22 अक्टूबर 2012

कल भी मिला था...

आपने किशोर दा का यह वाला गाना सुना ही होगा....
                       
                           "आते-जाते खूबसूरत आवारा सड़कों पे...
                            कभी-कभी इतेफ़ाक से,कितने अंजान लोग मिल जाते हैं...
                            उनमें से कुछ लोग...
                            भूल जाते हैं,कुछ याद रह जाते हैं..."

इन चार लाइनों से हमारा वास्ता डेली लाइफ में पड़ता रहता है,वो बात अलग है कि यह आवारा सड़क कभी ब्लॉग बनकर आता है तो कभी फेसबुक तो कभी कोई सफर या फिर कभी कोई ठिकाना...पर लोगों का हमसे मिलना या हमारा उनसे मिलना तय है...हम जैसा है वैसे भी लोग मिलते हैं जिनसे हमारी खूब जमती है...कुछ अलग टाइप के भी मिलते हैं,जिनके व्यक्तित्व में कुछ खास बात होती है और हम सोचने लग जाते हैं कि इस बंदे से कुछ सीखना चाहिए...कुछ ऐसे भी मिलते हैं जिनके व्यक्तित्व के काबिलियत को देखकर मुस्कुराने के अलावा कुछ नही सूझता...और ये मदद करते है हमें सभी टाइप के व्यक्तित्व के बारे में जानकारी रखने में...

हम लोगों से मिलते हैं...जिनके साथ हमें अच्छा अनुभव मिलता है तो हमारा नजरिया भी उनके प्रति अच्छा हों जाता है...जिनसे बूरा अनुभव मिलता है तो हम सतर्क हों जाते हैं...और इन दोनों के ही आधार पर हम आगे की ओर कदम बढ़ाते हैं...
इन मिलने वालों में से कुछ के साथ ऐसा एक बंधन या रिश्ता बन जाता है जिन रिश्तों के हाथ-पैर भी नही होते...पर जो सुख,शांति और चेहरे पर जो मुस्कुराहट झलकती है शायद कोई अपना भी नही दे सकता |

अभी कुछ दिनों पहले मैंने "OHH MY GOD" फिल्म देखी...इस फिल्म में नया कुछ भी नही बताया गया है...जो हम देखते,सुनते आ रहे हैं कहानीकार ने उसे करके बताया है...
ऊपर वाले को मानना चाहिए या नही मानना चाहिए...इस दोनों ही खास मुदों का सटीक कारण दिया हुआ है...हम माने तो क्यूँ माने और नही माने तो क्यूँ नही माने...मै यह नही कह रहा कि इसे देखने के बाद जो आश्तिक है वे नाश्तिक हों जायेंगे या जो नाश्तिक है वे आश्तिक...|
यह फिल्म बताती है कि हर एक आदमी के अंदर भगवान है...निर्भर करता है हमारे नज़रिए पर...हम किस तरीके से देखना पसंद करते हैं लोगों को जो जिंदगी के सफर में हमसे मिलते हैं...यकीं मानिए आप अपने नज़रिए को अपनी जिंदगी के हिसाब से बदल लीजिए,आप रोज भगवान से मिलेंगे...मै तो रोज मिलता हूँ...कल भी मिला था | 

यह एक इंसानी फ़ितरत है कि जब कोई आदमी हमें बूरा लगता है तो हमें केवल उसकी बूराई नज़र आती है और जब हमें कोई अच्छा लगने लगता तो हम केवल उसकी अच्छाई की तरफ देखते हैं...पर हमारे कुछ भी सोचने से सामने वाला नही बदल सकता है...वह उसकी जिंदगी है...चाहें जैसे बनाए | पर हमारी जिंदगी तो हमारे हाथ में ही है...पकड़ के रखना है या छोड़ना है...ये हमे खुद को सोचना है |
  
जिंदगी में बहुत सारे भगवान मिलेंगे,हमारे ही रूप में...कभी किसी मोड़ पर,कभी सफर करते-करते...फिर वहाँ पर बहुत सारे समझौते होंगे दिल और दिमाग के बीच...पर यह याद रखना होगा कि "जिंदगी समझौतों से भरी पड़ी है,यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस-किस का सामना करने के लिए तैयार है"

                                     "चेहरे मिलें हैं हजारों...
                                      यूँ सफर करते-करते,जिंदगी की राहों में...
                                      कि
                                      किसी ने ऊपर वाले का दर्जा पा लिया...
                                      तो कोई,
                                      सामने से गुजर गया और नज़र भी ना आया...."

                                                                                            - "मन"

9 टिप्‍पणियां:

  1. यह एक इंसानी फ़ितरत है कि जब कोई आदमी हमें बूरा लगता है तो हमें केवल उसकी बूराई नज़र आती है और जब हमें कोई अच्छा लगने लगता तो हम केवल उसकी अच्छाई की तरफ देखते हैं।

    बहुत सही नज़र बदलते ही नजरिया बदलता है ।

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  2. Rishton kee fitrat aisi hi hai, kabhi ham kuchh lene aate hain, aur us se bhi zyada use dekar chale jaate hain. Kal jiska Janmdin tha, use badhaai!

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  3. .यकीं मानिए आप अपने नज़रिए को अपनी जिंदगी के हिसाब से बदल लीजिए,आप रोज भगवान से मिलेंगे...मै तो रोज मिलता हूँ...कल भी मिला था |

    बहुत अच्छे सिर्फ नजरिये की ही बात होती है
    आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा।

    समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आना...
    http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/10/blog-post_17.html

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  4. "जिंदगी समझौतों से भरी पड़ी है,यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस-किस का सामना करने के लिए तैयार है"......

    बहुत अच्छा लेखन...
    अनु

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  5. तबीयत से लिखी गयी दुरुस्त बातें.....

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  6. बिलकुल सादगी और ईमानदारी से कही गयी दिल की बात!!परमात्मा को खोजने के बारे में तो पहले ही कहा है किसी ने मोको कहाँ ढूंढें रे बन्दे!!

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  7. फिल्म के बारे में तो मैंने पहले ही अपना फेसबुक पर कहा था...
    जो लोग "ओह माई गॉड....." फिल्म की तारीफ कर रहे हैं उसके आधे लोग भी फिल्म की थीम समझ जाएँ तो भला हो जाए भगवान् का...
    खैर तुम्हारी पोस्ट बेहतरीन है.. कुछ भी नया नहीं लेकिन जो भी है १०० टका खरा है....
    और आश्तिक होता है या आस्तिक ये कन्फर्म कर लेना..

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  8. भाई , सबसे पहले तो OMG की बात , फिल्म में लेखक-निर्देशक ये बात बताने में पूरी तरह सफल रहे कि भगवान को मानो लेकिन उसके नाम पर होने वाले पाखण्ड को नहीं |
    और तुम्हारी लेखनी के बारे में क्या कहूँ , सटीक और लाजवाब |
    आखिर की ६ पंक्तियों ने तो पूरे लेख का आनंद दोगुना कर दिया |

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आपका कुछ भी लिखना,अच्छा लगता है इसीलिए...
कैसे भी लिखिए,किसी भी भाषा में लिखिए- अब पढ़ लिए हैं,लिखना तो पड़ेगा...:)