उनके दोनों बेटे अपने-अपने बीवी बच्चों के साथ लंदन में बस गए थे | बूढ़े माँ-बाप पिछले पाँच साल से उनसे मिलने के लिए तरस रहे थे | बेटे थे कि उन्हें कोई परवाह ही नही थी | वे अपनी ही दुनिया में मसगुल थे | कभी-कभार कुछ पैसे भेज देते या फोन कर लेते थे | बस ,,
कैंसरग्रस्त माँ ने कुछ दिनों से खाट पकड़ रखी थी, केवल बेटों के इन्तजार में साँसे अटकी हुई थी | उसे विश्वास था कि अंत समय आने से पहले, उसके बेटे जरुर आएंगे |पिता कभी नाउम्मीदी जताते तो वह क्रोधित हो जाती,कैसे नही आएंगे..? जन्म दिया है उन्हें |पाल पोसकर, पढ़ा-लिखाकर बड़ा किया है उन्हें, देखना जरुर आएंगे |
आशा निराश हुई , छोटा बेटा आया भी तो माँ के गुजरने के बारह घंटे बाद | ''भईया नही आया , कोई बात नही, तुने अपनी माँ के अंतिम दर्शन तो कर लिए'' पिता ने किसी तरह अपने मन को समझाते हुए कहा |
तीन दिन बाद ही छोटू की वापसी का टिकट था | लौटने से पहले उसने पिता के चरण स्पर्श किए | '' खुश रहो .. पचपन साल का साथ था तेरी माँ का | मेरा बुढ़ापा भी बिगड़ गया ...इधर ये अस्थमा पीछा नही छोड़ता | एक बार तू भईया जरुर जल्दी ही मिल जाना | पता नही कितने दिन और सांसे लिखी हैं |'' पिता ने आँखों की भीगी कोरों को रुमाल से पोछते हुए कहा | '' वेल पापा, एज यू नो , नौकरी से छुटटी की प्रॉब्लम रहती है | फिर लंदन से आना भी तोह कितना कॉस्टली पड़ता है | फ्रेंडली स्पीकिंग मेरा अब आ पाना मुश्किल होगा | भईया से जरुर बोल दूँगा ...आप अपना ख्याल रखना |'' (क्या ऐसे ही बात किया जाता है अपने पिता से ..??)
छोटू एअरपोर्ट के लिए रवाना हो गया |जल्दी में छोटू अपना मोबाइल घर पर ही भूल गया | काफी देर बाद उसमे घंटी बजने पर पता चला , तब तक छोटू जा चूका था | पिता सोचने लगे की क्या करे | तभी अनजाने में उस मोबाइल सेट के फंक्शन देखते हुए उनकी अंगुली उसके रिकार्डिंग वोईस बॉक्स के बटन पर क्लिक हो गई | तभी दोनों बेटों के बीच एक वार्तालाप फुल वोल्यूम में उन्हें सुनाई दिया - ''सुना बड़े भईया , माँ नही रही , इंडिया चल रहे हो ना ?'' '' नही यार , तू तो सब जनता है, ये मीटिंग्स , टेंडर और क्लब इलेक्सन एंड व्हाट नोट | ..चल छोटू एक एग्रीमेंट करते हैं | माँ की डेथ पर इस बार तू चला जा ,,पापा की डेथ पर....यू नो , वह तो होनी ही हैं, मैं चला जाऊँगा | प्रोमिस (दबी सी हँसी)'' ''ओके डन'' |
पिता के लिए यह एक घातक सदमा था | आधे घंटे बाद वे आई.सी.यू में अपनी अंतिम सांसे गिन रहे थे |
-मुरलीधर वैष्णव
कैंसरग्रस्त माँ ने कुछ दिनों से खाट पकड़ रखी थी, केवल बेटों के इन्तजार में साँसे अटकी हुई थी | उसे विश्वास था कि अंत समय आने से पहले, उसके बेटे जरुर आएंगे |पिता कभी नाउम्मीदी जताते तो वह क्रोधित हो जाती,कैसे नही आएंगे..? जन्म दिया है उन्हें |पाल पोसकर, पढ़ा-लिखाकर बड़ा किया है उन्हें, देखना जरुर आएंगे |
आशा निराश हुई , छोटा बेटा आया भी तो माँ के गुजरने के बारह घंटे बाद | ''भईया नही आया , कोई बात नही, तुने अपनी माँ के अंतिम दर्शन तो कर लिए'' पिता ने किसी तरह अपने मन को समझाते हुए कहा |
तीन दिन बाद ही छोटू की वापसी का टिकट था | लौटने से पहले उसने पिता के चरण स्पर्श किए | '' खुश रहो .. पचपन साल का साथ था तेरी माँ का | मेरा बुढ़ापा भी बिगड़ गया ...इधर ये अस्थमा पीछा नही छोड़ता | एक बार तू भईया जरुर जल्दी ही मिल जाना | पता नही कितने दिन और सांसे लिखी हैं |'' पिता ने आँखों की भीगी कोरों को रुमाल से पोछते हुए कहा | '' वेल पापा, एज यू नो , नौकरी से छुटटी की प्रॉब्लम रहती है | फिर लंदन से आना भी तोह कितना कॉस्टली पड़ता है | फ्रेंडली स्पीकिंग मेरा अब आ पाना मुश्किल होगा | भईया से जरुर बोल दूँगा ...आप अपना ख्याल रखना |'' (क्या ऐसे ही बात किया जाता है अपने पिता से ..??)
छोटू एअरपोर्ट के लिए रवाना हो गया |जल्दी में छोटू अपना मोबाइल घर पर ही भूल गया | काफी देर बाद उसमे घंटी बजने पर पता चला , तब तक छोटू जा चूका था | पिता सोचने लगे की क्या करे | तभी अनजाने में उस मोबाइल सेट के फंक्शन देखते हुए उनकी अंगुली उसके रिकार्डिंग वोईस बॉक्स के बटन पर क्लिक हो गई | तभी दोनों बेटों के बीच एक वार्तालाप फुल वोल्यूम में उन्हें सुनाई दिया - ''सुना बड़े भईया , माँ नही रही , इंडिया चल रहे हो ना ?'' '' नही यार , तू तो सब जनता है, ये मीटिंग्स , टेंडर और क्लब इलेक्सन एंड व्हाट नोट | ..चल छोटू एक एग्रीमेंट करते हैं | माँ की डेथ पर इस बार तू चला जा ,,पापा की डेथ पर....यू नो , वह तो होनी ही हैं, मैं चला जाऊँगा | प्रोमिस (दबी सी हँसी)'' ''ओके डन'' |
पिता के लिए यह एक घातक सदमा था | आधे घंटे बाद वे आई.सी.यू में अपनी अंतिम सांसे गिन रहे थे |
-मुरलीधर वैष्णव
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