वो लड़का हर बार की तरह इस बार भी उस लड़की से मिल रहा था...जैसे ये दोनों पहले अनगिनत बार मिल चुके थे...और गवाह...ये फिजाएँ...बहती हवा...वक्त...इनकी मुस्कुराहट...पेड़-पौधे...चहचहाती चिडियाएँ थी...
पर इस बार वक्त ने सबकुछ बदल दिया था...केवल इन दोनों को ही छोड़कर...फिजाएँ खामोश थी...हवाएँ कुछ रुखी-रुखी से बेमन बहे जा रही थी...हिलते-डुलते पत्ते यूँ बेजान पड़े थे जैसे,इन्हें कोई मतलब ही नहीं है किसी से...वक्त रुक सा गया था...चिड़ियों का चहचहाना कही गुम था इनके ख़ामोशी के आगे...उन दोनों की चेहरे की हँसी,इन हवाओं के साथ कहीं दूर बह गई थी...और अगर हवाओं का रुख पलट भी जाए तो इनकी हँसी इनकी मुस्कुराहट बनने को किसी भी हाल में तैयार ना थी...दूर-दूर तक सूना पसरा था...और उनकी दिल की बातें बिन जुबां के सहारे लिए उनकी आँखें बता रही थी...
लड़की थोड़ी सहमी नज़र आती है...लड़का थोड़ा बेबस...दोनों आमने-सामने आते हैं...लड़का,लड़की की हाथ पकड़ता है...लड़की और सहम जाती है...लकड़ा हाथ छोड़ देता है...फिर लड़की थोड़ी दूर होकर खड़ी हों जाती है...लड़का और पास जाने की हिम्मत को दबा लेता है...फिर लड़के की आवाज,खामोशी का तोडती है वह लड़की की आँखों में देखते हुए पूछता है..."हमनें साथ में एक-एक पल बिताने की कसमें खाई थी और अब तुम जा रही हों छोड़ के मुझे...मेरे जिंदगी के उन कुछ रिश्तों में तुम थी जो मुझे अपना कहती थी,फिर अलविदा कैसे कह दिया...???" लड़की की नज़रे झुक जाती है...लड़का वैसे ही रहता है,जवाब सुनने के इंतजार में...
पर उस लड़के को शायद पता नही कि कुछ सवालों के जवाब,जुबां कभी नही दे सकती और ख़ामोशी सबकुछ कह जाती है...
फिर वो लड़की उस लड़के को छोड़ के जाने लगती है...मुड़ के भी नही देखती है...और लड़के कि हसरत भरी निगाहें...कुछ पानी की बूंदों का सहारा लेकर उसके गालों पर आने लगती है...वह एकटक देखता जाता है...उस लड़की को जाते हुए...अपने सामने से...अपने जिंदगी से...अपने वजूद से...अपने सजाए ख्वाब से...
फिर वो लड़का नीचे गिर जाता है................
और फिर अचानक उसकी नींद खुलती है...यह सबकुछ एक सपना था...घड़ी सुबह के पांच बजने का इशारा कर रही होती है...वो सपना उसे कुछ देर तक सोचने को मजबूर करती है...फिर वह अपने काम में लग जाता है...पर रह-रह के वह उसी सपने के बारे में सोचता है...यह उसके साथ कभी हुआ ही नही...फिर क्यूँ ये सपना, हकीकत में उसका पीछा नही छोड़ रही है...फिर वो सोचता है कि शायद आगे जाकर ऐसा कुछ हों...क्यूंकि ऐसा कहते है कि भोर का देखा हुआ सपना सच हों जाता है...लेकिन उसके लिए पहले उस लड़के को एक लड़की की जरुरत है...जो उसे इतना प्यार करें कि उसे छोड़ने का दर्द कुछ इस तरह से बयां हों सकें....
Aage badho, ab sahi disha men ho.Badhaai.
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंkya baat hai mango man sahab ?
जवाब देंहटाएंयह घटना किसी और के साथ भी घट सकती है...पर ये उपज मेरे "मन" की है |
हटाएंवाह जी वाह मेंगो मैं जी.... अच्छा लिखा है.
जवाब देंहटाएंआभार...|
हटाएंवाह मन..........
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..
यूनीक सा कंसेप्ट.
अनु
और आपका यहाँ आना और भी यूनिक बना देता है...|
हटाएंआपका बहुत-बहुत आभार |
सपने को जीना क्या ज़रूरी है ? अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजी बिल्कुल जरुरी नही है...पर किसी की भी जिंदगी वैसी नही चलती जैसे सपने वो देखता है..फिर भी ये सपने ही होते है जो जिंदगी का पूरा सफर तय करवा देते हैं |
हटाएंआभार |
वाह ... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया...|
हटाएंयश चोपड़ा की फ़िल्में देखने का यही नतीजा होता है!!
जवाब देंहटाएं:)
:)
हटाएंबिल्कुल सही कहा....यश चोपड़ा जी के गैंग ने ठेका ले रखा है...सब टाइप की प्रेम-कहानी बनाने के लिए | एक महीने बाद "जब तक है जान" भी आ रही है |
कहानी शेखर सुमन की हालिया पोस्ट की कुछ पंक्तियों से मिलती जुलती है :)
जवाब देंहटाएंहम्म्म तो आप भी आम आदमी ही है :)
:)
हटाएंजी..आपकी पारखी नज़रे पहचान गई हमें...
इस आम आदमी के एक आम से ब्लॉग पर आने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया |
prasansniy prastuti, aage badho
जवाब देंहटाएंआभार |
हटाएंबहुत बढ़िया मंटू जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद...|
हटाएंतहदिल से शुक्रिया...|
जवाब देंहटाएंमंटू जी ,
जवाब देंहटाएंकहानी की शुरुआत तो बहुत अच्छी लगी
पर अंत में सपने की बात न कहते तो achha hotaa ...
इससे कहानी का प्रभाव खत्म हो गया ....!!
आपके सुझावों का तहदिल से स्वागत है...
हटाएंआगे से और कोशिश करेंगे...रचना को प्रभावी रखने के लिए |
आभार...
सादर |
अच्छी लगी कल्पना ...
जवाब देंहटाएंअगली कहानी में इस से भी अच्छे की उम्मीद करूँगा |
शुभकामनायें |
-आकाश
और हम उम्मीद पर खरे उतरने की कोशिश करेंगे....|
हटाएंआभार |
बहुत अच्छी लगी आपकी कहानी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कहानी है.... काश इसका अंत सपना न होता
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