16 जून 2013

ज़िंदगी भी तो यही चाहती है...

जहाँ खुद ही खुद से जिरह हो
फिर हिस्से में आए खामोशी
जहाँ कुछ यकीन करने
और न करने के दरम्यान
खुद से मिलना न पड़े
जहाँ खुली आँखों के सामने
धुँधली दिखने लगे दुनिया
जहाँ कुछ खोने के डर से
बेतरतीब होते जाएँ सपने
जहाँ अपने करीबी के पास
वजह हो,दूर हो जाने का
जहाँ पसंद-नापसंद
मायने न रखते हो
जहाँ शिकवे-गिले रहने लगे
कुछ बेहतरी से ज्यादा
फिर वहाँ पर,
ज़िंदगी के रास्तों को
कुछ पल के लिए थामकर
दूसरों की नज़र से
खुद को टटोलना फिर
हम जो है,उसमें से
झूठ को बेदखल कर
सच को जगह देने के लिए
हर मुमकिन कोशिश करना
बेहद जरुरी है
क्योंकि,
कहीं न कहीं ज़िंदगी के हर मोड़ पर 
हम भी और एक सुकून भरी ज़िंदगी भी, 
हमसे यही तो चाहती है...

                                           - "मन"

12 जून 2013

आसान या मुश्किल ?

ज़िंदगी,आसान क्यों नहीं है ? और अगर आसान नहीं है तो इसे मुश्किल बनाता कौन है ?
             हम आज में जो कुछ भी कर रहे होते हैं,कल वही हमारे सामने आने वाला है...अगर सबकुछ आसान है तो खुद के साथ सबका शुक्रगुजार होना और अगर मुश्किलें आयेंगी तो दूसरों पर ऊँगली उठाना आसान है और सही भी है क्योंकि उन कुछ लोगों की ज़िंदगी ने उन्हें शुक्रगुजार होना कम और दूसरों पर ऊँगली उठाना बेहतरी से सिखाया है
             पर आखिर में ये खुबसूरत ज़िंदगी केवल हमारी ही है,हर राह के हर मोड़ के लिए हम खुद जिम्मेदार है,इस बात को कुछ लोग जल्दी समझ जाते हैं तो उनकी ज़िंदगी बहुत हद तक आसान हो जाती है और जो नहीं समझ पाते उन्हें अपनी ही ज़िंदगी से शिकायतें रहती हैं और मुश्किलों से सामना होता है...
             बहुत हद तक सही भी हो कि किसी की ज़िंदगी ही उसे मुश्किलों के सफ़र तक ले गई हों पर उन्हें ये भी मानना चाहिए कि ज़िंदगी ने उन्हें कईं मौके दिए होंगे जिससे उनकी ज़िंदगी आसान हो जाए,बेहतर हो जाए...
             ये समझना और जल्दी समझना बहुत जरुरी है कि ज़िंदगी वैसी ही बनती चली जाती है जैसा कि हम उसे चाहते हुए बनाते हैं,नहीं तो वक्त आने पर ज़िंदगी समझा ही देती है...फैसला हमारे हाथों में है-आसान या मुश्किल???
             ज़िंदगी,पहेली तो बिल्कुल नहीं है पर इसके हर मोड़ को ठीक-ठीक समझ लेना कभी भी आसान नहीं रहा...और हमेशा की तरह इसे लिखकर समझना बेहद आसान है,बेहद...

                                                                                                   - "मन"

7 जून 2013

ख़ुशी की वजह...

बेवजह खुश रहने के पीछे भी एक वजह होती है...चाहे वजह,वक्त की परतों में दब गई हो या फिर मुस्कुराने का सबब उस वजह को भुला देना चाहता हो...कुछ भी हो,अगर गम के लिए वजह हमारी ज़िंदगी बनती है तो हमारे चेहरे पर हर छोटी सी मुस्कुराहट को लेकर हमारी ज़िंदगी ही आती है...

ख़ुशी के लिए
ज़िंदगी को
कुछ लम्हों तक
गमों के रास्तों से गुजार देना
जरुरी है
बेइंतहा सुकूं के लिए
कभी-कभी
पलकों को भिगो देना...
फिर
पहुँच जायें उस हद तक
जहाँ नौबत न आयें
किस्मत के भरोसे रहने का
जहाँ आँखें नम होकर
तरीका सिखा दे
हँसते हुए सँभलने का...
तब
करें कुछ उस आज में ऐसा
कि
जो वक्त गुजरा है
किसी को भुला देने में,
उन्हीं लम्हों में जाकर
जी चाहें
मुस्कुरा देने का...

                    - "मन"

3 जून 2013

खुदगर्ज

उन्होंने
हर बात
हर समय
हर किसी को
बताई नहीं
उन्हें
और उनकी बातों को
समझने वाले
जरुरत से कुछ कम मिलें
उन्होंने
एक कल छोड़ आया था
एक कल के इंतजार में
उन्हें
भरोसा था खुद पर
अपने करीबी से भी ज्यादा
उन्होंने
यादों को पलकों पर रखकर
जाने दिया था लोगों को
वक्त के साथ
न चाहते हुए भी
उन्हें
एक देहरी लाँघकर
जाना पड़ा था उस पार
उन्हें
कुछ न कहना बेहतर लगा
खुद की नज़र में गिरने के बजाय
शायद इसीलिए
दुनिया की नज़र में
वे खुदगर्ज कहलाएँ
क्योंकि,
उनकी फ़ितरत में था
केवल जरुरत भर के लिए
किसी की ज़िंदगी में शामिल न होना...

                                   - "मन"

26 मई 2013

आसान है पर मुमकिन नहीं...

रोज की तरह
दिन के एक ओर से,
रात के सो जाने तक
ज़िंदगी के हक़ में आता है,
पलकों का बोझिल भी हों जाना
कुछ सपनों से,कुछ अपनों से
तो कुछ ठिठके हुए पानी की बूंदों से
कुछ गुजरे हुए लम्हों से
तो कुछ साँस लेती हुई यादों से...
मगर मुस्कुराते हुए लब
सोख लेते हैं उन बूंदों को भी
जिन्होंने पनाह दिए
उन उम्मीद लिए सपनों को भी...
कहते हैं कि
बीते वक्त की यादें लेकर चलते जायें
क्योंकि,
जीने के लिए आज ही बहुत है
पर कभी-कभी
नज़रें सहमी हुई सी जाती हैं
कुछ अनकही सी बातें,
लफ़्जों के लिए तरसते हैं
ख्वाब दम तोड़ने लगते हैं
फिर एहसास होता है कि
अपनी ज़िंदगी में से
किसी को बेदखल कर देना,
आसान है पर मुमकिन नहीं...

                               - "मन"

21 मई 2013

गलत और सही...

कुछ भी सही
और
कुछ भी गलत
कभी नहीं होता...कभी नहीं,
नज़रिए की बात है
हमारे लिए जो सही है
वो कतई जरुरी नहीं,
औरों के लिए भी सही हो
और
गलत के साथ भी यही है |
दुनिया वैसी नहीं है
जैसा हम सोचते हैं...
और
जैसा और जितना सोचते हैं,
दुनिया बिल्कुल वैसी ही है
हाँ,
सोच-जरुरत-जज़्बात को लेकर,
कोई पहलू सही-गलत जरुर है |
हमारे पास खूबसूरत ज़िंदगी है,
सोचने का तरीका है
खुद कीजिए सही-गलत में अन्तर
क्यूंकि,
सही जितना गलत है
गलत उतना ही सही |
और फिर जरुरत भी कहाँ है,
कि
हर-बात को सही-गलत की हद तक
खींचकर लायें,
कभी-कभी दूसरों को हँसता देखकर
हमें मुस्कुराना भी चाहिए...

                                        - "मन"

16 मई 2013

इसे भी 'प्यार' ही कहते हैं...

जैसा कि लगभग हर 'प्यार' में होता है | लड़का और लड़की दोनों एक दूसरे से बेहिसाब मोहब्बत करते थे,फिर वक्त के आगे दोनों की न चली और दोनों के बीच अब बेहिसाब दूरियाँ ने जगह ले ली थी |
                    ऐसा नहीं था कि वह लड़का अब उस लड़की को भुला देने की तमाम कोशिशें कर चूका हो | वह अभी भी अपने मुस्कुराने की हर एक वजह में से थोड़ा-सा वक्त निकाल के उस लड़की को याद करता था,"वह लड़की भी शायद ! इस लड़के को कभी याद करती होगी ?" बेशक,लड़का ये उम्मीद अपने हिस्से के वक्त की राहों में कहीं दूर बहुत दूर छोड़ आया था या वह खुद से समझौता कर चूका था कि लड़की उसे याद करें या न करें वह जरुर उस लड़की से जुड़ी हुई हर बीती बात को अपने आने वाले सभी वक्तों में याद करता रहेगा,शायद ! लड़के के लिए मुस्कुराने की यही एक वज़ह हों |
                     पर इस 'प्यार' (?) में लड़का कभी भी उस लड़की को याद करते हुए अपनी पलकों को भीग जाने का एक भी मौका पूरे यकीन के साथ कभी नहीं देता था,क्यूंकि वह लड़का अपनी माँ को हमेशा मुस्कुराते हुए देखना चाहता था और यक़ीनन इसे भी 'प्यार' ही कहते हैं...
                     
                                                                                          

12 मई 2013

उस माँ को सलाम...

जब रात,आँखों से गुजरते हुए,
दिन के करीब पहुँच जाए...
जब पलकों के झपकने से ज्यादा,
बदलने लगूँ करवटें...
जब जीने की वजह,
रातों में भी धुँधली दिखे...
जब जज्बात बेबस होकर,
उसूलों की परवाह न करें...
जब मुस्कुराने की हर छोटी कोशिश,
उदासी में गुम हों जाए...
जब खुद की बनाई दुनिया ही,
अजनबी-सी लगे...
फिर एक छोटे-से कमरे में,
पूरी दुनिया को समेटकर
सबकुछ भूल जाने की जदोजहद में,
बस तुम याद आती हों,माँ...

माँ...मेरी छोटी-सी मुस्कुराहट में तुम्हारी हर बड़ी नाउम्मीदी पल भर में खो जाती थी...मै जितनी बढ़िया से अपनी हर बेमतलब की बात कह भी नहीं पाता था,उतनी इत्मीनान से तुम सुनती थी...
माँ...एक तुम्हारा ही झूठ बोलना मुझे हर सच्ची बात सीखा जाता है...झूठ,जो तुम्हें कभी भूख नहीं लगती थी...झूठ,जो मेरी जरूरतें पूरी करते-करते तुम कभी थकती नहीं थी...झूठ,जो कभी भी तुम्हें नई साड़ी की जरुरत नहीं पड़ी...वही झूठ जो मुझे सच्चे रास्तों पर चलने की हमेशा याद दिलाता है...वही झूठ जो सच के बेहद करीब है...
वह माँ,जिसके बिना मेरी ज़िंदगी का हर एक दिन अधूरा है...उस माँ को सलाम...

                                                                                                                       - "मन"

8 मई 2013

कविता-सा कुछ...

तुम्हें लिखने की कोशिश-भर में
लफ़्जों का दूर तलक चले जाना
बोझिल पलकों से इंतजार,
उन रूठे लफ़्जों का
पर अफ़सोस कि
जज्बात,चढ़ते नहीं कलम पर
और फिर...
अधूरी रह जाती है
तुम्हें याद करके लिखी जाने वाली,
एक कविता-सा कुछ...
उम्मीद है
तुम महसूस करोगे
मेरी लिखी हुई अधूरी कविता से,
उन ढेर सारे अधूरे एहसास को
जिन्हें बयां नहीं कर पाए,मेरे पूरे शब्द भी...
वक्त की परत समेट ले गई,
तुम्हारे हिस्से के भी लफ्ज़
शायद इसीलिए,तुम्हारे बारे में
ठीक-ठीक कहने लायक
कुछ भी नहीं है,मेरे पास
और फिर...
अधूरी रह जाती है
तुम्हें याद करके लिखी जाने वाली,
एक कविता-सा कुछ...

फिर भी
मन के कोने में,
कुछ 'शायद' जैसा ढलता जा रहा है 'यकीन' में
कि ये कविता अधूरी है...
और वजह भी है कि,
कोशिश करके कुछ भी लिखा नहीं जा सकता...

                                        - "मन"

11 अप्रैल 2013

यादें...

कहते हैं कि वक्त के साथ सभी चीझों का बदलना तय है,पर यादें कभी नहीं बदलती | हम चाहे ज़िंदगी के जिस किसी भी दौर से गुजर रहें हों,हमारी या हमसे जुड़ी किसी शख्स की यादें हमारा साथ देने आ ही जाती है | कभी उन्हें याद करके आँखों में नमी महसूस करते हैं तो अगले ही पल उन्हीं आँखों में ख़ुशी को भी पनाह मिलती है |
बेशक...कोई शख्स आज अपने करीब न सही,पर उनकी यादें ही है जो फासलों को मिटाने के लिए बखूबी हमारे दरम्यान हैं |
यादें,बीते हुए कल से जुड़ी होती हैं और हम उस कल को याद करते हुए,आज में जीते हैं एक बेहतर कल के लिए...

यादों का नहीं आना,
अपने वश में भी नहीं...
फिर क्यूँ है ? कोशिश,
किसी को भूल जाने की...

दूर जाकर
कोई,किसी को न भूले
शायद ! इसीलिए...
कोई देकर चला जाता है,
बेहिसाब यादें...

यादें बनती हैं,अश्कों से
धूप-छांव-मुस्कुराहटों से...
कोई याद आने लगता है
बेवजह ख़ुशी लिए तो,
कभी पलकों को भिगोने के लिए
शायद ! इसीलिए...
फासलें और बढ़ जाते हैं,
बेहद करीब आने के लिए...

                       - "मन"

6 अप्रैल 2013

गलतियाँ...

हर कोई जो कुछ सीखना चाहता है,वो गलतियाँ करता है या हो जाती है | गलतियाँ करके ही हम यह अनुभव कमाते हैं कि कोई काम किस हद तक सही या गलत है | हम कोई काम यह सोचकर करते हैं कि 'यह काम हमारे लिए सही होगा' तो उस काम में गलतियाँ हो जाने की भी उतनी ही गुंजाइश होनी चाहिए | फिर यह हम पर निर्भर करता है कि हम उन गलतियों से कुछ सीखकर आगे बढ़ना चाहते हैं या चंद लकीरों का बहाना लेकर कहीं रुक जाना बेहतर समझते हैं |
             हम भी गलतियाँ करते हैं,हमसे जुड़े हुए लोगों से भी गलतियाँ होती है फिर उनसे खफ़ा होकर हम एक और गलती कर रहें होते हैं | सबकी अपनी-अपनी ज़िंदगी है,उसूल है,अपना-अपना जीने का तरीका है...वे अपने काम के प्रति कोई सा भी नज़रिया लेकर चलते हैं तो हमारा नज़रिया,उनके नज़रिए को स्वीकार करने वाला होना चाहिए | पर इस दरम्याँ जरुरत इस बात की होनी चाहिए कि हमारे सामने वाला भी बहुत हद तक ऐसा ही कुछ सोचता हों |  

जब खुद को पाओ
अपने ही बेहद करीब,
एक बार सोचना
दूसरों की गलतियों के बारे में
रखना खुद को उसकी जगह पर
एहसास होगा कि
उसने जो किया,तुम भी वही करते...
कोई उन चीझों को जी रहा होता है,
तुम बस महसूस करके
निकल जाते हों आगे
और भूल जाते हों कि 
गलतियाँ तो इंसान से ही होती है
और एक ही इंसानियत सब में पलती है...

तुम अब भी ढूंढते हों 
दूसरों में गलतियाँ,
शायद..!
खुद से अभी तक मिले नहीं हों तुम...

                          - "मन"

3 अप्रैल 2013

आँसू...

"आँसू" अजीब होते हैं,हर ख़ुशी...हर ग़म में इनका आना तय होता है...इनके साथ होने से हमारी ख़ुशी और बढ़ जाती है और ग़म को भूल जाने का जरिया भी यहीं बनते हैं...
आँसू,जब आँखों से बेदखल हो जाते हैं तब हमें केवल वहीँ सब दिखता है जो हम देखना चाहते हैं ? पर इनके पीछे की कहानी कुछ भी हों,हमें इनका शुक्रगुजार होना चाहिए क्यूंकि जब ये आँखों से बेदखल होती हैं,कईं सारे ख्वाब घर कर बैठते हैं उन्हीं आँखों में...


पलकों को भिगोने के लिए,
आँसू पलते हैं जब आँखों में
यकीन मानो
तभी खुलती हैं आँखें हमारी...
गर हम,
गालों पर आँसू रखकर
मुस्कुराना जो सिख जाते हैं,
फिर एक ही मतलब लेकर आती है
बूँद आँसू की और
चेहरे की मुस्कुराहट हमारी...
क्या
आंसुओं का नही आना आँखों से,
सबूत है-ज़िंदगी को पूरा जान लेना ?
चलते-चलते राहों पर,
जब होते हैं बेखबर कुछ पहलुओं से
मिला देती है उनसे आँसू हमारी...

                   - "मन"

30 मार्च 2013

ज़िंदगी और राहें...

"हम जैसा चाहते हैं,ज़िंदगी उसी तरह आगे बढ़ती चली जाती है" पर यह बात शायद हर वक्त,हर जगह लागू न हों | कभी-कभी हमें अपने हिसाब से न चलाकर ज़िंदगी,जिस राह पर ले जाना चाहती है उसी तरफ चलना पड़ता है...पर कहीं न कहीं उस सही या गलत राह के लिए हम खुद ही जिम्मेदार होते हैं,यह बात हम खुद समझ जाए तो बेहतर वरना वक्त तो समझा ही देता है |
ज़िंदगी के रास्ते में हम बहुतों से मिलते हैं,किसी को खुद के बेहद करीब पाते हैं तो किसी से दूरी रखना सही लगता है...पर जीने का तरीका ये नही होना चाहिए कि खुद को बदले बिना हम ये उम्मीद करें कि हमसे जुड़े हुए लोग भी बदल जाए...

पलकों को बोझिल किए हुए
चल पड़ता हूँ उन राहों पर भी,
जिसे भुलाया भी न जा सका
और रहा हूँ उससे बहुत दूर भी...
अफ़सोस है कि
कुछ राहें बदल गईं,
उन्हीं राहों पर चलते-चलते
पर एहसान है उनका कि
चलना सिखाया है मुझे,
आगे की राहों पर...
कुछ राहें होती हैं
जिन्हें मंजूर नही कि
हम कुछ रिश्तों के संग,
चलते जाए उनपर
तो फिर
जरुरी हो जाता है,
किसी एक को पीछे छोड़कर
आगे बढ़ जाना...

                                   - "मन"

25 मार्च 2013

ज़िंदगी..ख़ुशी..प्यार...

मुंशी प्रेमचंद जी कहते हैं कि "जीवन का वास्तविक सुख,दूसरों को सुख देने में है,उनका सुख लूटने में नही"
सबके पास अपनी-अपनी ज़िंदगी है,वक्त भी बहुत है पर शायद,दूसरों के लिए नही | जहाँ एक ओर हम कहते हैं कि ज़िंदगी के इस सफ़र में खुद से बड़ा कोई हमसफ़र नही होता वहीँ दूसरी तरफ कि हमारे सुख या दुःख में हमें किसी ऐसे इंसान की जरुरत पड़ती है जो भले हमारे ख़ुशी से खुश न हों पर दुःख में दुखी जरुर हों,जो हमें समझता हों,जो ज़िंदगी,ख़ुशी और प्यार के सही मायनों से हमें वाकिफ़ करवाता हों...
तो फिर सही क्या है? गलत किसे कहें और किसी एक को सही मान ले तो,क्यूँ? दोनों बातें हमारे सामने हैं,फैसला हमारे हाथों में है कि हम किस बात को अपनी ज़िंदगी के लिए चुनते हैं...किस बात से हमारी ज़िंदगी में ख़ुशी आती है या इससे बढ़कर कि हमें,हमारी ज़िंदगी में खुश रहने की वजह से और कितनी जिंदगियों में खुशियाँ हैं |
जब हमें ज़िंदगी,ख़ुशी,प्यार के सही मायने पता चलते हैं तो हम खुश रहते हैं और हर कोई जो हमारी ज़िंदगी में आता है वो किश्तों में गम और एकमुश्त ख़ुशी लिए हुए आता हैं,इसके पीछे वजह हमारे नज़रिए का भी हों सकता है पर वजह चाहें हालात कैसे भी हों,हमें खुश रहना चाहिए...हमारी वजह से वे लोग खुश रहते हैं जो हमसे जुड़े हुए हैं और फिर उन्हें खुश देखकर हमें और ख़ुशी मिलती हैं |

                                                                                                - "मन"

20 मार्च 2013

एक ज़िंदगी की तरह...

कभी खुद का दीदार किए हों,
कभी समझे हों,इस जहाँ में
तुम्हारे होने का मतलब
कभी सोचे हों,
उम्मीद के कई धागे तुमसे जुड़े हैं
तुम्हारा बस होना भर ही,
किसी के लिए ज़िंदगी है...
और तुम्हें इसकी खबर तक नही |
कभी किए हों,
कुछ सुलझाने की एक पहल
खुद से उलझते जाते हों...
फिर सामने होती है एक और पहेली |
कभी कोशिश किए हों,
खुद को समझे बिना
दुनिया को समझना...
मुमकिन है पर आसान नही |
सच तो सच ही है
कोई सा तरीका अपनाकर,
समझा सकते हों खुद को
पर ये भी सच है कि
बस हम खुद को समझ जाए
और
ये उम्मीद करें कि
अंत में सबकुछ ठीक होगा,
एक फ़िल्म की तरह...
एक ज़िंदगी की तरह...

                      - "मन"

17 मार्च 2013

...कि दामिनी कुछ हमारी भी लगती थी"


कितना अजीब था ना,
इंसान ही उसे उस हाल में पहुंचाकर
इंसान को ही उसके लिए रोते देखा था
खुद के इंसा होने का रंज देखा था |
अगर दुनिया ऐसी ही है,
तो अच्छा हुआ...
उसे इस दुनिया से जाते हुए देखा था |
उसे हमारी नाकामियों में कैद होते देखा था
उसे ज़िंदगी से लड़ते देखा था
उसे इंसानियत से हारते देखा था
उसे सँभलते देखा था
उसे फिसलते देखा था
उसे अपनों से दूर जाते देखा था |

इक याद बस बन के पन्नों में,
दब सी गई है...
दामिनी अब शायद मर सी गई है !!!

                                           - "मन"

27 फ़रवरी 2013

"अजनबी पर अपना-सा !


बहाने लिए हुए जीने का
चलते-चलते हुए यूँ ही राहों में,
अजनबी सा कोई मिलता है
एहसास होता है हमारे खुद का |
हमे फिकर होने लगती है
उसके हर गम के लिए,
उसकी एक मुस्कान की खातिर
भूल जाते हैं अपनी ज़िंदगी,
हर वक्त उसके ही ख्यालों में जीना
मुस्कुराना
कोई हों ऐसा,
अजनबी पर अपना सा |
हम पास होते जाते हैं
टटोलते हैं,
एक-दूसरे में खुद को
और फिर
कुछ जुड़ता चला जाता है,
एक बंधन-अटूट सा |
उसकी नज़रों में जब
हमारे होने का वजूद झलकता है,
हम वाकिफ़ होते हैं
ज़िंदगी के उन पहलुओं से,
जो होते हैं अनछुए
और तब एहसास होता है कि
अभी भी बाकि है,
जीने को ढेर सारी ज़िंदगी |

                         - "मन"
हमारी ज़िंदगी की राह चलते हुए जब कोई अजनबी मिलता है,क्या उसे मिलना ही होता है या जरुरत कहें इस ज़िंदगी की...उस अजनबी के ख्याल आते ही,हमारे चेहरे पर एक मुस्कुराहट का सवार होना...कोई दिल के इतने पास कैसे आ सकता है...कोई इतना करीब क्यूँ आ जाता है कि हमारी ज़िंदगी,उसके ज़िंदगी के रास्ते सी ही गुजरने लगती है...हम क्यूँ उसके भले-बुरे के बारे में सोचने लगते हैं...हमारी ज़िंदगी क्यूँ उसके सोच के मुताबिक ढलने लगती है...हम उसके हर खुशी और गम के लिए खुद को ज़िम्मेदार मानने लगते हैं...क्यूँ
शायद इन सभी सवालों के जवाब सबके पास है पर उसे लफ्जों में बदलना मुश्किल है,पर ज़िंदगी के कुछ सवालों के जवाब इन बिन बयां लफ्जों का शिकार हों जाए तो ही अच्छा,क्यूंकि हमे उस दरमयान यह कतई महसूस नही होता कि यह 'सवाल' है और इसका जवाब होना ही चाहिए |