22 दिसंबर 2014
3 तारीख,1000 ₹ और पनीर की सब्जी
12 अक्टूबर 2014
भीड़-लड़का-लड़की-पल भर का इश्क
फिर एक लड़की आई और भीड़ को चीरते हुए एक कुर्सी पर खुद को कपड़ों के साथ समेटते हुए बैठ गई। वह घर से उस दिन जल्दी आ गई थी जो उसे बस के लिए भीड़ को देखते हुए इन्तजार करना था। जाने की बजाय लोग आते ही जा रहे थे,भीड़ का कुनबा धीरे-धीरे बढ़ता हुआ। तभी एक लड़का आया और भीड़ का हिस्सा बन गया।
लड़की उस हमउम्र लड़के को देखने लगी। लड़के ने भी लड़की को कुर्सियों के साथ अकेले बैठे हुए देखा,दोनों की नज़रे मिली। लड़की की आँखों ने मुस्कुराते हुए लड़के से जैसे कहा हो कि आइये मेरे करीब में बैठ जाइये। लड़का खुद को रोक नहीं पाया। अगले पल दोनों हँसते हुए बातें कर रहे थे। भीड़ उन्हें देखती और कुछ फुसफुसाते हुए अपनी मंजिल की तरफ बढ़ जाती। दोनों ने एक-दुसरे को जान समझ लिया। लड़की को लिखने का शौक था,उसने अपनीं कविता लड़के को पढाई,लड़के ने वाह-वाह किया साथ में लड़के के हाव-भाव ने भी वाह-वाह किया। लड़के को पढने का शौक था,उसने अपनी कुछ पसंदीदा किताबों के नाम लड़की को बताया और रिक्वेस्ट किया कि लड़की उन्हें पढ़े। दोनों खामोश हो गये,भीड़ का आना-जाना लगा रहा।
लड़के ने लम्बी सांस ली और हिचकिचाते हुए कहा "मुझे आपका कांटेक्ट नम्बर चाहिए" लड़की ने अचानक कहा "फिर से कहना" लड़का बोला "वही कहा जो आपने सुना" लड़की कहती है "हेल्लो मिस्टर ! बमुश्किल 15-20 मिनट के बरताव से तुमने ये नतीजा निकाल लिया कि अब हम दूर रहते हुए भी जुड़े रहे?आपके जैसे मुझे बहुत से लड़के मिलते हैं रोज तो इसका मतलब मैं सभी को अपना..." लड़का कहता है "ओके,सॉरी ! आपकी आँखों ने और मेरे नादां दिल की ये गुस्ताखी है फिर भी मैं माफ़ी मांग रहा हूँ,नम्बर मत दीजिये..अपना नाम तो बताइए?" लड़की कहती है है "शमा खातून,तुम्हारा क्या नाम हुआ?"
लड़का नाम बताने से पहले लड़की का नाम सुन के सुकून से मुस्कुराया फिर कहता है "जी,विजय नाम हुआ हमारा।माफ़ कीजियेगा,मेरा बस 15 मिनट पहले ही था। मैं बहक गया था।अब नंबर की कोई जरुरत नहीं"
लड़की खामोश बैठी रही।लड़का कुर्सी पर से उठ के भीड़ में जा खड़ा हो गया। भीड़ का हिस्सा बन गया। लड़की अब भी खामोश बैठी रही और गले को तर करने के लिए बैग से पानी के बोतल को बड़े जोर से पकड़ के पानी पीने लगी,गला तर भी न हुआ था कि पानी खत्म।लड़की खामोश बैठी रही,भीड़ ज्यों का त्यों पर लड़की खामोश बैठी रही।
- मन
28 सितंबर 2014
यही ज़िन्दगी है
अजनबी राहें
दो राही
हाथ पकड़
साथ-साथ चलना
पर
अंधेरों के दस्तक देते ही
हाथ की पकड़ ढीला होते जाना
यहीं ज़िन्दगी है?
एक नदी
दो किनारा
कोई तिनका नहीं
दोनों एक-दूजे के लिए मांझी
पर
लहर के दस्तक देते ही
दोनों इस उम्मीद में कि
कोई तो आगे होके हाथ थामेगा
दोनों हांफने लगे
किनारा भी दूर..बहुत दूर है
यहीं ज़िन्दगी है?
लड़के ने कहा
एक दिन
लड़की से
"दोस्ती करोगे मुझसे"
वे दोनों चुपचाप चलते रहे
साथ-साथ
कहाँ?पता नहीं
यकायक
ढलता सूरज
दोनों से कहता है
"घर पर इंतजार हो रहा है तुम्हारा"
यहीं ज़िन्दगी है?
लड़की ने कहा
एक दिन
लड़के से
"किसी के दिल टूटने की वजह
मैं नहीं बनना चाहती
पर हम जब-तक चाहेंगे
तब-तक 'दोस्त' बने रहेंगे"
यहीं ज़िन्दगी है?
फिर
लड़के ने
उसी रात
सपने में
लड़की से ये बोलता पाया
"देखो
ऐसा भी वक़्त जीवन में आता है,
जब अच्छा-खासा दोस्त भी दुश्मन बन जाता है
और
जब दोस्त दुश्मन बन जाये
तो
इन्सान को अर्श से फर्श पर आने में
वक़्त नहीं लगता"
यही ज़िन्दगी है?
लड़का सोचता है
उसे ताउम्र 'दोस्त' बन
उस लड़की के साथ रहना है
लड़की को पढना है
कि
आखिर किस भाषा में लिखी गई थी
वह लड़की !
यहीं ज़िन्दगी है?
लड़का सोचता है
कि
उसके सारे ख्वाहिशों को
लड़की
पंख तो दे नहीं सकती
फिर सोचता है
वो ख्वाहिशें सिर्फ उसके ज़ेहन की नहीं
लड़की भी तो आधे की हक़दार थी
बेखबर आवारा
वो लड़का
यहीं ज़िन्दगी है?
वह लड़का
पता नहीं
क्या-क्या सोचता गया
उलझता गया
लड़की बिखरती गई उसमें
साथ में वह खुद भी
पर
किसी मोड़ से
लौटकर वापस आ गया
लड़का शयद !
ख़ुद से मिल गया है वो शायद !
एक दिन
उगता हुआ सूरज
मुस्कुराकर
कहता है लड़के से
"घर पर अब इंतजार नहीं हो रहा तुम्हारा"
यहीं ज़िन्दगी है?
सामने दूर..बहुत दूर ही सही,
एक मंजिल तो है
एक नाव के लिए,
एक ही मांझी,तो है
मांझी नहीं तो
ख़ुद वो तो है ही
ख़ुद को किसी भी राह पर
ले जाकर
भटक कर
थक कर
फिर
लौट जाना
पर
अपने अन्दर के इन्सान को
जिंदा रखना
जी हाँ !
यहीं ज़िन्दगी है...
- मन
23 सितंबर 2014
राष्ट्रकवि दिनकर~अपने समय का सूर्य हूँ मैं...
अपनी आग तेज रखने को,नाम तुम्हारा लेगा।।
राजभवन है दंड-विधान का आवास,जहाँ मनुष्यों को शांत रहने का पाठ पढाया जाता है।
मंदिर कहता है,"आओं,हमारी गोद में आते समय आवरण की क्या आवश्यकता?पारस और लोहे के बीच कागज का एक टुकड़ा भी नहीं रहना चाहिए;अन्यथा लोहा ही रह जायेगा।"
और राजभवन कहता है,"हम और तुम समान नहीं हैं। हम प्रताप की पोशाक पहने हुए हैं तुम अधीनता की चादर लपेटे आओं क्योंकि हम शासक हैं और तुम शासित,हम तुम्हें गोद में नहीं बिठा सकते,अधिक से अधिक अपनी कुर्सी के पास स्थान दे सकते हैं"
मंदिर कहता है,"लोग संसार में लिप्त है,वासना के रोगों से पीड़ित हैं,हम उन्हें संसार से विरक्त करेंगे जिससे दंड विधान की जरुरत ही नहीं रह जाय।"
राजभवन कहता है,"लोग संसार में अनुरक्त है और जबतक वे अनुरक्त हैं तब तक उनपर पहरा देने के लिए एक सत्ता की जरुरत है। वह सत्ता हम हैं।"
राजभवन कहता है "हम मनुष्यों पर शासित करेंगे"
गाँधी जी के मृत्यु के साथ संसार की एक पुरातन समस्या,मनुष्य-जाति का एक प्राचीन प्रश्न फिर अपनी विकरालता के साथ हमारे सामने आया है"
मानचित्र पर ढूंढों कविवर कहाँ तुम्हारा घर है...
- मन
17 सितंबर 2014
लम्बी उम्र-ख़ुशनुमा ज़िन्दगी
सभी के लिए ज़िन्दगी अलग मायने लीये हुए हैं।सभी के जीने के तौर-तरीके अलग है।हमें ये देखना चाहिए कि जो ज़िन्दगी हमें ऊपर वाले ने दी है उसे कैसे बेहतर(?)बना सकते हैं।दूसरों की नज़र में न सही पर खुद की नज़र में खुद के लिए कम से कम शिकायत हो"ऐसा कुछ झलके अपने अंदर तो बात बने और इस बात को सच होने के लिए सबसे जरुरी शर्त है 'वो काम करना जो दिल कहे'
मनोवैज्ञानिक स्त्रली ब्लॉत्निक ने एक रिसर्च में पाया कि पैसे से सुख को नहीं ख़रीदा जा सकता लेकिन आप अपने जीवन से ख़ुश है,आनंदित है तो आप वह सबकुछ हासिल कर सकते हैं जिसकी आपको जरुरत है।
ब्लॉत्निक ने अपनी रिसर्च में दो ग्रुप बांटे,एक ग्रुप के पास बहुत सारा पैसा था,दुसरे ग्रुप जिनके पास पैसे तो नहीं था लेकिन उन्हें अपने काम से प्यार था और किसी भी हद तक सफलता प्राप्त करने का जुनून था।1500 लोगों को रिसर्च का हिस्सा बनाया।रिसर्च को 20 साल तक लगातार करते रहने के बाद पाया कि दुसरे समूह के लोग जिन्हें अपने काम से प्यार है उनमें से 101 लोग करोडपति बन गये हैं जबकि पहले समूह के लोग जिनके लिए पैसे ज्यादा अहमियत रखता था उनमें से केवल 1 व्यक्ति ही करोडपति बन सका।
रिसर्च में इसका जो सबसे बड़ा कारण सामने आया वह यह था कि "जब हम किसी काम को दिल से नहीं करते तो छोटी-छोटी चीझों को नज़रंदाज़ कर देते हैं जो हमारे लिए बहुत मायने रखती है।जबकि कोई काम जुनून से किया जाए तब छोटी से छोटी बात को भी बहुत बड़ी समझ कर करते हैं।
माइकल जैक्सन और भारत के प्रभु देवा...सभी जानते हैं ! प्रभु देवा का प्रारंभिक जीवन मैसूर की तंग गलियों की एक चौपाल में बिता।लेकिन बचपन से माइकल जैक्सन जैसा बनने की ख्वाहिश ने उनके रास्ते के सभी रुकावटों को दूर किया।प्रभु देवा अपने एक इंटरव्यू में कहते हैं
"बचपन से ही डांस का इतना जुनून था कि मैं सोते-जागते डांस के ही सपने देखता। इसलिए जब रात को लेटे हुए कोई भी स्टेप याद आता तो चुपके से चौपाल के कोने में जाकर स्टेप दोहराता रहता। कहीं मैं सुबह जागूं और वह स्टेप भूल न जाऊं इसलिए ऐसी करते रहता था"
आज प्रभु देवा फिल्म उद्योग के जाने माने चेहरे हैं,उनके पास सबकुछ है ! "जुनून की बदौलत...
सचिन तेंदुलकर,1989 के पाकिस्तान के साथ सियालकोट के उस मैच को कौन भुला सकता है,जब 16 साल के सचिन को फेंकी गयी गेंदें उनका जबड़ा और नाक तोड़ गयी और दिग्गज कपिल देव,रवि शास्त्री के साथ डॉक्टर ने भी आराम करने की हिदायत दी पर सचिन डटे रहे मैदान पर और शतक ठोक कर ही बाहर निकले।
'जुनून' की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि यह हमारी कमियों को आसानी से अच्छाईयों में तब्दील करके हमारे रास्ते को आसान बनाता है। जब आप किसी से प्यार करते हैं तो ज़िन्दगी जीने के तौर-तरीके भी उसी हिसाब से बदलता जाता है। यही बात जुनून के साथ भी है। जुनून एक ऐसा शब्द है जो मन में जज्बात पैदा करता है जो हमें साधरण से अलग श्रेणी में ला खड़ा कर देता है। हर बात में ख़ुशी झलकती है और दुनिया बेहद खुबसूरत बन जाती है,किसी ऊपर वाले के होने पर और शिद्दत से विश्वास होने लगता है।
अमेरिका की प्रथम महिला 'मार्था वाशिंगटन' कहती हैं
"स्थितियां कैसी भी क्यूँ न हों,मैं अब भी आनंदमय और खुश रहने के लिए प्रतिबद्ध हूँ क्योंकि मैंने अनुभव से यह सिखा है कि हमारी खुशियों और दुखों का बड़ा हिस्सा हमारी सोच पर निर्भर करता है न कि हमारी परिस्थितियों पर"
ज़िन्दगी चलते रहने का नाम है,अपने पसंदीदा शौक को जगाएं,हवा देकर उसे सहलाते हुए आगे बढ़ाएं क्या पता यह शौक आपकी ज़िन्दगी के किसी पड़ाव पर नई पहचान दे। इसकी कईं बानगियाँ दुनिया में मौजूद है,बस आप खुद से मिलिए और दिल की सुनिए और दिमाग को दिल पर पहरेदारी के लिए तैयार रखिए।मिल्खा सिंह,सचिन तेंदुलकर,अब्दुल कलाम,लता मंगेशकर या मैरी कोम जैसा मत बनिए पर इन असाधारण हस्ती के जैसे जुनून अपने अन्दर जिंदा रखिये,क्या पता कब रोशन हो जाए ज़िन्दगी की बत्ती।
हीरो-होंडा दुपहिया वाहन की दुनिया की सबसे बड़ी कम्पनी,2010 के आखिर में 26 साल से साथ काम करते हुए अलग होने का फैसला किया।हीरो मोटोकोर्प में बदल गया।अलगाव के बाद ए आर रहमान साहब ने हीरो मोटोकोर्प के लिए टाइटल गीत बनाया,गाना कुछ यूँ है
"दिल धीरे धडके है आज
होने को है आगाज़
सफ़र पे चलने का बढ़ने का
इतना है हौंसला
मिटना फासला
मंजिल ने मिल ही जाना है
ओ...ख्वाबों से आगे जाना है
हमी से तो उम्मीदें हैं
हमी से तो दिलासा है
हम पे है निगाहें भी
हम पे तो भरोसा है
हम में है हीरो
हम में है हीरो
दिल से कहो..हे ! हम में है हीरो..."
भारत की नुग्शी और ताशी नाम की जुड़वाँ बहनों ने पर्वतारोहन के लिए नई जमीन तैयार की है।
ताशी शांत स्वभाव की है,चुलबुली नुग्शी कहती हैं
"जब भी हम किसी पहाड़ पर चढ़ते हैं तो लगता है पापा ने बहुत मेहनत से पैसा जमा किया है।हम पहाड़ पर बेझिझक चढ़ सकें,इस सपने के लिए वे बहुत दौड़े हैं। इससे अच्छा कुछ नही हो सकता कि इतने कठिन रास्तों पर आपकी बहन आपके साथ हों।
अपने अन्दर के इंसानियत को बचाए रखना एक चुनौती है और यही चुनौती हमें बेहतरी की ओर ले जाता है। दूसरों के लिए न सही पर खुद के लिए कुछ अच्छा कीजिये क्योंकि हम सब खास है बहुत खास,हमें जो ज़िन्दगी मिली है वो सबके नसीब में नहीं !इस उधेड़बुन में न रहे कि कहाँ से शुरुआत करनी है बस खुद के अन्दर देखते हुए बाहर निकल पड़िए,मौसम अच्छा है और एक बेहतर ज़िन्दगी आपके हाथ में है और ये फैसला भी आपके हाथ में है कि किस तरफ जाना है। खुद पर भरोसा करना ही ज़िन्दगी जीने की कला है और कला की उम्र बहुत धीरे-धीरे बढती है किसी के दिल में पैठ जमाने के लिए वर्षों लग जाते हैं।
अमेरिकन लेखिका एदिता मौरिस लिखती हैं कि
"धुन का पक्का आदमी बुलडोज़र की तरह होता है,वह अपने रास्ते में आने वाले किसी रोड़े-पत्थर की कोई परवाह कभी भी नहीं करता"
"हम सब कुछ तो नहीं कर सकते,पर हम भी कुछ जरुर कर सकते हैं" इसी जज्बे के साथ ज़िन्दगी को शुक्रिया अदा करते हुए,बस आगे बढ़ते रहिए।
2012 में एक फिल्म आई थी "आशाएँ" इस फिल्म से एक नगमा है,प्रीतम चक्रवर्ती+सलीम सुलेमान ने कम्पोज किया है,मीर अली हुसैन के शब्द हैं और गाया है शफ़्क़त अमानत अली ने...कुछ यूँ
"छन के आई तो क्या चांदनी तो मिली
छन के आई तो क्या चांदनी तो मिली..
चंद दिन ही सही ये कली तो खिली
शुक्रिया ज़िन्दगी..शुक्रिया ज़िन्दगी..
तेरी मेहरबानियाँ..तेरी मेहरबानियाँ..
शुक्रिया ज़िन्दगी..शुक्रिया ज़िन्दगी..
सिर्फ इक रंग से तस्वीर होती नहीं,
गम नहीं तो ख़ुशी की कीमत नहीं..
धुप छाँव है दोनों तो दिलकश जहाँ
क्या शिकायत करें फुरसत कहाँ
शुक्रिया ज़िन्दगी...
लम्बी उम्र की और ज़िन्दगी को ख़ुशनुमा बनाये रखने की इच्छा हर इन्सान के भीतर जन्म के साथ ही साँस लेने लगती है
- मन
8 सितंबर 2014
लड़के की ज़िन्दगी...
लड़के की ज़िन्दगी
गुजरता हुआ वक़्त
उस वक़्त की परत में
दबती जा रही एक लड़की
जो लड़के के सपनों में,
आधे की हक़दार थी...
जमाने ने उस लड़के को ज़ख्म दीये
उसी जमाने के हाथ में मरहम मिला उसे
चलते-चलते अजनबी राहों में
एक लड़की मिली उसे !
रूप अलग रूह एक
लम्हें अलग सुकून एक
बातें अलग मुस्कुराहट एक...
लड़की का दिल लड़के के करीब है
शायद लड़के का दिल भी लड़की के पास
यह शायद ! यकीन में बदल जाए तो
लड़के के मेज पर रखीं गीले पन्नों पर,
रुक-रुक कर चलने वाली कलम को रफ़्तार मिले
और
मुक्कमल हो जाए,
दो रूह...दो दिल...
गुजरता हुआ वक़्त और
लड़के की ज़िन्दगी...
- मन
17 अगस्त 2014
लड़का-डायरी-तकिया...
वह लड़का हमेशा मुस्कुराता रहता था।19 बसंत देख चूका था।उसके पहनावे से वह नई पीढ़ी के लड़कों में गिना जाता पर उसे पुराने गाने सुनना बेहद पसंद था।उसकी ज़िन्दगी खुद की वजह से कम और उसके माता-पिता,दादा-दादी,छोटी बहन,कुछ दोस्तों की वजह से ज्यादा चलती थी।उसे किसी से शिकायत नहीं थी न खुद से न खुदा से !
वह अपने निजी कमरे में अकेला खुद के वजुद के साथ घंटो बिताता,उसकी माँ उसके टेबल पर हमेशा एक गिलास पानी हर एक-दो घंटे में रख आती थी।
वह जितना वक़्त अपने हिसाब से बनाये दोस्तों को देता उतना ही अपनी छोटी बहन के साथ भी रहता,बेमतलब से सवाल दादी से पूछता और ऐसे कुछ काम करता कि उसके दादा जी उसे डांट सके फिर वह दादा जी को कभी पलट के जवाब न देकर अपने चेहरे को मुस्कुराने के लिए कहता। घर से ज्यादातर वक़्त दूर रहने वाले पिता से वह खौफ रखता और माँ को कभी यह कहने का मौका नही देता कि उन्हें अपने एकलौते बेटे से शिकायत है।
खुशनुमा दिन गुजर जाने के बाद रात के इंतजार में वह रहता था। रात को अपनी पर्सनल डायरी में दिन भर के उन लम्हों को हुबहू उतार देता जिनसे वह मुस्कुरा उठता हो,बेमतलब सी बात भी कागज-कलम का साथ पाके मतलब ले लेती थी।डायरी लिखते वक़्त वह बेहद खुश होता।हर पेज के आखिरी में वह ऊपर वाले का शुक्र अदा करता,तहदिल से खुदा को याद करके प्रार्थना करता फिर वह उस डायरी को उस तकिये के नीचे छुपा देता जहाँ वह चुराए हुए पैसे छुपाकर रखता था। फिर किशोर दा का गाना "कैसी है पहेली ज़िन्दगी..." सुनते हुए नींद के आगोश में चला जाता,अँधेरी रातों को जोर का सदमा देके !
-मन
4 अगस्त 2014
किशोर दा-आज भी करीब है...
कुछ लोग इक रोज जो बिछड़ जाते हैं वो हजारों के आने से मिलते नहीं"
जी हाँ ये गाना है फिल्म "आप की कसम" से जो किशोर दा काका(राजेश खन्ना-फिल्म इंडस्ट्री का पहला सुपरस्टार)के होठों से कह गये...
आज उनकी 85वीं जन्म सालगिरह है...किशोर दा(आभास कुमार कुंजालाल गांगुली)किसी भी परिचय के मोहताज़ नहीं क्यूँकी उन्होंने उन आम लोगों को गुनगुनाने का मौका दिया जिन्हें सुर-ताल की कम ही समझ हैं,किशोर दा कभी भी मन्ना डे या रफ़ी साब के जैसे शास्त्रीय संगीत की तालीम नहीं ली पर उनके गायिकी का अंदाज़ देखिये कि उन्होंने इस चीझ की कभी कमी महसूस न होने दी इसलिए मेल प्लेबैक सिंगर के केटेगरी में सबसे ज्यादा 8 बार उन्होंने फिल्म फेयर अवार्ड हासिल किया वही रफ़ी साब के हिस्से में 6 फिल्म फेयर अवार्ड आया।किशोर दा को 57 साल के उम्र में भी फिल्म फेयर अवार्ड के लिए चुना गया जो कि रिकॉर्ड है(सबसे कम उम्र में अरिजीत सिंह को 26 साल में फिल्म फेयर मिला है) किशोर दा को पहला फिल्म फेयर अवार्ड 1969 में शक्ति सामंता के निर्देशन-निर्माण में बनी फिल्म "अराधना" के गीत "रूप तेरा मस्ताना" के लिए मिला,ये फिल्म 1946 की हॉलीवुड फिल "To Each Has Own" की रीमेक थी,मूवी ऑफ़ द इयर चुनी गयी थी साथ ही शर्मीला टैगोर को बेस्ट एक्ट्रेस का पहला फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला था।इस फिल्म में एक और गाना था "मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू" ये गाना हर आदमी के जुबान चढ़ गया था और कोई भी शादी इस गाने के बजे बगैर अधूरी रह जाती थी(अभी भी मशहूर है)
किशोर दा इंदौर के क्रिशचन कॉलेज से पढाई की वहाँ वे कॉलेज के कैंटीन से उधार में खाते और दोस्तों को भी खिलाते।उस समय 10-15 ₹ की उधारी बहुत मायने रखती थी,जब किशोर दा के 5 ₹ 12 अन्ना उधार चढ़ गया तो कैंटीन वाला तकाजा करने लगा फिर किशोर दा टेबल पर ही गिलास-चम्मच से 5 ₹ 12 अन्ना पर धुन निकालते बाद में उन्होंने अपने गानों में इसे बखूबी यूज किया।
किशोर दा रियल लाइफ में कैसे थे अगर आपको ये जानना है तो आप उनकी फिल्म "पड़ोसन" देखिए वैसे सभी ने देख रखे होंगे :)
किशोर दा ने शुरुआत फिल्मों में एक्टिंग से की तब उन फिल्मों में उनकी आवाज बने रफ़ी साब।रफ़ी साब ने उनके लिए गाये पहले गाने के लिए 1₹ मेहनताना लिया था।
किशोर दा रियल लाइफ में भी मशहूर हुए।उनके अजब-गजब कारनामे जैसे कि वे अपने कईं गानों में यूडलिंग का प्रयोग कर नया ट्रेंड चलाया...उनके मेहनताना न देने पर निर्माता से पैसे लेने का तरीका सबकुछ जुदा।
किशोर दा ने चार शादीयाँ की,पहली शादी रुमा गुहा ठाकुरता से की(1950-58)फिर तलाक ले लिये फिर दूसरी शादी (1960-69) मधुबाला (मुमताज़ जेहान देहलवी) जी से,शादी करने के पहले उन्हें जानकारी थी कि मधुबाला जी को बीमारी है और उनकी ज़िन्दगी बस कुछ साल की ही है इसके बावजूद वे इस्लाम को कबूल कर उनसे निकाह किया।(किशोर दा का इस्लामी नाम-करीम अब्दुल)
तीसरी शादी योगिता बाली से(1976-78) हुई जो कि बाद में मिथुन दा की पत्नी बनी,शादी के बाद किशोर दा मिथुन दा से खफा हो गये और उनकी फिल्मों के लिए अपनी आवाज़ नहीं दी तब जाके बप्पी दा का सिक्का चला और म्यूजिक इंडस्ट्री में एक नया बदलाव "आई एम अ डिस्को डांसर" के रूप में बेहद मशहूर हुआ।
उन्होंने चौथी शादी 25 साल की उम्र में विधवा हुईं लीना चंदावरकर से(1980-87)की जो कि उनके साथ आखिरी साँस तक रहीं।
एक गाने में वह कहते हैं "आग से नाता नारी से रिश्ता काहे मन समझ न पाया...मुझे क्या हुआ था एक बेवफा पे हाय मुझे प्यार आया..."(फिल्म 'अनामिका')
लोग कहते हैं कि 4-4 शादीयाँ?इसे प्यार नहीं कहते?
हमारा मानना है कि उनके लिए प्यार के मायने अलग हो सकते हैं जो कि 1987 में उनकी रूह के साथ दफ़्न हो गयी आज वे होते तो इस मुद्दे पर खुल के जिंदादिली से बात करते पर काश! वैसे भी वे अनूठे थे,ये सब होने के बावजूद उनके प्रशंसक उन्हें पसंद करना छोड़ नही देंगे पर हमें कोई हक नही देता कि हम किसी के निजी मामलों पर कुछ कह सकें,जो कहानी इतिहास में दर्ज हो गयीं उनका बस लुत्फ़ उठाया जा सकता है।
एक प्रशंसक के तौर पर मेरा इतना मानना है कि उनके ही कारण हमारे जैसे अनगिनत चाहने वाले गुनगुनाना सिख पाए।
उनके चले जाने के पहले प्रीतेश नंदी ने उनका इंटरव्यू लिया था वो कन्फेस करते हैं कि बॉलीवुड में उनका कोई दोस्त नहीं है,उन्हें अपने पेड़ों से बात करने में ज्यादा मज़ा आता है" लीना(उनकी चौथी पत्नी)जी एक वीडियो में कहती हैं "किशोर दा एक बार कहे थे मेरे चले जाने के बाद भी लोग मुझे याद करेंगे" आज उनके जाने के 27 साल बाद भी वो हम जैसे ढेरों प्रशंसको की जेहन में उनकी यादें और नग्मे जज्ब हैं।
उनकी कमी कोई पूरी नहीं कर सकता पर आज के गायक शांतनु(शान)कुछ हद तक भरपाई करते हैं क्यूंकि गाते वक़्त जैसे किशोर दा मुस्कुराते थे वैसे ही शान का भी गाने का तरीका है ठीक वैसे ही जैसे सोनू निगम रफ़ी साब की कमी को एक हद तक पूरी करते हैं।अगर आप जवानी के किशोर दा को फिल्मों में एक्टिंग करते देखेंगे तो आपको रणबीर कपूर(ऋषि-नीतू कपूर के बेटे) के एक्टिंग वाले चेहरे में वही झलक दिखेगी।
गुलज़ार साब ने ऐसी शख्सीयत के लिए उनके ही एक गाए गाने में कुछ यूँ बयाँ किया है-(वो कल भी पास-पास थी,वो आज भी करीब है)
किशोर दा "वे कल भी पास-पास थे...वे आज भी करीब हैं..."
-मन
(साभार-विकिपीडिया)