रोज की तरह
दिन के एक ओर से,
रात के सो जाने तक
ज़िंदगी के हक़ में आता है,
रात के सो जाने तक
ज़िंदगी के हक़ में आता है,
पलकों का बोझिल भी हों जाना
कुछ सपनों से,कुछ अपनों से
तो कुछ ठिठके हुए पानी की बूंदों से
कुछ गुजरे हुए लम्हों से
तो कुछ साँस लेती हुई यादों से...
तो कुछ साँस लेती हुई यादों से...
मगर मुस्कुराते हुए लब
सोख लेते हैं उन बूंदों को भी
जिन्होंने पनाह दिए
उन उम्मीद लिए सपनों को भी...
कहते हैं कि
कहते हैं कि
बीते वक्त की यादें लेकर चलते जायें
क्योंकि,
क्योंकि,
जीने के लिए आज ही बहुत है
पर कभी-कभी
नज़रें सहमी हुई सी जाती हैं
कुछ अनकही सी बातें,
लफ़्जों के लिए तरसते हैं
ख्वाब दम तोड़ने लगते हैं
फिर एहसास होता है कि
अपनी ज़िंदगी में से
किसी को बेदखल कर देना,
आसान है पर मुमकिन नहीं...
- "मन"