11 अप्रैल 2013

यादें...

कहते हैं कि वक्त के साथ सभी चीझों का बदलना तय है,पर यादें कभी नहीं बदलती | हम चाहे ज़िंदगी के जिस किसी भी दौर से गुजर रहें हों,हमारी या हमसे जुड़ी किसी शख्स की यादें हमारा साथ देने आ ही जाती है | कभी उन्हें याद करके आँखों में नमी महसूस करते हैं तो अगले ही पल उन्हीं आँखों में ख़ुशी को भी पनाह मिलती है |
बेशक...कोई शख्स आज अपने करीब न सही,पर उनकी यादें ही है जो फासलों को मिटाने के लिए बखूबी हमारे दरम्यान हैं |
यादें,बीते हुए कल से जुड़ी होती हैं और हम उस कल को याद करते हुए,आज में जीते हैं एक बेहतर कल के लिए...

यादों का नहीं आना,
अपने वश में भी नहीं...
फिर क्यूँ है ? कोशिश,
किसी को भूल जाने की...

दूर जाकर
कोई,किसी को न भूले
शायद ! इसीलिए...
कोई देकर चला जाता है,
बेहिसाब यादें...

यादें बनती हैं,अश्कों से
धूप-छांव-मुस्कुराहटों से...
कोई याद आने लगता है
बेवजह ख़ुशी लिए तो,
कभी पलकों को भिगोने के लिए
शायद ! इसीलिए...
फासलें और बढ़ जाते हैं,
बेहद करीब आने के लिए...

                       - "मन"

6 अप्रैल 2013

गलतियाँ...

हर कोई जो कुछ सीखना चाहता है,वो गलतियाँ करता है या हो जाती है | गलतियाँ करके ही हम यह अनुभव कमाते हैं कि कोई काम किस हद तक सही या गलत है | हम कोई काम यह सोचकर करते हैं कि 'यह काम हमारे लिए सही होगा' तो उस काम में गलतियाँ हो जाने की भी उतनी ही गुंजाइश होनी चाहिए | फिर यह हम पर निर्भर करता है कि हम उन गलतियों से कुछ सीखकर आगे बढ़ना चाहते हैं या चंद लकीरों का बहाना लेकर कहीं रुक जाना बेहतर समझते हैं |
             हम भी गलतियाँ करते हैं,हमसे जुड़े हुए लोगों से भी गलतियाँ होती है फिर उनसे खफ़ा होकर हम एक और गलती कर रहें होते हैं | सबकी अपनी-अपनी ज़िंदगी है,उसूल है,अपना-अपना जीने का तरीका है...वे अपने काम के प्रति कोई सा भी नज़रिया लेकर चलते हैं तो हमारा नज़रिया,उनके नज़रिए को स्वीकार करने वाला होना चाहिए | पर इस दरम्याँ जरुरत इस बात की होनी चाहिए कि हमारे सामने वाला भी बहुत हद तक ऐसा ही कुछ सोचता हों |  

जब खुद को पाओ
अपने ही बेहद करीब,
एक बार सोचना
दूसरों की गलतियों के बारे में
रखना खुद को उसकी जगह पर
एहसास होगा कि
उसने जो किया,तुम भी वही करते...
कोई उन चीझों को जी रहा होता है,
तुम बस महसूस करके
निकल जाते हों आगे
और भूल जाते हों कि 
गलतियाँ तो इंसान से ही होती है
और एक ही इंसानियत सब में पलती है...

तुम अब भी ढूंढते हों 
दूसरों में गलतियाँ,
शायद..!
खुद से अभी तक मिले नहीं हों तुम...

                          - "मन"

3 अप्रैल 2013

आँसू...

"आँसू" अजीब होते हैं,हर ख़ुशी...हर ग़म में इनका आना तय होता है...इनके साथ होने से हमारी ख़ुशी और बढ़ जाती है और ग़म को भूल जाने का जरिया भी यहीं बनते हैं...
आँसू,जब आँखों से बेदखल हो जाते हैं तब हमें केवल वहीँ सब दिखता है जो हम देखना चाहते हैं ? पर इनके पीछे की कहानी कुछ भी हों,हमें इनका शुक्रगुजार होना चाहिए क्यूंकि जब ये आँखों से बेदखल होती हैं,कईं सारे ख्वाब घर कर बैठते हैं उन्हीं आँखों में...


पलकों को भिगोने के लिए,
आँसू पलते हैं जब आँखों में
यकीन मानो
तभी खुलती हैं आँखें हमारी...
गर हम,
गालों पर आँसू रखकर
मुस्कुराना जो सिख जाते हैं,
फिर एक ही मतलब लेकर आती है
बूँद आँसू की और
चेहरे की मुस्कुराहट हमारी...
क्या
आंसुओं का नही आना आँखों से,
सबूत है-ज़िंदगी को पूरा जान लेना ?
चलते-चलते राहों पर,
जब होते हैं बेखबर कुछ पहलुओं से
मिला देती है उनसे आँसू हमारी...

                   - "मन"