुद के,सच्चे शब्दों के जरिए उसने अपनी कुछ दिनों की जिंदगी को मेरे सामने रखा...और मै जानकर बस स्तब्ध हों गया था...उसकी मासूमियत से...उसकी सच्चाई से...उसकी चहरे की मुस्कान से...उसके अपनों के प्रति प्यार से...स्तब्ध हों गया गया था,देखकर कि...उसकी जिंदगी ने जिस राह को पकड़ी है वह उसे कहाँ लेकर जाएगी? "बच्चे देश के भविष्य होते हैं" पर ऐसा भविष्य किसे चाहिए??? और ना जाने कितनों की यही कहानी होगी....जो अपने टूटे-बिखरे,आधे-अधूरे शब्दों का सहारा लेकर अपनी पूरी दास्ताँ बयां करते होंगे...कुछ की सुनी जाती होगी और बहुतों की नही...

"भईया,आप थोड़ी दूर तक मेरे साथ चल सकते हों क्या...मेरा घर यहीं पास में ही है...रात हों गई है...और मै अभी बच्चा हूँ ना...सो डर लग रहा है"
"हाँ क्यूँ नही" (पर सहसा मेरा दिमाग,अखबार के उस खबर पर गया जिसमें यह था कि आजकल छोटे बच्चे, किसी को भी अपने घर तक छोड़ने की आग्रह करते हैं फिर उनके घर तक जाने पर...अपहरण करने वाले गिरोह अपने काम को बखूबी अंजाम दे देते हैं)
पर वह खबर,उस छोटे से बच्चे के चेहरे पर की मासूमियत से कुछ फीकी लगी...सो मै उसके साथ चलने लगा... |हाफ़ पैन्ट और हाफ़ टी-शर्ट पहने...हाथ में एक लकड़ी घुमाता हुआ...वह आगे-आगे और मै उसके पीछे...वह बार-बार मुड़कर पीछे देखता कि मै उसके साथ हूँ कि नही...जितनी बार वो आगे नही देखता उससे कई बार वह पीछे देखता...साथ ही साथ वह आस-पास के घर के अंदर भी देखता हुआ मस्ती में चले जा रहा था...चहरे पर मुस्कान लिए और मुझे अपनी तरफ रिझाते हुए |
और मै हर दो मिनट चलने के बाद उससे पूछ बैठता कि-
"कहाँ है तुम्हारा घर...?"
"बस वो वाला घर है ना...वो वाला...हाँ...उसी के आगे वाला...मेरा घर है..."
फिर मैंने उससे पूछा-
"तुम्हारा नाम क्या है?"
"सन्नू...पापा ने रखा है...और स्कूल के लिए मोहन"
"तुम कौन सी क्लास में पढ़ते हों ?"
"मै नही पढ़ता-वढता...पढ़ने का तो मन करता है...मेरे ताऊ जी का लड़का बिसू रोज पढ़ने जाता है...पर मेरी अम्मा मुझे पढ़ने के लिए भेजती ही नही है..."
"और तुम्हारे पापा?"
"वो तो है नही ना...वे मर गए...ऊपर चले गए...वे कमाने जाते थे...जब मै और छोटा था...वे मुझे पढ़ा-लिखा के बड़ा बनाना चाहते थे...उन्होंने कुछ दिन मुझे,घर के पीछे वाले सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा भी था...वे मेरे लिए किताब भी लाए थे बाज़ार से...पेंसिल भी"
"तुम्हारी अम्मा तुम्हें क्यूँ नही पढ़ाना चाहती है ?"
"वो सुबह-सुबह काम करने जाती है फिर शाम को आती है...फिर छुटकी...मेरी छोटी बहन,वो घर पर अकेली रहती है ना...रोती रहती है...अभी छोटी है ना इसलिए...इसलिए अम्मा मुझे घर पर ही उसे चुप कराने के लिए रखती है...मै उसको दिनभर खेल खिलाता रहता हूँ...वो भी खूब हँसती है...आज तो वो खाट पर से गिर भी गई थी...फिर रोने लगी...वो अपने आप गिरी थी...और अम्मा ने मुझे मारा...फिर वो हँसने लगी..फिर उसे देखकर मै भी रोते-रोते हँसने लगा..."
"तुम अम्मा को क्यूँ नही कहते हों कि मै भी पढ़ना चाहता हूँ"
"अम्मा कहती है पढ़-लिख के क्या करेगा...और वैसे भी अम्मा के पास इतने पैसे नही है कि वो कॉपी-किताब खरीद सकें...अम्मा कहती है कि...छुटकी थोड़ी बड़ी हों जाए तो...मुझे भी वो काम पर लेके जायेगी...और फिर मै भी दो पैसे कमाने लग जाऊँगा...मंहगाई भी बहुत है ना"
मैंने हँसते हुए पूछा कि "तुम भी मंहगाई का मतलब जानते हों ?"
"हाँ...अम्मा कहती है कि ये मंहगाई अब जान लेके ही छोड़ेगी...वो कहती है कि और पैसे कमाने पड़ेंगे,तभी जाके वो मुझे और छुटकी को पाल-पोस के बड़ा कर सकती है...ये महंगाई बड़ी खराब चीज है...है ना ?"
उसने मुझे निशब्द कर दिए थे...मै चाहकर भी कुछ भी नही बोल सका |
"क्या तुम्हें पढ़ना अच्छा नही लगता?"
"लगता है...पर पढ़ने-लिखने के पहले ही अब पैसे कमाने लगूँगा...तो पढ़ाई किस काम की...पढ़ने के बाद भी पैसा ही कमाऊँगा...तो अभी से कमाने लगूँगा तो अम्मा को भी कम काम करना पड़ेगा...
लो आ गया मेरा घर..आप अब चल जाओ...मै यहाँ से चला जाऊँगा"
और वह फिर अपने घर के तरफ उछलता-कूदता चला जाता है....और मुझे छोड़ जाता है निरुतर...निशब्द...के गहरे खाई में...उसने जो कुछ भी मुझसे कहा...सबकुछ वह हँसी-मुस्कुराहट के साथ घर के बाहर ही छोड़ जाता है...और फिर मैं उन्हें अपने ऊपर लादकर अपनी घर के तरफ चलने लगता हूँ...आगे की तरफ बढ़ता जाता हूँ...पता ही नही चला,पलकों के कोर गीले होने लगते हैं...चारो तरफ सन्नाटा...मेरा मन कहीं और भटक रहा होता है...दिमाग कही और...उसके कहे एक-एक शब्द मेरे सामने तैरते हुए नज़र आते हैं...और बस कहने के लिए कुछ बचता ही नही है |
             
                         सिलवटों में पड़ी दबकर...
                         कहीं जख्म तो कहीं खुशी थामकर...
                         हर चेहरे का सहारा बनकर,
                         कुछ नए रंग तो कुछ पुराने ही सही...
                         हर हाल में जीना सिखा देती है जिंदगी...!

                                                                   - "मन"

4 अक्टूबर 2012

"ये जो हैं...सपने "

सपने...ये जो हैं सपने...
झूठे ही सही पर सच के करीब होते हैं
हर खुशी को समेटे नैनों तले,
गहरे जज्बात लिए होते हैं |
कुछ फर्क नही पड़ता,
आँखें खुली या बंद हों
इनका आना तय है
वजह चाहें हों ना हों |
ये आँखों में हैं बसते,
और हम इनसे जुदा नही...
कोई भी सपना यूँ ही,
बेमतलब तो नही आ सकता?
इनमें छुपी होती है,
हमारी सच्चाई...
बीते हुए कल की दास्तान...
और आने वाले कल की झलक...
कुछ सपने छोड़ जाते हैं
गहरे भँवर में फंसा के...
जहाँ सोचने पर मजबूर होना पड़ता है,
कहीं सच ना हों जाए ये सपने...
और कुछ आते हैं
उम्मीद का दामन पकड़े,
और हम चाहते हैं कि काश !
सच हो जाए ये सपने...
बेतरतीब आते हैं ये सपने...
बड़े अजीब होते हैं ये सपने...
और कभी-कभी इन्हें पूरा
करने की शर्त,
हमें ले जाती है बहुत दूर
जहाँ मिलता है सिर्फ दर्द का सहारा |
सभी आँखें इन्हें देखती है,हक भी है,
पर कितनों को स्वीकार है उन फासलों को
मिटाने में जो सपने और उसके सच्चाई के बीच हैं???
शायद इसीलिए कुछ सपने
बस रह जाते हैं बनकर एक और सपने...
                                     
                                     - "मन"